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जालौन के कालपी में लक्ष्मीबाई ने बनायी थी अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति

यूपी के जालौन जिले में कालपी का एक ऐतिहासिक स्थान है. यहां यमुना के किनारे बना हुआ भवन, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति की गवाही दे रहा है.

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Published : Aug 13, 2020, 9:37 AM IST

अंग्रेजो से युद्ध रणनीति का गवाह बना कालपी
अंग्रेजो से युद्ध रणनीति का गवाह बना कालपी

जालौन: शनिवार को हिंदुस्तान अपना 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. पूरा देश उन वीर सपूतों को याद कर रहा है, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपना बलिदान दिया था. जालौन का कालपी नगर ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. यहां 1857 की आजादी की लड़ाई की रणनीति कालपी में यमुना के किनारे तय हुई थी.

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था, जब अंग्रेजों की सेना ने झांसी की ओर कूच किया तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बिठूर के नाना साहब, पटना के राजा कुंवर सिंह, तात्या टोपे के साथ कालपी में यमुना के किनारे इसी विशाल भवन में बैठकर सेना को मजबूत करने और अंग्रेजों से लोहा लेने की युद्ध रणनीति तैयार की थी.

जानकारी देते संवाददाता
कालपी के विधायक नरेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि कालपी नगर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. यहां यमुना के किनारे बना हुआ भवन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति की गवाही दे रहा है. उस भवन में लगा हुआ शिलालेख उस गोपनीय मंत्रणा की गवाही देता है जो अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तैयार की गई थी.वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह बताते हैं कि सामरिक और युद्ध के लिहाज से कालपी को सबसे बेहतर केंद्र बिंदु माना गया था. क्योंकि नवाब बांदा, बिठूर के नाना साहब और तात्या टोपे की रणनीति यह थी कि यमुना पर ही अंग्रेजों की पोस्ट से लोहा लिया जाए. यहीं पर पूरी प्रथम आजादी की जंग की योजना बनाई गई थी. फिलहाल आजादी के बाद यह ऐतिहासिक धरोहर दरक रही है. इसकी गुंबद टेढे हो चुके हैं. जिला प्रशासन रखरखाव के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रहा है. उन्होंने बताया जिले में ऐसे कई स्थान हैं, जहां पर देश की आजादी के लिए वीरों की प्राणों की आहुति दी थी, लेकिन वह गुमनामी में खो गए हैं.संग्रहालय से गायब रानी का बक्सावरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह ने बताया जब रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गईं तो अंग्रेजों ने उनसे जुड़ी जगहों पर छापेमारी की, जहां पर वह ठहरी हुईं थी. कालपी में उस समय एक बक्सा मिला था, जिसमें रानी की दो तलवारें और साड़ियां मिली थी. इसकी बकायदा फर्द बनी थी और इस संग्रहालय में बक्से को रखा गया था. लेकिन आज इस बक्से का कोई अता-पता नहीं है. अंग्रेजों ने तो उसे संभाल के रखा, लेकिन जब देश आजाद हो गया और अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तो हमारी सरकार उस धरोहर को सहेज कर रखने में विफल रही.पर्यटन स्थल के रूप में कालपी का विकासकालपी से विधायक नरेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि प्रदेश की योगी सरकार ने कालपी को पर्यटन के तौर पर विकसित करने का फैसला किया है. इसके लिए कालपी में पांच धार्मिक और ऐतिहासिक जगहों को चिन्हित किया गया है. व्यास मंदिर, सूर्य मंदिर, रानी लक्ष्मीबाई का आमंत्रण स्थल और किले की दीवार सहित ऋषि पाराशर की जन्मस्थली, परासन गांव ऐतिहासिक स्थलों में शामिल हैं. इसकी जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को दी गई है, जो प्रशासन की जिम्मेदारी पर काम को पूरा किया जा रहा है.

जालौन: शनिवार को हिंदुस्तान अपना 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. पूरा देश उन वीर सपूतों को याद कर रहा है, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपना बलिदान दिया था. जालौन का कालपी नगर ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. यहां 1857 की आजादी की लड़ाई की रणनीति कालपी में यमुना के किनारे तय हुई थी.

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था, जब अंग्रेजों की सेना ने झांसी की ओर कूच किया तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बिठूर के नाना साहब, पटना के राजा कुंवर सिंह, तात्या टोपे के साथ कालपी में यमुना के किनारे इसी विशाल भवन में बैठकर सेना को मजबूत करने और अंग्रेजों से लोहा लेने की युद्ध रणनीति तैयार की थी.

जानकारी देते संवाददाता
कालपी के विधायक नरेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि कालपी नगर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. यहां यमुना के किनारे बना हुआ भवन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति की गवाही दे रहा है. उस भवन में लगा हुआ शिलालेख उस गोपनीय मंत्रणा की गवाही देता है जो अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तैयार की गई थी.वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह बताते हैं कि सामरिक और युद्ध के लिहाज से कालपी को सबसे बेहतर केंद्र बिंदु माना गया था. क्योंकि नवाब बांदा, बिठूर के नाना साहब और तात्या टोपे की रणनीति यह थी कि यमुना पर ही अंग्रेजों की पोस्ट से लोहा लिया जाए. यहीं पर पूरी प्रथम आजादी की जंग की योजना बनाई गई थी. फिलहाल आजादी के बाद यह ऐतिहासिक धरोहर दरक रही है. इसकी गुंबद टेढे हो चुके हैं. जिला प्रशासन रखरखाव के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रहा है. उन्होंने बताया जिले में ऐसे कई स्थान हैं, जहां पर देश की आजादी के लिए वीरों की प्राणों की आहुति दी थी, लेकिन वह गुमनामी में खो गए हैं.संग्रहालय से गायब रानी का बक्सावरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह ने बताया जब रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गईं तो अंग्रेजों ने उनसे जुड़ी जगहों पर छापेमारी की, जहां पर वह ठहरी हुईं थी. कालपी में उस समय एक बक्सा मिला था, जिसमें रानी की दो तलवारें और साड़ियां मिली थी. इसकी बकायदा फर्द बनी थी और इस संग्रहालय में बक्से को रखा गया था. लेकिन आज इस बक्से का कोई अता-पता नहीं है. अंग्रेजों ने तो उसे संभाल के रखा, लेकिन जब देश आजाद हो गया और अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तो हमारी सरकार उस धरोहर को सहेज कर रखने में विफल रही.पर्यटन स्थल के रूप में कालपी का विकासकालपी से विधायक नरेंद्र सिंह यादव बताते हैं कि प्रदेश की योगी सरकार ने कालपी को पर्यटन के तौर पर विकसित करने का फैसला किया है. इसके लिए कालपी में पांच धार्मिक और ऐतिहासिक जगहों को चिन्हित किया गया है. व्यास मंदिर, सूर्य मंदिर, रानी लक्ष्मीबाई का आमंत्रण स्थल और किले की दीवार सहित ऋषि पाराशर की जन्मस्थली, परासन गांव ऐतिहासिक स्थलों में शामिल हैं. इसकी जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को दी गई है, जो प्रशासन की जिम्मेदारी पर काम को पूरा किया जा रहा है.
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