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हॉकी टीम की जीत से खुश PM Modi ने कोच पीयूष को दी बधाई, गांव में धूम

टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में कांस्य पदक (Bronze Medal) जीतकर इतिहास रचने वाली भारतीय हॉकी टीम (Indian hockey team) के कोच पीयूष दुबे (Piyush Dubey) उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के रहने वाले हैं. टीम की जीत के बाद पीएम मोदी द्वारा दी गई बधाई के बाद पीयूष दुबे के परिवार और गांव के लोग बहुत खुश हैं.

हॉकी कोच पीयूष दुबे के गांव में खुशी का माहौल.
हॉकी कोच पीयूष दुबे के गांव में खुशी का माहौल.
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Published : Aug 6, 2021, 7:31 PM IST

हाथरस: हॉकी में 41 साल बाद पदक का सूखा खत्म करने के बाद टोक्यो ओलंपिक (Olympic Games Tokyo 2020) में पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम (Indian hockey team) के सहायक कोच पीयूष दुबे (Piyush Dubey) के हाथरस सादाबाद तहसील के गांव रसमई में खुशी का माहौल है. टीम की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टीम को बधाई देने पर परिवार व गांव के लोगों में खुशी का ठिकाना नहीं है. पीयूष के चाचा ने बताया कि जीत के बाद गांव में त्योहार जैसा माहौल है.

हॉकी कोच पीयूष दुबे के गांव में खुशी का माहौल.


पीयूष दुबे के पिता गर्वेन्द्र सिंह दुबे सरकारी कर्मचारी थे. मां स्नेह लता सरकारी शिक्षक थी. बच्चों को अच्छी एजुकेशन मिल सके, इसलिए अपनी नौकरी में इलाहाबाद में हुई तैनाती के दौरान उन्होंने वहीं अपना मकान बनवा लिया. वहीं पीयूष के सभी भाई-बहन पढ़कर-लिखकर बड़े हुए. पीयूष ने 1995 में हाईस्कूल और 1997 में इंटर की परीक्षा पास की. उसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए-एमए किया. पीयूष के बड़े भाई श्रवण दुबे ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि शुरू से उनके घर में खेल का माहौल था. उनके दादा जी खेमकरन सिंह दुबे रेसलर थे. उनके पिता भी तैराकी, घुड़सवारी सहित तमाम खेलों का शौक रखते थे. श्रवण दुबे ने बताया कि वह खुद भी गुरुग्राम में वर्ल्ड बॉडी बिल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.

श्रवण दुबे ने बताया कि पीयूष पहले बेड-टी के बिना अपना बिस्तर नहीं छोड़ा करते थे. बाद में उनके एक चाचा धर्मेंद्र आया करते थे, उन्हें तैराकी का शौक था. पीयूष को भी तैराकी का शोक लगा और वह अपनी टीवीएस मोपेड से 5-6 किलोमीटर तैराकी सीखने नदी तक जाने लगा था. वहीं पास में ही जब वह कराटे की प्रैक्टिस किया करते थे. उसी मैदान में लड़के हॉकी खेला करते थे. वहीं उन्होंने पीयूष को हॉकी खेलने को कहा, फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

श्रवण दुबे ने बताया कि उनके भाई पीयूष अंडा, मीट, मछली की तो छोड़िए वह प्याज और लहसुन तक का सेवन नहीं करते हैं. आज भी वह 12 प्रकार के तिलक अपने शरीर पर लगाते हैं और इसका उन्हें पूरा ज्ञान भी है. उन्होंने एक संस्मरण सुनाया कि जब वह हॉकी का कोर्स करने लंदन भेजे गए थे, जब वहां उनसे कहा गया कि अपनी सिविल ड्रेस पहनें तो उन्होंने वहां धोती-कुर्ता पहना था. उन्होंने यह भी बताया कि उनको 150 प्रकार की धोती बांधना आता है. आज भी उन्हें अपने भारतीय परिवेश में रहना बेहद पसंद है.

