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कभी रेडियो सुनने के लिए लेना पड़ता था लाइसेंस, आज भी बुजुर्गों की है पहली पसंद

13 फरवरी को पूरा विश्व रेडियो दिवस के रूप में मना रहा है. रेडियो लोगों को सूचना समाचार और गीतों के माध्यम से मनोरंजन का एक उपयोगी और सस्ता संचार साधन था. साठ के दशक में रेडियो को सुनने के लिए लाइसेंस भी लेना पड़ा था. जौनपुर जिले के बहुत से बुजुर्ग आज भी रेडियो को अपना साथी मानते हैं.

आज भी बुजुर्गों की पहली पसंद है रेडियो.
आज भी बुजुर्गों की पहली पसंद है रेडियो.
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Published : Feb 13, 2020, 4:24 PM IST

Updated : Sep 21, 2022, 5:06 PM IST

जौनपुर: 13 फरवरी को पूरा विश्व रेडियो दिवस के रूप में मना रहा है. इस दिन को 2012 में यूनाइटेड नेशन ने रेडियो दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया, जिसके बाद 13 फरवरी को हर साल विश्व रेडियो दिवस मनाने की शुरुआत हो गई. एक समय था जब रेडियो हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा हुआ करता था. लोगों को सूचना समाचार और गीतों के माध्यम से मनोरंजन का एक उपयोगी और सस्ता संचार साधन था, लेकिन समय की रफ्तार में रेडियो पीछे छूट गया.

रेडियो को सुनने के लिए लेना पड़ता था लाइसेंस
आज रेडियो का परिवर्तित रूप एफएम स्टेशनों की बदौलत चल रहा है, जो लोगों की मोबाइलों के माध्यम से सुना जा रहा है. भारत में वैसे तो रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1927 में हुई, लेकिन आज भी विविध भारती अपने लाखों श्रोताओं को रेडियो से जोड़े हुई है. वहीं प्रधानमंत्री की मन की बात भी रेडियो को जीवित करने में प्रमुख भूमिका अदा कर रहा ह. जौनपुर में आज बहुत से बुजुर्ग हैं जो 50 साल से ज्यादा समय से रेडियो सुनते आ रहे हैं. कुछ बुजुर्गों ने बताया कि उन्हें साठ के दशक में रेडियो को सुनने के लिए लाइसेंस भी लेना पड़ा था. वह आज भी रेडियो को अपना साथी मानते हैं.

एक मात्र मनोरंजन का सस्ता साधन था रेडियो
मोबाइल और टेलीविजन के जमाने में रेडियो का इस्तेमाल अब पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन इसका महत्व आज भी कम नहीं हुआ है. रेडियो मध्यमवर्ग और गरीब मजदूरी करने वाले लोगों का मनोरंजन का सस्ता साधन हुआ करता था. आज गांव के कुछ बुजुर्ग व्यक्ति ही रेडियो के शौकीन हैं. वह आज भी रेडियो पर गाने समाचार यहां तक कि प्रधानमंत्री के मन की बात भी सुनते हैं. जौनपुर के कलीचाबाद गांव में आज भी आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं जो 50 साल से ज्यादा समय से रेडियो सुनते आ रहे हैं. गांव के बुजुर्ग दीनानाथ श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने पहला रेडियो 1963 में लिया था. तब उन्हें रेडियो सुनने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था. उस दौर से आज तक वह रेडियो को अपना हमसफर मानते हैं. वह आज भी रेडियो पर समाचार और गीतों के माध्यम से मनोरंजन करते हैं.

हम रेडियो को हमेशा अपने साथ रखते हैं. चाहे हम खेत में हो या पलंग के बिस्तर पर. रेडियो हमेशा हमारे साथ रहती है. खेती के दौरान गानों के माध्यम से हमारा मनोरंजन होता है. हम हमेशा प्रधानमंत्री के मन की बात भी सुनते हैं.
-दीनानाथ श्रीवास्तव, बुजुर्ग रेडियो श्रोता

हम बचपन से रेडियो के शौकीन हैं. हमको रेडियो सुनते 50 साल से ज्यादा हो गए हैं. शुरू में हमने जब रेडियो लिया था, तो उसके लिए हमें लाइसेंस भी लेना पड़ा था. आज हमारे पास रेडियो तो नहीं है, लेकिन आज भी रेडियो का प्रेम कम नहीं हुआ है.
-केदारनाथ -किसान

