हाथरस: किसी समय धूम मचाने वाली नौटंकी अब सिर्फ बातों की रह गई है. अब यह मोबाइल क्रांति की शिकार हो चुकी है. इस विधा के भरोसे रोजगार चलाने वाले अब अपनी रोजी रोटी को लेकर चिंतित हैं. क्योंकि यह वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी इसी के सहारे गुजर-बसर करते आ रहे थे. जिले में आयोजित नौटंकी के दौरान स्वांग कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से ईटीवी भारत ने बातचीत की.
ईटीवी भारत ने कलाकार किशन सिंह सिसोदिया से की बातचीत-
उन्होंने बताया कि यह बहुत प्राचीन विधा है. पुरानी लोक कला है. पहले यह मनोरंजन का साधन हुआ करती थी. स्वांग, नौटंकी के कलाकारों का मानना है कि मोबाइल क्रांति का इस विधा पर ज्यादा असर पड़ा है. अब कार्यक्रमों में दर्शकों के न आने से भी यह लोग परेशान हैं. उनका कहना है कि दर्शकों के न आने से कलाकारों का मनोबल टूट रहा है.
दो-चार सालों में खत्म हो जाएगी यह विधा-
कलाकारों का मानना है कि यह विधा आने वाले दो-चार सालों में समाप्त हो जाएगी. उनका कहना है कि सरकार भी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. किशन सिंह ने कहा कि अब तो मेले भी खत्म होते जा रहे हैं. हमारे देश में लोगों के बीच प्यार-मोहब्बत नहीं रहा है. लोग एक-दूसरे से ईर्ष्या कर रहे हैं.
मेला मेल मिलाप के कार्यक्रम होते थे. मन से संबंध रखते थे. अब इसमें सहयोग देने वाले कम होते हैं. व्यवधान डालने वाले ज्यादा होने लगे हैं. इसलिए भी यह कला लुप्त होती चली जा रही है. कलाकारों को प्रोत्साहन न मिलने की वजह से कुछ समय पहले तक दिखाई और सुनाई देने वाली लोककला आला, ढोला, जिकड़ी, नौटंकी, भजन, ख्याल अब सुनने को नहीं मिलते हैं.
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