ETV Bharat / state

'चोर मटके' का पानी फ्रिज से भी ठंडा, क्यों मिट्टी चोरी कर बनाए जाते हैं मटके? हकीकत हैरान करने वाली - झांसी की खबरें

चोरी की मिट्टी से तैयार होता है झांसी के कोछा भंवर का चोर मटका. झांसी के कोछाभंवर के मटके बुंदेलखंड के साथ-साथ पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. झांसी कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे कोछभंवर गांव के प्रसिद्ध मटकों की दुकानें हाईवे के दोनों ओर लगी हुईं हैं.

etv bharat
चोर कुम्हार के मटके
author img

By

Published : Apr 5, 2022, 3:50 PM IST

Updated : Apr 5, 2022, 8:14 PM IST

झांसीः गर्मी, लू और तेज धूप में मटके का ठंडा पानी शीतल और तरावट देने वाला होता है. गर्मी की दस्तक से पहले ही कुम्हार हर साल मटके बनाने में जुट जाते हैं. झांसी के कोछाभंवर के मटके बुंदेलखंड के साथ-साथ पूरे देश में प्रसिद्ध है. क्या आप जानते हैं जिस मिट्टी के द्वारा मटकों को बनाया गया है वह मिट्टी चोरी करके लाई गई है? हैरानी तो जरूर हुई होगी लेकिन यह बात जो हम आपको बता रहे हैं बिल्कुल सच है. क्या कारण है कि मटकों को बनाने वाले इन कुम्हारों को मिट्टी चुरा कर लानी पड़ रही है. जानने के लिए देखिए ETV भारत की स्पेशल रिपोर्ट-

यह दिलचस्प कहानी झांसी के कोछा भंवर गांव की है. जहां कुम्हारों के पानी के मटके देश के हर कोने में प्रसिद्ध हैं. मिट्टी की वजह से मटके में पानी फ्रिज की तरह ठंडा होता है. लेकिन, मिट्टी मिलना इतना ही मुश्किल है. क्योंकी, कुम्हारों की अपनी कोई जमीन नहीं है और जमींदार अपनी खेतों से मिट्टी उठाने नहीं देते. ऐसे में रात के अंधेरे में कुम्हार मिट्टी चुराकर लाते हैं और फिर मटके तैयार करते हैं.कुम्हारों को कभी जमींदार पीटते हैं तो कभी पुलिस उठाकर ले जाती है. लेकिन, बच्चों का पेट पालने के लिए उनको यह जुर्म बार-बार करना पड़ता है. हालात ये है कि पहले जहां 60 परिवार मटके बनाते थे अब सिर्फ 20 परिवार ही मटके बनाने का काम कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- वाह! कड़े संघर्ष के बाद फर्श से अर्श पर पहुंची हॉकी प्लेयर मुमताज खान, कुछ ऐसी रही संघर्ष की कहानी


कुम्हार हरी किशन प्रजापति ने बताया कि वह 40 साल से मटका बना रहे हैं. पहले पुरखों ने भी यही काम किया. डिस्पोजल ग्लास व फ्रिज आ जाने से कारोबार एकदम गिर गया था. फ्रिज का पानी बीमार कर देता है. डिस्पोजल ग्लास भी पर्यावरण के लिए हानिकारक है. यह लोग अब समझ गए हैं और अब फिर से मटका कारोबार में बढ़ोत्तरी हुई है. लेकिन, कुम्हारों को मिट्टी नहीं मिल पा रही है. चोरी करके मिट्टी लानी पड़ती है. कभी पुलिस पकड़ लेती है तो कभी गांव वाले पीटते हैं. इसी वजह से ज्यादातर कुम्हार यह कारोबार छोड़ रहे हैं.


काली व लाल मिट्टी से तैयार होता है मटकाः उन्होंने बताया कि मटके हाथ से बने होते हैं. चौक पर बनाएंगे तो इतने ठंडे नहीं करेंगे. गांव के पास से काली और लाल मिट्टी लाकर कूटते हैं. इसके बाद मिट्टी को फुलाया जाता है फिर घोड़े की सूखी लीद मिलाते हैं. 1 दिन में 10 से 15 मटके बनकर तैयार हो जाते हैं. जब भट्टे में मटका पकता है तो लीद जल जाता है. इससे उनमें ना दिखने वाले छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं, जिससे पानी रिस्ता है. गांव की मिट्टी में अत्यधिक ठंडक है, इसलिए यहां के मटके का पानी बहुत ठंडा होता है?