हम जब कक्षा 7 से रेडियो सुनते आ रहे हैं. मेरा आज भी रेडियो से प्रेम आज जारी है. रेडियो की प्रासंगिकता आज भी कम नहीं है. इसका स्वरूप जरूर बदला है. हम तो रेडियो पर प्रसारित होने वाले समाचार को सुनकर ही सोने के लिए जाते थे. आज लोगों को रेडियो पर प्रसारित समाचार पर पूरा भरोसा रहता है.
-दुलारा दुबे, वरिष्ठ पत्रकार एवं रेडियो प्रेमी


जौनपुर: 13 फरवरी को पूरा विश्व रेडियो दिवस के रूप में मना रहा है. इस दिन को 2012 में यूनाइटेड नेशन ने रेडियो दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया, जिसके बाद 13 फरवरी को हर साल विश्व रेडियो दिवस मनाने की शुरुआत हो गई. एक समय था जब रेडियो हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा हुआ करता था. लोगों को सूचना समाचार और गीतों के माध्यम से मनोरंजन का एक उपयोगी और सस्ता संचार साधन था, लेकिन समय की रफ्तार में रेडियो पीछे छूट गया.

रेडियो को सुनने के लिए लेना पड़ता था लाइसेंस
आज रेडियो का परिवर्तित रूप एफएम स्टेशनों की बदौलत चल रहा है, जो लोगों की मोबाइलों के माध्यम से सुना जा रहा है. भारत में वैसे तो रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1927 में हुई, लेकिन आज भी विविध भारती अपने लाखों श्रोताओं को रेडियो से जोड़े हुई है. वहीं प्रधानमंत्री की मन की बात भी रेडियो को जीवित करने में प्रमुख भूमिका अदा कर रहा ह. जौनपुर में आज बहुत से बुजुर्ग हैं जो 50 साल से ज्यादा समय से रेडियो सुनते आ रहे हैं. कुछ बुजुर्गों ने बताया कि उन्हें साठ के दशक में रेडियो को सुनने के लिए लाइसेंस भी लेना पड़ा था. वह आज भी रेडियो को अपना साथी मानते हैं.

एक मात्र मनोरंजन का सस्ता साधन था रेडियो
मोबाइल और टेलीविजन के जमाने में रेडियो का इस्तेमाल अब पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन इसका महत्व आज भी कम नहीं हुआ है. रेडियो मध्यमवर्ग और गरीब मजदूरी करने वाले लोगों का मनोरंजन का सस्ता साधन हुआ करता था. आज गांव के कुछ बुजुर्ग व्यक्ति ही रेडियो के शौकीन हैं. वह आज भी रेडियो पर गाने समाचार यहां तक कि प्रधानमंत्री के मन की बात भी सुनते हैं. जौनपुर के कलीचाबाद गांव में आज भी आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं जो 50 साल से ज्यादा समय से रेडियो सुनते आ रहे हैं. गांव के बुजुर्ग दीनानाथ श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने पहला रेडियो 1963 में लिया था. तब उन्हें रेडियो सुनने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था. उस दौर से आज तक वह रेडियो को अपना हमसफर मानते हैं. वह आज भी रेडियो पर समाचार और गीतों के माध्यम से मनोरंजन करते हैं.

हम रेडियो को हमेशा अपने साथ रखते हैं. चाहे हम खेत में हो या पलंग के बिस्तर पर. रेडियो हमेशा हमारे साथ रहती है. खेती के दौरान गानों के माध्यम से हमारा मनोरंजन होता है. हम हमेशा प्रधानमंत्री के मन की बात भी सुनते हैं.
-दीनानाथ श्रीवास्तव, बुजुर्ग रेडियो श्रोता

हम बचपन से रेडियो के शौकीन हैं. हमको रेडियो सुनते 50 साल से ज्यादा हो गए हैं. शुरू में हमने जब रेडियो लिया था, तो उसके लिए हमें लाइसेंस भी लेना पड़ा था. आज हमारे पास रेडियो तो नहीं है, लेकिन आज भी रेडियो का प्रेम कम नहीं हुआ है.
-केदारनाथ -किसान

हम जब कक्षा 7 से रेडियो सुनते आ रहे हैं. मेरा आज भी रेडियो से प्रेम आज जारी है. रेडियो की प्रासंगिकता आज भी कम नहीं है. इसका स्वरूप जरूर बदला है. हम तो रेडियो पर प्रसारित होने वाले समाचार को सुनकर ही सोने के लिए जाते थे. आज लोगों को रेडियो पर प्रसारित समाचार पर पूरा भरोसा रहता है.
-दुलारा दुबे, वरिष्ठ पत्रकार एवं रेडियो प्रेमी


Last Updated : Sep 21, 2022, 5:06 PM IST
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