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जौनपुर की सड़कों से गायब हो रही रिक्शों की 'ट्रिंग-ट्रिंग' की आवाज ! - riksaw puller of jaunpur in big trouble

कभी शहर की सड़कों पर साइकिल रिक्शे की घंटियों की ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज लोगों को खूब सुनाई पड़ती थी. अब यह आवाज सुनाई देना कम हो गई है. क्योंकि सड़कों पर दौड़ने वाले रिक्शे अब केवल गिनती के रह गए हैं.

सड़कों से गायब हो रहे रिक्शे.
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Published : Aug 2, 2019, 11:22 PM IST

जौनपुरः आधुनिकता के दौर में बहुत कुछ बदल रहा है. सड़कों पर पहले जहां बड़ी संख्या में पैर से चलने वाले साइकिल रिक्शे दिखाई देते थे, आज वह गायब हो रहे हैं. सड़कों पर धड़ल्ले से चल रहे बैटरी चलित रिक्शों ने इन साइकिल रिक्शा चालकों का रोजगार छीन लिया है.

सड़कों से गायब हो रहे साइकिल रिक्शे.

खत्म होता रिक्शों का चलनः
कभी शहर की सड़कों पर साइकिल रिक्शें की घंटियों की ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज लोगों को खूब सुनाई पड़ती थी. अब यह आवाज सुनाई देना बंद हो रही है. क्योंकि सड़कों पर दौड़ने वाले साइकिल रिक्शे अब केवल गिनती के रह गए हैं. जौनपुर की सड़कों पर पहले सैकड़ों की संख्या में रिक्शा चलते थे. आज पूरे शहर में केवल दो दर्जन रिक्शे ही बचे हैं. इन रिक्शों को चलाने वाले बुजुर्ग हैं. क्योंकि अब युवा साइकिल रिक्शें को नहीं चलाना चाहते. युवाओं की पहली पसंद बैटरी चलित रिक्शा है. वहीं सड़कों पर बैटरी चलित रिक्शों की भरमार है. जिसकी वजह से अब साइकिल रिक्शा चालक बेरोजगार हो रहे हैं.


घर चलाना भी हो रहा है मुश्किलः
साइकिल रिक्शा चालक विश्वनाथ ने बताया कि पहले वह रिक्शा चलाकर 400 से 500 रुपये तक कमा लेते थे लेकिन आज उन्हें 100 रुपये भी कमाना मुश्किल पड़ रहा है. बैटरी चलित रिक्शा ने उनका रोजगार छीन लिया है. जिले में बैटरी से चलने वाले रिक्शे की भरमार की वजह से अब सवारियां साइकिल रिक्शों पर बैठना पसंद नहीं करती हैं, क्योंकि इनका किराया महंगा पड़ता है. वहीं धीरे चलने की वजह से इनमें समय भी ज्यादा लगता है.

जौनपुरः आधुनिकता के दौर में बहुत कुछ बदल रहा है. सड़कों पर पहले जहां बड़ी संख्या में पैर से चलने वाले साइकिल रिक्शे दिखाई देते थे, आज वह गायब हो रहे हैं. सड़कों पर धड़ल्ले से चल रहे बैटरी चलित रिक्शों ने इन साइकिल रिक्शा चालकों का रोजगार छीन लिया है.

सड़कों से गायब हो रहे साइकिल रिक्शे.

खत्म होता रिक्शों का चलनः
कभी शहर की सड़कों पर साइकिल रिक्शें की घंटियों की ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज लोगों को खूब सुनाई पड़ती थी. अब यह आवाज सुनाई देना बंद हो रही है. क्योंकि सड़कों पर दौड़ने वाले साइकिल रिक्शे अब केवल गिनती के रह गए हैं. जौनपुर की सड़कों पर पहले सैकड़ों की संख्या में रिक्शा चलते थे. आज पूरे शहर में केवल दो दर्जन रिक्शे ही बचे हैं. इन रिक्शों को चलाने वाले बुजुर्ग हैं. क्योंकि अब युवा साइकिल रिक्शें को नहीं चलाना चाहते. युवाओं की पहली पसंद बैटरी चलित रिक्शा है. वहीं सड़कों पर बैटरी चलित रिक्शों की भरमार है. जिसकी वजह से अब साइकिल रिक्शा चालक बेरोजगार हो रहे हैं.


