झांसी: जनपद के एरच कस्बे को होली पर्व की उद्गम स्थली माना जाता है. मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व इस स्थान पर राजा हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी. वर्तमान में एरच को तब एरिकच्छ के नाम से जाना जाता था. झांसी जिले के गजेटियर में भी इस बात का उल्लेख है कि होली पर्व की शुरुआत झांसी के एरच कस्बे से हुई थी. एरच कस्बे में और आसपास के क्षेत्र में कई ऐसे अवशेष आज भी मौजूद हैं, जो इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते नजर आते हैं.
डिकौली गांव में प्रह्लाद कुंड
एरच कस्बे के निकट डिकौली गांव है, डिकौली गांव से सटकर बेतवा नदी बहती है और यहीं पर प्रह्लाद कुंड मौजूद है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसी नदी के निकट डेकांचल पर्वत से भक्त प्रह्लाद को नदी में फेंका गया था. जिस स्थान पर प्रह्लाद को फेंका गया था, उसे प्रह्लाद कुंड के नाम से जाना जाता है और स्थानीय लोग इस स्थान की आज भी पूजा अर्चना करते हैं.
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नरसिंह का हुआ था अवतार
स्थानीय निवासी सन्तोष दूरवार बताते हैं यह पुराना कस्बा है और कभी हिरण्यकश्यप की राजधानी रही है. होली का त्योहार यहीं से शुरू हुआ है. हनुमान गढ़ी मंदिर के निकट से होलिका दहन की शुरुआत होती है. यहां नरसिंह मंदिर है और मान्यता है कि यहां भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था. पास में डेकांचल पर्वत है जहां से भक्त प्रह्लाद को प्रह्लाद दौ में फेंका गया था. इस पहाड़ पर अभी भी अवशेष हैं.
ऐतिहासिक अवशेष भी मिले
इतिहास के जानकार डॉ. चित्रगुप्त बताते हैं कि सैकडों वर्षों से यह कथानक नई पीढ़ी में पहुंचा है. हमारे पूर्वज कहते हैं कि होली की शुरुआत यहीं से हुई. हिरण्यकश्यप यहीं का राजा था और भगवान नरसिंह ने भी यहीं अवतार लिया था. लोगों को यहां से तांबे के सिक्के भी मिले हैं, जो राजकीय संग्रहालय में रखे है. पूरे बुन्देलखण्ड में यह मान्यता है कि होली की यहीं से शुरुआत हुई थी.