चोर कुम्हार के मटके
चोर कुम्हार के मटके
बीमारी भी खत्म कर देता है यहां का मटकाः कुम्हार सुरेश प्रजापति बताते हैं कि पुरानी कहावत है कि "कोछा भंवर के मटके, कभी ना निकले चटके, और पानी पियो डटके" पानी तो ठंडा करता ही है साथ में यह बीमारियों को भी खत्म कर देता है. यहां के मटके कोलकाता, मुंबई, आगरा, कानपुर, लखनऊ समेत देश के हर कोने में बिकने के लिए जाते हैं. कोई कारोबारी ट्रेन से बुक कर के ले जाता है तो कोई ट्रक में लोड करके ले जाता है.सुरेश और हरी किशन ने कहा कि मटकों से ही उनके परिवार को 2 जून की रोटी मिलती है. मिट्टी ना मिलने से कुम्हार परेशान हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ से गुजारिश है कि वे कुम्हारों के लिए मिट्टी का इंतजाम कराएं. साथ ही भट्टा में मटके पकाते समय बरसात हो जाए तो पूरे मटके खराब हो जाते हैं. कई दिनों की मेहनत बेकार चली जाती है. सरकार भट्टे के ऊपर टीन शेड लगाने की व्यवस्था करे. करीब 65 किलोमीटर दूर गुरसराय से मटके लेने कोछा भंवर पहुंचे कार सवार मनोज कुमार शुक्ला ने बताया कि यहां के मटके अच्छे हैं. यहां के मटके में पानी अधिक ठंडा होता है. साथ ही जब पानी पीते हैं तो मिट्टी की अच्छी खुशबू आती है. घर से डिमांड होती है कि मटके कोछा भंवर से ही लाना.
चोर कुम्हार के मटके
चोर कुम्हार के मटके
झांसी कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे कोछभंवर गांव के प्रसिद्ध मटकों की दुकानें हाईवे के दोनों ओर लगी हुई हैं. इन दुकानों पर मटका और सुराही 70 से 250 तक मिल रही है. इन दुकानों पर हर आय वर्ग के लोग आते हैं और अपनी-अपनी पसंद के मटकों की खरीदारी करते हैं.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

झांसीः गर्मी, लू और तेज धूप में मटके का ठंडा पानी शीतल और तरावट देने वाला होता है. गर्मी की दस्तक से पहले ही कुम्हार हर साल मटके बनाने में जुट जाते हैं. झांसी के कोछाभंवर के मटके बुंदेलखंड के साथ-साथ पूरे देश में प्रसिद्ध है. क्या आप जानते हैं जिस मिट्टी के द्वारा मटकों को बनाया गया है वह मिट्टी चोरी करके लाई गई है? हैरानी तो जरूर हुई होगी लेकिन यह बात जो हम आपको बता रहे हैं बिल्कुल सच है. क्या कारण है कि मटकों को बनाने वाले इन कुम्हारों को मिट्टी चुरा कर लानी पड़ रही है. जानने के लिए देखिए ETV भारत की स्पेशल रिपोर्ट-

यह दिलचस्प कहानी झांसी के कोछा भंवर गांव की है. जहां कुम्हारों के पानी के मटके देश के हर कोने में प्रसिद्ध हैं. मिट्टी की वजह से मटके में पानी फ्रिज की तरह ठंडा होता है. लेकिन, मिट्टी मिलना इतना ही मुश्किल है. क्योंकी, कुम्हारों की अपनी कोई जमीन नहीं है और जमींदार अपनी खेतों से मिट्टी उठाने नहीं देते. ऐसे में रात के अंधेरे में कुम्हार मिट्टी चुराकर लाते हैं और फिर मटके तैयार करते हैं.कुम्हारों को कभी जमींदार पीटते हैं तो कभी पुलिस उठाकर ले जाती है. लेकिन, बच्चों का पेट पालने के लिए उनको यह जुर्म बार-बार करना पड़ता है. हालात ये है कि पहले जहां 60 परिवार मटके बनाते थे अब सिर्फ 20 परिवार ही मटके बनाने का काम कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- वाह! कड़े संघर्ष के बाद फर्श से अर्श पर पहुंची हॉकी प्लेयर मुमताज खान, कुछ ऐसी रही संघर्ष की कहानी