घर चलाना भी हो रहा है मुश्किलः
साइकिल रिक्शा चालक विश्वनाथ ने बताया कि पहले वह रिक्शा चलाकर 400 से 500 रुपये तक कमा लेते थे लेकिन आज उन्हें 100 रुपये भी कमाना मुश्किल पड़ रहा है. बैटरी चलित रिक्शा ने उनका रोजगार छीन लिया है. जिले में बैटरी से चलने वाले रिक्शे की भरमार की वजह से अब सवारियां साइकिल रिक्शों पर बैठना पसंद नहीं करती हैं, क्योंकि इनका किराया महंगा पड़ता है. वहीं धीरे चलने की वजह से इनमें समय भी ज्यादा लगता है.

Intro:जौनपुर।। आधुनिकता के दौर में बहुत कुछ बदल रहा है। सड़कों पर पहले जहां बड़ी संख्या में पैर से चलाने वाले रिक्शे दिखाई देते थे आज वह गायब हो रहे हैं । जौनपुर की सड़कों पर अब केवल दो दर्जन रिक्शे ही बचे हैं और इन वृक्षों को चलाने वाले भी बुजुर्ग हैं । सड़कों पर धड़ल्ले से चल रहे बैटरी चालित रिक्शा ने इन रिक्शा चालकों का रोजगार छीन लिया है जिसके चलते अब रिक्शा चालकों की कमाई दिन में ₹100 भी नहीं हो पाती है जिसमें घर चलाना भी मुश्किल पढ़ रहा है। जिले में बैटरी चालित रिक्शा की भरमार की वजह से अब सवारिया रिक्शा पर बैठना पसंद नहीं करती है क्योंकि इनका किराया महंगा पड़ता है। वही धीरे चलने की वजह से इनमें समय भी ज्यादा लगता है।


Body:वीओ।। कभी शहर की सड़कों पर रिक्शा घंटियों की ट्रिंग ट्रिंग की आवाज लोगों को खूब सुनाई पड़ती थी। आज यह आवाज अब सुनना बंद हो गई है क्योंकि सड़कों पर दौड़ने वाले रिक्शे अब केवल गिनती के रह गए हैं। जौनपुर की सड़कों पर पहले सैकड़ों की संख्या में रिक्शा चलते थे , आज पूरे शहर में केवल दो दर्जन रिक्शा ही बचे हैं । इन रिक्शा को चलाने वाले बुजुर्ग हैं क्योंकि अब युवा इन रिक्शा को नहीं चलाना चाहता है । युवाओं की पहली पसंद बैटरी चालित रिक्शा है। वहीं सड़कों पर बैटरी चालित रिक्शा की भरमार की वजह से अब रिक्शा चालक बेरोजगार हो रहे हैं। वहीं की कमाई भी पहले से चौथाई हो गई है जिसके चलते इन्हें घर चलाना भी मुश्किल पड़ रहा है।


Conclusion:रिक्शा चालक विश्वनाथ ने बताया कि पहले वह रिक्शा चलाकर चार ₹500 तक कम आते थे। आज उन्हें ₹100 भी कमाना मुश्किल पड़ रहा है। बैटरी चालित रिक्शा ने उनका रोजगार छीन लिया है।

बाइट- विश्वनाथ रिक्शा चालक

रिक्शा चालक दिलीप ने बताया कि अब उनके रिक्सो पर सवारिया नहीं बैठती है । वह बैटरी रिक्शा पर बैठना पसंद करती हैं क्योंकि यह रिक्शे उनको सस्ते पड़ते हैं जिसके चलते अब उनका रोजगार बर्बाद हो रहा है।

बाइट-दिलीप-रिक्सा चालक


पीटीसी

Dharmendra singh
jaunpur
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