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हाथरस: इंटरनेट के 'धुंध' में कहीं खो न जाए स्वांग और नौटंकी की विधाएं

किसी समय में धूम मचाने वाली स्वांग-नौटंकी विधा लुप्त होने के करीब है. अब यह विधा मोबाइल और इंटरनेट की क्रांति की शिकार हो चुकी है. हाथरस में आयोजित नौटंकी के दौरान स्वांग कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से ईटीवी भारत ने बातचीत की.

लुप्त होने के करीब स्वांग-नौटंकी विधा.
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Published : Sep 8, 2019, 9:01 AM IST

हाथरस: किसी समय धूम मचाने वाली नौटंकी अब सिर्फ बातों की रह गई है. अब यह मोबाइल क्रांति की शिकार हो चुकी है. इस विधा के भरोसे रोजगार चलाने वाले अब अपनी रोजी रोटी को लेकर चिंतित हैं. क्योंकि यह वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी इसी के सहारे गुजर-बसर करते आ रहे थे. जिले में आयोजित नौटंकी के दौरान स्वांग कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से ईटीवी भारत ने बातचीत की.

लुप्त होने के करीब स्वांग-नौटंकी विधा.

ईटीवी भारत ने कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से की बातचीत-
उन्होंने बताया कि यह बहुत प्राचीन विधा है. पुरानी लोक कला है. पहले यह मनोरंजन का साधन हुआ करती थी. स्वांग, नौटंकी के कलाकारों का मानना है कि मोबाइल क्रांति का इस विधा पर ज्यादा असर पड़ा है. अब कार्यक्रमों में दर्शकों के न आने से भी यह लोग परेशान हैं. उनका कहना है कि दर्शकों के न आने से कलाकारों का मनोबल टूट रहा है.

दो-चार सालों में खत्म हो जाएगी यह विधा-
कलाकारों का मानना है कि यह विधा आने वाले दो-चार सालों में समाप्त हो जाएगी. उनका कहना है कि सरकार भी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. किशन सिंह ने कहा कि अब तो मेले भी खत्म होते जा रहे हैं. हमारे देश में लोगों के बीच प्यार-मोहब्बत नहीं रहा है. लोग एक-दूसरे से ईर्ष्या कर रहे हैं.

मेला मेल मिलाप के कार्यक्रम होते थे. मन से संबंध रखते थे. अब इसमें सहयोग देने वाले कम होते हैं. व्यवधान डालने वाले ज्यादा होने लगे हैं. इसलिए भी यह कला लुप्त होती चली जा रही है. कलाकारों को प्रोत्साहन न मिलने की वजह से कुछ समय पहले तक दिखाई और सुनाई देने वाली लोककला आला, ढोला, जिकड़ी, नौटंकी, भजन, ख्याल अब सुनने को नहीं मिलते हैं.

पढ़ें:- हाथरस: मेला श्री दाऊजी महाराज में कुश्ती दंगल का किया गया आयोजन

हाथरस: किसी समय धूम मचाने वाली नौटंकी अब सिर्फ बातों की रह गई है. अब यह मोबाइल क्रांति की शिकार हो चुकी है. इस विधा के भरोसे रोजगार चलाने वाले अब अपनी रोजी रोटी को लेकर चिंतित हैं. क्योंकि यह वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी इसी के सहारे गुजर-बसर करते आ रहे थे. जिले में आयोजित नौटंकी के दौरान स्वांग कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से ईटीवी भारत ने बातचीत की.

लुप्त होने के करीब स्वांग-नौटंकी विधा.

ईटीवी भारत ने कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से की बातचीत-
उन्होंने बताया कि यह बहुत प्राचीन विधा है. पुरानी लोक कला है. पहले यह मनोरंजन का साधन हुआ करती थी. स्वांग, नौटंकी के कलाकारों का मानना है कि मोबाइल क्रांति का इस विधा पर ज्यादा असर पड़ा है. अब कार्यक्रमों में दर्शकों के न आने से भी यह लोग परेशान हैं. उनका कहना है कि दर्शकों के न आने से कलाकारों का मनोबल टूट रहा है.