कुम्हार हरी किशन प्रजापति ने बताया कि वह 40 साल से मटका बना रहे हैं. पहले पुरखों ने भी यही काम किया. डिस्पोजल ग्लास व फ्रिज आ जाने से कारोबार एकदम गिर गया था. फ्रिज का पानी बीमार कर देता है. डिस्पोजल ग्लास भी पर्यावरण के लिए हानिकारक है. यह लोग अब समझ गए हैं और अब फिर से मटका कारोबार में बढ़ोत्तरी हुई है. लेकिन, कुम्हारों को मिट्टी नहीं मिल पा रही है. चोरी करके मिट्टी लानी पड़ती है. कभी पुलिस पकड़ लेती है तो कभी गांव वाले पीटते हैं. इसी वजह से ज्यादातर कुम्हार यह कारोबार छोड़ रहे हैं.


काली व लाल मिट्टी से तैयार होता है मटकाः उन्होंने बताया कि मटके हाथ से बने होते हैं. चौक पर बनाएंगे तो इतने ठंडे नहीं करेंगे. गांव के पास से काली और लाल मिट्टी लाकर कूटते हैं. इसके बाद मिट्टी को फुलाया जाता है फिर घोड़े की सूखी लीद मिलाते हैं. 1 दिन में 10 से 15 मटके बनकर तैयार हो जाते हैं. जब भट्टे में मटका पकता है तो लीद जल जाता है. इससे उनमें ना दिखने वाले छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं, जिससे पानी रिस्ता है. गांव की मिट्टी में अत्यधिक ठंडक है, इसलिए यहां के मटके का पानी बहुत ठंडा होता है?

चोर कुम्हार के मटके
चोर कुम्हार के मटके
बीमारी भी खत्म कर देता है यहां का मटकाः कुम्हार सुरेश प्रजापति बताते हैं कि पुरानी कहावत है कि "कोछा भंवर के मटके, कभी ना निकले चटके, और पानी पियो डटके" पानी तो ठंडा करता ही है साथ में यह बीमारियों को भी खत्म कर देता है. यहां के मटके कोलकाता, मुंबई, आगरा, कानपुर, लखनऊ समेत देश के हर कोने में बिकने के लिए जाते हैं. कोई कारोबारी ट्रेन से बुक कर के ले जाता है तो कोई ट्रक में लोड करके ले जाता है.सुरेश और हरी किशन ने कहा कि मटकों से ही उनके परिवार को 2 जून की रोटी मिलती है. मिट्टी ना मिलने से कुम्हार परेशान हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ से गुजारिश है कि वे कुम्हारों के लिए मिट्टी का इंतजाम कराएं. साथ ही भट्टा में मटके पकाते समय बरसात हो जाए तो पूरे मटके खराब हो जाते हैं. कई दिनों की मेहनत बेकार चली जाती है. सरकार भट्टे के ऊपर टीन शेड लगाने की व्यवस्था करे. करीब 65 किलोमीटर दूर गुरसराय से मटके लेने कोछा भंवर पहुंचे कार सवार मनोज कुमार शुक्ला ने बताया कि यहां के मटके अच्छे हैं. यहां के मटके में पानी अधिक ठंडा होता है. साथ ही जब पानी पीते हैं तो मिट्टी की अच्छी खुशबू आती है. घर से डिमांड होती है कि मटके कोछा भंवर से ही लाना.
चोर कुम्हार के मटके
चोर कुम्हार के मटके
झांसी कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे कोछभंवर गांव के प्रसिद्ध मटकों की दुकानें हाईवे के दोनों ओर लगी हुई हैं. इन दुकानों पर मटका और सुराही 70 से 250 तक मिल रही है. इन दुकानों पर हर आय वर्ग के लोग आते हैं और अपनी-अपनी पसंद के मटकों की खरीदारी करते हैं.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

Last Updated : Apr 5, 2022, 8:14 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.