जौनपुर: कोरोना की मार से सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर ही नहीं किसान भी है. कोरोना की वजह से चल रहे लॉकडाउन ने किसानों की कमर तोड़ दी है. सब्जी किसान ने अपने खून पसीने की मेहनत से इस बार खूब सब्जियां पैदा की, लेकिन मंडियों में इनका उचित मूल्य तक नहीं मिल सका. यही हाल जौनपुर जनपद की जमैथा गांव के मशहूर खरबूजे का है.
खरबूजा किसान परेशान
यहां खरबूजे की खेती 100 साल से भी ज्यादा समय से हो रही है. वहीं इस खरबूजे की खेती से गांव के सैकड़ों किसानों को अच्छी आय मिलती थी, लेकिन इस बार खरबूजे की खेती पर कोरोना ग्रहण लग गया, जिसके चलते यहां का मशहूर खरबूजा इस बार बेमोल बिकने लगा. इस बार जमैथा का मशहूर खरबूजा लॉकडाउन के चलते जनपद की सीमाओं को पार न कर सका, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ.
100 साल से होती आ रही खरबूजे की खेती
जौनपुर का जमैथा गांव खरबूजे की खेती के लिए पूरे प्रदेश में मशहूर है. इस गांव में 100 साल से भी अधिक समय से खरबूजे की खेती हो रही है. यहां के खरबूजे की विशेष खासियत है खरबूजे का स्वाद. अपनी विशेष महक और स्वाद के कारण यहां के खरबूजे दूसरी जगह के खरबूजों से ज्यादा पसंद किए जाते हैं. जिसके कारण किसानों को अच्छा दाम भी मिलता है.
90 फीसदी हुआ नुकसान
मगर इस बार खरबूजे की खेती पर कोरोना का ग्रहण लग गया. खरबूजे की फसल जब तैयार हुई तो लॉकडाउन लग चुका था. लॉकडाउन के चलते उनके खरबूजों का मंडियों में कोई भाव ही नहीं रहा गया. इस बार जौनपुर का खरबूजा जनपद की सीमाओं से बाहर भी नहीं जा सका. खरबूजे की खेती करने वाली महिला गीता देवी बताती हैं कि उन्होंने अपनी खेती में 10 हजार की लागत लगाई थी, लेकिन इस बार बीज का पैसा भी नहीं निकला. यही हाल दीपक कुमार का भी है उन्होंने भी अपनी खेती में 10 हजार की लागत लगाई थी, लेकिन इस बार खरबूजे से 90 फीसदी का नुकसान हुआ है. लॉकडाउन की वजह से खरबूजे के किसानों की कमर टूट गई. अब उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा है कि आगे की खेती कैसे करें.
खरबूजे की लागत में 5000 रुपये केवल बीज में लगाए थे, लेकिन कमाई केवल 600 रुपये हुई है. जबकि हर साल इतनी फसल में उन्हें 30 से 40 हजार रुपये का फायदा होता था.
-सुरेंद्र यादव, किसान
खरबूजे की खेती में बहुत मेहनत लगती है और इस बार तो लॉकडाउन की वजह से कुछ भी नहीं मिला. इस बार किसान का बहुत नुकसान हुआ है.
-राजवीर, किसान