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'स्वांग' श्री कृष्ण के जन्म के समय की विधा, जानें - लोक कला का पतन

'स्वांग' को श्री कृष्ण के जन्म के समय की विधा मानी जाती है. काशी के लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा का मानना है कि स्वांग विधा भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय की विधा है.

लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा
लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा
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Published : Jan 15, 2021, 5:51 AM IST

हाथरस: काशी के लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा हाथरस स्वांग सम्राट पंडित नथाराम की 149वीं जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने आए हुए थे. काशी के लोक कलाविद अष्टभुजा मिश्रा का मानना है कि स्वांग विधा भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय की विधा है. उन्होंने इस विधा के विलुप्त होने पर कहा कि हम अपने विषय में इस पर विचार करने का प्रयास करेंगे और उन तमाम दूषणों को निवारण करने का प्रयास करेंगे, जो इस समृद्ध विधा को अभी पीछे छोड़े हुए हैं.

जानकारी देते लोक कला विद.

भगवान शिव ने रचा स्वांग

लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा ने बताया कि स्वांग संगीत और भगत को एक आकार कर दें, तो इसका इतिहास प्राचीन नहीं बल्कि प्राचीनतम हो जाता है. उन्होंने बताया कि जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, तब भगवान शिव ने स्वयं स्वांग रचा था. और स्त्री का वेश बनाकर नंद बाबा के घर आए थे. उन्होंने बताया कि हम जो स्वांग, संगीत से जुड़े लोग और कलाकार हैं, हम अपना इतिहास वहां से मानते हैं. उन्होंने कहा तब का शिव का आदि वाद्य यंत्र डमरू को यदि दो भागों में बांट दिया जाए तो हमारा आदि वाद्ययंत्र नक्कारा बन गया है.

लोक कला का पतन
उन्होंने लोक कला के पतन पर कहा कि जिन गूढ़ चीजों को इसमें संजोया गया है, आज उसे समझने की कमी कलाकारों में हो गई है. इसलिए वह इससे विरक्त होते जा रहे हैं. हमें जरूरत है उन कमियों को दूर करने की. उन गूढ़ चीजों को अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की, ताकि वह सरल हो सकें. सरल होगी तो लोग हमारी तरफ आगे आएंगे. अष्टभुजा मिश्रा ने कहा कि हम इसके पतन के विषय पर भी विचार करने का प्रयास करेंगे. उन तमाम दूषणों के निवारण करने का प्रयास करेंगे, जो इस समृद्धि विधा को अभी पीछे छोड़े हुए हैं.

हाथरस: काशी के लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा हाथरस स्वांग सम्राट पंडित नथाराम की 149वीं जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने आए हुए थे. काशी के लोक कलाविद अष्टभुजा मिश्रा का मानना है कि स्वांग विधा भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय की विधा है. उन्होंने इस विधा के विलुप्त होने पर कहा कि हम अपने विषय में इस पर विचार करने का प्रयास करेंगे और उन तमाम दूषणों को निवारण करने का प्रयास करेंगे, जो इस समृद्ध विधा को अभी पीछे छोड़े हुए हैं.

जानकारी देते लोक कला विद.

भगवान शिव ने रचा स्वांग

लोक कला विद अष्टभुजा मिश्रा ने बताया कि स्वांग संगीत और भगत को एक आकार कर दें, तो इसका इतिहास प्राचीन नहीं बल्कि प्राचीनतम हो जाता है. उन्होंने बताया कि जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, तब भगवान शिव ने स्वयं स्वांग रचा था. और स्त्री का वेश बनाकर नंद बाबा के घर आए थे. उन्होंने बताया कि हम जो स्वांग, संगीत से जुड़े लोग और कलाकार हैं, हम अपना इतिहास वहां से मानते हैं. उन्होंने कहा तब का शिव का आदि वाद्य यंत्र डमरू को यदि दो भागों में बांट दिया जाए तो हमारा आदि वाद्ययंत्र नक्कारा बन गया है.

लोक कला का पतन
उन्होंने लोक कला के पतन पर कहा कि जिन गूढ़ चीजों को इसमें संजोया गया है, आज उसे समझने की कमी कलाकारों में हो गई है. इसलिए वह इससे विरक्त होते जा रहे हैं. हमें जरूरत है उन कमियों को दूर करने की. उन गूढ़ चीजों को अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की, ताकि वह सरल हो सकें. सरल होगी तो लोग हमारी तरफ आगे आएंगे. अष्टभुजा मिश्रा ने कहा कि हम इसके पतन के विषय पर भी विचार करने का प्रयास करेंगे. उन तमाम दूषणों के निवारण करने का प्रयास करेंगे, जो इस समृद्धि विधा को अभी पीछे छोड़े हुए हैं.

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