टीम की जीत की खबर पाकर पीयूष दुबे के गांव के लोग बैंडबाजे की धुन पर जमकर नाचे झूमे. ग्रामीणों में काफी खुशी का माहौल है. पीयूष के चाचा उदयवीर की माने तो पीयूष ने भारत का नाम रोशन किया है, सभी खुश हैं. उन्होंने कहा मेरे परिवार, मेरे पड़ोस, मेरे गांव मेरे देश में बहुत खुशी है. गांव में होली दीवाली जैसा माहौल है. उन्होंने बताया कि उसका आज भी गांव से बेहद लगाव है.

इसे भी पढ़ें-हाथरस कांड के बाद पुलिस में क्या आया बदलाव, जानने के लिए पढ़िए ये ख़बर

हाथरस: हॉकी में 41 साल बाद पदक का सूखा खत्म करने के बाद टोक्यो ओलंपिक (Olympic Games Tokyo 2020) में पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम (Indian hockey team) के सहायक कोच पीयूष दुबे (Piyush Dubey) के हाथरस सादाबाद तहसील के गांव रसमई में खुशी का माहौल है. टीम की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टीम को बधाई देने पर परिवार व गांव के लोगों में खुशी का ठिकाना नहीं है. पीयूष के चाचा ने बताया कि जीत के बाद गांव में त्योहार जैसा माहौल है.

हॉकी कोच पीयूष दुबे के गांव में खुशी का माहौल.


पीयूष दुबे के पिता गर्वेन्द्र सिंह दुबे सरकारी कर्मचारी थे. मां स्नेह लता सरकारी शिक्षक थी. बच्चों को अच्छी एजुकेशन मिल सके, इसलिए अपनी नौकरी में इलाहाबाद में हुई तैनाती के दौरान उन्होंने वहीं अपना मकान बनवा लिया. वहीं पीयूष के सभी भाई-बहन पढ़कर-लिखकर बड़े हुए. पीयूष ने 1995 में हाईस्कूल और 1997 में इंटर की परीक्षा पास की. उसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए-एमए किया. पीयूष के बड़े भाई श्रवण दुबे ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि शुरू से उनके घर में खेल का माहौल था. उनके दादा जी खेमकरन सिंह दुबे रेसलर थे. उनके पिता भी तैराकी, घुड़सवारी सहित तमाम खेलों का शौक रखते थे. श्रवण दुबे ने बताया कि वह खुद भी गुरुग्राम में वर्ल्ड बॉडी बिल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.

श्रवण दुबे ने बताया कि पीयूष पहले बेड-टी के बिना अपना बिस्तर नहीं छोड़ा करते थे. बाद में उनके एक चाचा धर्मेंद्र आया करते थे, उन्हें तैराकी का शौक था. पीयूष को भी तैराकी का शोक लगा और वह अपनी टीवीएस मोपेड से 5-6 किलोमीटर तैराकी सीखने नदी तक जाने लगा था. वहीं पास में ही जब वह कराटे की प्रैक्टिस किया करते थे. उसी मैदान में लड़के हॉकी खेला करते थे. वहीं उन्होंने पीयूष को हॉकी खेलने को कहा, फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

श्रवण दुबे ने बताया कि उनके भाई पीयूष अंडा, मीट, मछली की तो छोड़िए वह प्याज और लहसुन तक का सेवन नहीं करते हैं. आज भी वह 12 प्रकार के तिलक अपने शरीर पर लगाते हैं और इसका उन्हें पूरा ज्ञान भी है. उन्होंने एक संस्मरण सुनाया कि जब वह हॉकी का कोर्स करने लंदन भेजे गए थे, जब वहां उनसे कहा गया कि अपनी सिविल ड्रेस पहनें तो उन्होंने वहां धोती-कुर्ता पहना था. उन्होंने यह भी बताया कि उनको 150 प्रकार की धोती बांधना आता है. आज भी उन्हें अपने भारतीय परिवेश में रहना बेहद पसंद है.

टीम की जीत की खबर पाकर पीयूष दुबे के गांव के लोग बैंडबाजे की धुन पर जमकर नाचे झूमे. ग्रामीणों में काफी खुशी का माहौल है. पीयूष के चाचा उदयवीर की माने तो पीयूष ने भारत का नाम रोशन किया है, सभी खुश हैं. उन्होंने कहा मेरे परिवार, मेरे पड़ोस, मेरे गांव मेरे देश में बहुत खुशी है. गांव में होली दीवाली जैसा माहौल है. उन्होंने बताया कि उसका आज भी गांव से बेहद लगाव है.

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