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बोले हाथरसवासी, आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन

चुनाव आयोग की सख्ती के बाद प्रत्याशियों के खर्चे पर लगाम लगी हो या न लगी हो, पर चुनाव का आनंद खत्म हो गया है. पहले चुनाव की घोषणा होते ही पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल बन जाता था. बच्चे पार्टियों से बेखबर उनके बिल्ले-झंडे इकट्ठे कर सभी के पक्ष में नारेबाजी करते दिख जाते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होता.

आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन
आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन
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Published : Oct 24, 2021, 2:38 PM IST

हाथरस: तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के समय में चुनाव आयोग की सख्ती के बाद से प्रत्याशियों के खर्चे पर लगाम लगी हो या न लगी हो, पर चुनाव का आनन्द धीरे-धीरे खत्म हो गया है. पहले चुनाव की घोषणा होते ही पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल हो जाता था. जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आती थी, ढोल,नगाड़ों के साथ नारेबाजी का शोर गाजे-बाजे की धुन से गालियां गूंज उठती थी. हर गली मोहल्ले में प्रत्याशी के आने का इंतजार रहता था.

राजनीति से बेखबर उस समय बच्चों का पूरा ध्यान, बिल्ले,झंडी के कलेक्शन पर रहता था. एक-एक बच्चे पर दर्जनों बिल्ले दसियों झंडे अलग-अलग पार्टी के रहते थे. उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं होता था कि कौन जीतेगा और सरकार किसकी बनेगी. उन्हें तो केवल मतलब रहता था सिर्फ इनके कलेक्शन से. दल और प्रत्याशी अपने वोटों की गिनती पर ध्यान लगाते थे.

आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन

वहीं, बच्चे अपने बिल्ले-झंडे की गिनती पर ध्यान रखते थे. चुनाव आयोग की सख्ती से गुंडागर्दी तो खत्म हुई, लेकिन जिन लोगों को चुनाव से अस्थायी रोजगार उस दौरान मिलता था, उनका रोजगार खत्म हो गया. कुछ लोगों को नारे लगाने के पैसे मिलते थे तो कुछ को दोनों समय का भोजन भी मिलता था. गाड़ियों में जो लोग प्रत्याशी के साथ रात- दिन लगे रहते थे, जिन्हें प्रत्याशी की हार-जीत से कोई मतलब नहीं रहता था, उन्हें तो सिर्फ दोनों टाइम का लंगर दिखता था.

इसे भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: UP में भाजपा के लिए काल बन सकते हैं किसान, अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!

प्रत्याशी के मोहल्ले में पहुंचते ही बच्चों की भीड़ लग जाया करती थी

एक स्थानीय विद्यासागर ने बताया कि चुनाव में जो आनंद पहले आया करता था,वो अब नहीं है. छोटे-बड़े बच्चों को झंडे,बैनर और बिल्ले मिल जाना आनंद होता था. चुनाव में गली-मोहल्लों में जैसे ही प्रत्याशी पहुंचता था,वहां बच्चों की भीड़ लग जाया करती थी. प्रत्याशी के समर्थन में वे नारों का माहौल भी बना देते थे. उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती थी कि कौन जीतेगा और कौन-सी पार्टी का प्रत्याशी हारेगा. वो उनके लिए आनंद का विषय था, जो सख्ती के बाद निश्चित तौर पर खत्म हो गया है.

आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन
आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन

मंडी में मिले एक बुजुर्ग सोबरन सिंह ने बताया कि चुनावों में पहले बहुत हल्ला हुआ करता था. बहुत सारे वाहन घूमते थे. अब तो चुपचाप एकाध कार घूमती है. साथ ही उन्होंने बताया कि किसानों की फसल का भाव बढ़ा दिया जाए तो बहुत मेहरबानी हो जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि जाति-पाति जिस दिन खत्म हो जाएगी उस दिन हमारा देश सबसे आगे निकल जाएगा. भले ही सालों बीत गए हो कई चुनाव हो चुके हों, लेकिन लोगों को आज भी चुनावों के वो पुराने दिन याद आ ही जाते हैं.

हाथरस: तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के समय में चुनाव आयोग की सख्ती के बाद से प्रत्याशियों के खर्चे पर लगाम लगी हो या न लगी हो, पर चुनाव का आनन्द धीरे-धीरे खत्म हो गया है. पहले चुनाव की घोषणा होते ही पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल हो जाता था. जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आती थी, ढोल,नगाड़ों के साथ नारेबाजी का शोर गाजे-बाजे की धुन से गालियां गूंज उठती थी. हर गली मोहल्ले में प्रत्याशी के आने का इंतजार रहता था.

राजनीति से बेखबर उस समय बच्चों का पूरा ध्यान, बिल्ले,झंडी के कलेक्शन पर रहता था. एक-एक बच्चे पर दर्जनों बिल्ले दसियों झंडे अलग-अलग पार्टी के रहते थे. उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं होता था कि कौन जीतेगा और सरकार किसकी बनेगी. उन्हें तो केवल मतलब रहता था सिर्फ इनके कलेक्शन से. दल और प्रत्याशी अपने वोटों की गिनती पर ध्यान लगाते थे.

आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन

वहीं, बच्चे अपने बिल्ले-झंडे की गिनती पर ध्यान रखते थे. चुनाव आयोग की सख्ती से गुंडागर्दी तो खत्म हुई, लेकिन जिन लोगों को चुनाव से अस्थायी रोजगार उस दौरान मिलता था, उनका रोजगार खत्म हो गया. कुछ लोगों को नारे लगाने के पैसे मिलते थे तो कुछ को दोनों समय का भोजन भी मिलता था. गाड़ियों में जो लोग प्रत्याशी के साथ रात- दिन लगे रहते थे, जिन्हें प्रत्याशी की हार-जीत से कोई मतलब नहीं रहता था, उन्हें तो सिर्फ दोनों टाइम का लंगर दिखता था.

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प्रत्याशी के मोहल्ले में पहुंचते ही बच्चों की भीड़ लग जाया करती थी

एक स्थानीय विद्यासागर ने बताया कि चुनाव में जो आनंद पहले आया करता था,वो अब नहीं है. छोटे-बड़े बच्चों को झंडे,बैनर और बिल्ले मिल जाना आनंद होता था. चुनाव में गली-मोहल्लों में जैसे ही प्रत्याशी पहुंचता था,वहां बच्चों की भीड़ लग जाया करती थी. प्रत्याशी के समर्थन में वे नारों का माहौल भी बना देते थे. उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती थी कि कौन जीतेगा और कौन-सी पार्टी का प्रत्याशी हारेगा. वो उनके लिए आनंद का विषय था, जो सख्ती के बाद निश्चित तौर पर खत्म हो गया है.

आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन
आज भी याद आते हैं चुनाव के वे पुराने दिन

मंडी में मिले एक बुजुर्ग सोबरन सिंह ने बताया कि चुनावों में पहले बहुत हल्ला हुआ करता था. बहुत सारे वाहन घूमते थे. अब तो चुपचाप एकाध कार घूमती है. साथ ही उन्होंने बताया कि किसानों की फसल का भाव बढ़ा दिया जाए तो बहुत मेहरबानी हो जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि जाति-पाति जिस दिन खत्म हो जाएगी उस दिन हमारा देश सबसे आगे निकल जाएगा. भले ही सालों बीत गए हो कई चुनाव हो चुके हों, लेकिन लोगों को आज भी चुनावों के वो पुराने दिन याद आ ही जाते हैं.

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