दो-चार सालों में खत्म हो जाएगी यह विधा-
कलाकारों का मानना है कि यह विधा आने वाले दो-चार सालों में समाप्त हो जाएगी. उनका कहना है कि सरकार भी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. किशन सिंह ने कहा कि अब तो मेले भी खत्म होते जा रहे हैं. हमारे देश में लोगों के बीच प्यार-मोहब्बत नहीं रहा है. लोग एक-दूसरे से ईर्ष्या कर रहे हैं.

मेला मेल मिलाप के कार्यक्रम होते थे. मन से संबंध रखते थे. अब इसमें सहयोग देने वाले कम होते हैं. व्यवधान डालने वाले ज्यादा होने लगे हैं. इसलिए भी यह कला लुप्त होती चली जा रही है. कलाकारों को प्रोत्साहन न मिलने की वजह से कुछ समय पहले तक दिखाई और सुनाई देने वाली लोककला आला, ढोला, जिकड़ी, नौटंकी, भजन, ख्याल अब सुनने को नहीं मिलते हैं.

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एंकर- एक जुमला है कि 'नौटंकी मत कर' नौटंकी क्या है ?किसे कहते हैं यह कोई नहीं जानेगा। क्योंकि किसी समय में धूम मचाने वाली है विधा अब लुप्त होने के करीब है।पहले इस विधा पर टेलीविजन की मार थी ,बची -कुची कसर मोबाइल और इंटरनेट ने कर दी है। स्वांग,नौटंकी जुड़े कलाकारों का तो यही कहना है।


Body:वीओ1- किसी समय धूम मचाने वाली नौटंकी आब सिर्फ बातों की ही रह गई है।अब यह मोबाइल क्रांति की शिकार हो चुकी है। इस विधा के भरोसे अपना रोजगार चलाने वाले अब अपनी रोजी को लेकर चिंतित हैं। इससे भी बड़ी चिंता उन्हें यह खाए जा रही है कि अब उनकी बच्चों का क्या होगा। क्योंकि यह बरसों से पीढ़ी दर पीढ़ी इसी के सहारे गुजर-बसर करते आ रहे थे। नौटंकी,स्वांग कलाकार किशन सिंह सिसोदिया बताते हैं कि यह बहुत ही प्राचीन विधा है, पुरानी लोक कला है। पहले यह मनोरंजन का साधन हुआ करती थी। अब तो लोग मोबाइल से भी अपना मनोरंजन कर लेते हैं।स्वांग, नौटंकी के कलाकारों का मानना है कि मोबाइल क्रांति का इस विधा पर ज्यादा असर पड़ा है ।अब कार्यक्रमों में दर्शकों के न आने से भी यह लोग परेशान और हैरान है ।उनका कहना है कि जब दर्शक ही नहीं आएंगे तो कलाकारों का मनोबल टूट रहा है। कलाकारों का मानना है कि जब तक पुराने कलाकार चल रहे हैं तभी तक यह विधा चलेगी और आने वाले दो -चार सालों में यह विधा समाप्त हो जाएगी। उनका कहना है कि सरकार भी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है।किशन सिंह बताते हैं कि पहले समय में इसे देखने वाले बहुत हुआ करते थे तो कलाकारों के बच्चे भी इसी काम को करते थे। अब इस काम से उनकी ही पूर्ति नहीं हो पा रही है तो अब अपने बच्चों को क्यों सिखाएंगे। किशन सिंह ने कहा कि अब तो मेले भी खत्म होते जा रहे हैं। हमारे देश में लोगों के बीच प्यार- मोहब्बत नहीं रहा है ।लोग एक दूसरे से ईर्ष्या कर रहे हैं। मेला मेल मिलाप के कार्यक्रम होते थे मन से संबंध रखते थे।अब इसमें सहयोग देने वाले कम होते हैं व्यवधान डालने वाले ज्यादा होने लगे हैं ।इसलिए भी यह कला लुप्त होती चली जा रही है।
बाईट1- किशन सिंह सिसोदिया -स्वांग-नौटंकी कलाकार


Conclusion:वीओ2- कलाकारों को प्रोत्साहन न मिलने की वजह से कुछ समय पहले तक दिखाई और सुनाई देने वाली लोककला आला, ढोला, जिकड़ी ,नौटंकी ,भजन, ख्याल अब सुनने को नहीं मिलते हैं।
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