जौनपुर: 'कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती', इस कहावत को 27 वर्षीय दुर्गेश जायसवाल ने सिद्ध किया है. दुर्गेश के हौसलों ने इतनी ऊंची उड़ान भरी है कि इनके क्षेत्रवासियों को इन पर गर्व है. कभी अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए दुर्गेश ऑटो चलाते थे, लेकिन आज अपनी मेहनत और लगन के बल पर परिषदीय विद्यालय में बतौर शिक्षक बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं.
संघर्ष भरी है दुर्गेश जयसवाल की दास्तान
जिले के रामदयाल गंज बाजार के निवासी दुर्गेश जयसवाल की कहानी संघर्षों से भरी पड़ी है. परिवार के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे. किसी तरह से घर के लोगों का गुजारा होता था. दुर्गेश के पिता अशोक जयसवाल छत्तीसगढ़ के भिलाई में सब्जी का ठेला लगाकर परिवार का खर्च चलाते थे. उसी आमदनी से अशोक जायसवाल ने अपने बच्चों को पढ़ाया भी है.
साल 2008 में अशोक जायसवाल की तबीयत बिगड़ गई. कमर की नस में दिक्कत होने से तीन-चार महीने तक वे बिस्तर पर ही पड़े रहे. इलाज में काफी पैसे लग गए, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई. सबसे बड़ा संकट आजीविका को लेकर बना हुआ था. उसी समय दुर्गेश जायसवाल ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली.
दुर्गेश ने लोन लेकर ऑटो रिक्शा खरीदा. जौनपुर से मड़ियाहूं मार्ग पर दुर्गेश रिक्शे में सवारी ढोने का काम करने लगे. किसी तरह से दिनभर ऑटो चलाकर 400 से 500 रुपये की आमदनी होती थी. दिन भर ऑटो चलाने के बाद दुर्गेश ने शाम के समय अपनी पढ़ाई भी जारी रखी.
सपनों को धुंधला नहीं पड़ने दिया
दुर्गेश के कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ दोगुना हो गया था. एक तरफ परिवार का भरण-पोषण भी करना था तो दूसरी तरफ अपने सपनों को भी पूरा करना था. दुर्गेश अपनी धुन के पक्के थे. ऑटो चलाकर उन्होंने अपने परिवार को कर्ज के बोझ से निकाला. परिवार की आर्थिक स्थिति सही न होने के चलते बाद में उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी. बावजूद इसके दुर्गेश अखबार के सहारे जानकारियों से अप-टू-डेट रहते थे.
ताने ने जिंदगी बदल दी
दुर्गेश जायसवाल बताते हैं कि एक दिन ऑटो में सवारियों को बैठाकर मड़ियाहूं जा रहे थे. उस समय उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों की भर्ती निकली थी. उनके रिक्शे में सवार कुछ विद्यार्थी परीक्षा देकर आ रहे थे. रिक्शे में बैठे लोग पेपर के बारे में बातचीत कर रहे थे. इसी दौरान दुर्गेश के मन में भी पेपर देखने की इच्छा हुई. दुर्गेश ने परिक्षार्थियों से पेपर लिया और प्रश्नों का जवाब देने लगे. तभी सवारी ने दुर्गेश पर तंज कसते हुए कहा कि 'यह तुम्हारे वश की बात नहीं है तो प्रश्न पत्र मत हल करो, रिक्शा चलाओ.' इस तंज के बाद दुर्गेश ने पेपर में गणित के सवालों को हल किया. यह देखकर परीक्षार्थी भी हैरान रह गए. इसके बाद से दुर्गेश ने निश्चय किया कि किसी भी हाल में वह अब अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे, फिर चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े.
नए सिरे से की शुरुआत
अभ्यर्थियों के कसे तंज दुर्गेश को कचोट रहे थे. दुर्गेश ने नए सिरे से पढ़ाई की शुरुआत की. इसके बाद जिले के तिलकधारी कॉलेज से दुर्गेश ने स्नातक उत्तीर्ण किया. पढ़ाई शुरू करने के साथ-साथ दुर्गेश ने छोटे बच्चों को ट्यूशन देना भी शुरू किया, ताकि घर में कुछ पैसे आ सकें. इस दौरान दुर्गेश ने ऑटो चलाना छोड़ दिया था. दुर्गेश बच्चों को पढ़ाकर कमाए पैसों से अपनी फीस भरते थे.
लोगों ने तंज कसना शुरू कर दिया
ट्यूशन पढ़ाने से दुर्गेश की अच्छी कमाई हो जाती थी. इसी बीच किसी ने दुर्गेश को यूट्यूब चैनल बनाकर पढ़ाने की सलाह दी. इसके बाद दुर्गेश ने अपना यूट्यूब चैनल बनाया. दुर्गेश बताते हैं कि जब उन्होंने चैनल बनाया तो लोगों ने उन पर तंज कसना शुरू कर दिया. लोग बोलते थे कि 'देखो, आईएस साहब जा रहे हैं.'
कुछ लोगों ने यह भी तंज कसा है कि जिस गांव में इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वहां से यह महाशय यूट्यूब चैनल चला रहे हैं, लेकिन दुर्गेश ने इन सभी लोगों की बातों को नकारा. कुछ ही समय में दुर्गेश ने अपने यूट्यूब चैनल पर लाखों सब्सक्राइबर हासिल कर लिए.
दुर्गेश ने साल 2016-18 के बीटीसी बैच में दाखिला लिया. बीटीसी की पढ़ाई पूरी करने के बाद दुर्गेश ने टेट परीक्षा को उत्तीर्ण किया और बीते अक्टूबर में उनका चयन शिक्षक पद के लिए हुआ. इस समय दुर्गेश करंजकला ब्लॉक के एक विद्यालय में तैनात हैं, जहां पर वह परिषदीय विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य को 'मोहल्ला क्लास' चलाकर संवार रहे हैं.