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हाथरस में पराली और कूड़ा जलाने से प्रदूषित हुई हवा

दिल्ली और आस-पास के इलाकों के बाद यूपी के हाथरस में भी हवा जहरीली होती जा रही है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यहां की वायु भी प्रदूषित बताई गई है. इसकी मुख्य वजह पराली और कूड़ा जलाना बताई जा रही है.

पराली और कूड़ा जलाने से प्रदूशित हुई हवा
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Published : Nov 16, 2019, 8:03 AM IST

हाथरस: दिल्ली और आस-पास के इलाकों के साथ-साथ जिले की भी हवा जहरीली होती जा रही है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में भी यहां की वायु प्रदूषित बताई गई है. इसकी मुख्य वजह पराली और कूड़ा जलाना बताई जा रही है. हालांकि जनपद में अभी तक पराली जलाने का एक ही मामला सामने आया है.

पराली और कूड़ा जलाने से प्रदूशित हुई हवा.

जिले में हवा के प्रदूषित होने से लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी है. कृषि अधिकारी और वैज्ञानिक ग्रामीणों को पराली जलाने से होने वाले शारीरिक नुकसान और भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने संबंधी जानकारी देने में जुटे हुए हैं.

यह भी पढ़ें: प्रयागराज में 19 नवम्बर को इंदिरा मैराथन का होगा आयोजन

किसान रामबाबू शर्मा का कहना है कि पराली जलाने से किसान को कोई खास फायदा नहीं होता है. सिर्फ खेत आगे की फसल के लिए जल्दी तैयार हो जाता है. पराली जलाने से हवा तो प्रदूषित होती ही है. किसान को पराली जलाने का नुकसान भी झेलना पड़ता है. उसके खेत में जीवांश कार्बन जो जमीन के अंदर होते है वह खत्म हो जाता है. किसान चाहते हैं कि सरकार ऐसी विधि अपनाए, जिससे किसान का भी फायदा हो और प्रदूषण भी न हो.

कृषि उपनिदेशक एचएन सिंह का कहना है कि पराली जलाने पर जुर्माने का प्रावधान है. हालांकि जनपद में अभी तक पराली जलाने का एक ही मामला सामने आया है. वैसे धान की फसल की कटाई अधिकांश हाथों से होती है और उसका प्रयोग पशुओं के चारे में किया जाता है. इसलिए यहां का किसान फसल की पराली और अवशेष जलाता नहीं है.

हाथरस: दिल्ली और आस-पास के इलाकों के साथ-साथ जिले की भी हवा जहरीली होती जा रही है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में भी यहां की वायु प्रदूषित बताई गई है. इसकी मुख्य वजह पराली और कूड़ा जलाना बताई जा रही है. हालांकि जनपद में अभी तक पराली जलाने का एक ही मामला सामने आया है.

पराली और कूड़ा जलाने से प्रदूशित हुई हवा.

जिले में हवा के प्रदूषित होने से लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी है. कृषि अधिकारी और वैज्ञानिक ग्रामीणों को पराली जलाने से होने वाले शारीरिक नुकसान और भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने संबंधी जानकारी देने में जुटे हुए हैं.

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किसान रामबाबू शर्मा का कहना है कि पराली जलाने से किसान को कोई खास फायदा नहीं होता है. सिर्फ खेत आगे की फसल के लिए जल्दी तैयार हो जाता है. पराली जलाने से हवा तो प्रदूषित होती ही है. किसान को पराली जलाने का नुकसान भी झेलना पड़ता है. उसके खेत में जीवांश कार्बन जो जमीन के अंदर होते है वह खत्म हो जाता है. किसान चाहते हैं कि सरकार ऐसी विधि अपनाए, जिससे किसान का भी फायदा हो और प्रदूषण भी न हो.

कृषि उपनिदेशक एचएन सिंह का कहना है कि पराली जलाने पर जुर्माने का प्रावधान है. हालांकि जनपद में अभी तक पराली जलाने का एक ही मामला सामने आया है. वैसे धान की फसल की कटाई अधिकांश हाथों से होती है और उसका प्रयोग पशुओं के चारे में किया जाता है. इसलिए यहां का किसान फसल की पराली और अवशेष जलाता नहीं है.

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एंकर- दिल्ली और आसपास के साथ ही साथ हाथरस जिले में हवा जहरीली होती जा रही है। प्रदूषण इसकी की मुख्य वजह मानी जा रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में भी यहां की वायु प्रदूषित बताई गई है।इसकी मुख्य वजह पराली व कूड़ा जलाना बताई जा रही है ।हालांकि हाथरस में अभी तक पराली जलाने का एक ही मामला सामने आया है। कृषि अधिकारी ने बताते हैं कि जिले में अधिकांश धान की फसल हाथ से काटी जाती है जिसका उपयोग पशुओं के चारे में किया जाता है।


Body:वीओ1-जिले में हवा के प्रदूषित होने से लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी है। कृषि अधिकारी और वैज्ञानिक ग्रामीणों को पराली जलाने से होने वाले शारीरिक नुकसान व भूमि की उर्वरा शक्ति काम होने संबंधी जानकारी देने में जुटे हैं। हालांकि पराली जलाने का अभी तक जिले में सिर्फ एक ही मामला सामने आया है। किसान रामूराम बाबूलाल शर्मा ने बताया कि पराली जलाने से किसान को कोई खास फायदा नहीं होता है सिर्फ उसका खेत आगे की फसल के लिए जल्दी तैयार हो जाता है इसलिए उसे जलाता है। पराली जलाने से हवा तो प्रदूषित होती ही है ।किसान को पराली जलाने का नुकसान भी झेलना पड़ता है। उसके खेत में जीवांश कार्बन जो जमीन के अंदर होते है वह खत्म हो जाता है।किसान चाहते हैं कि सरकार ऐसी विधि अपनाए जिससे किसान का भी फायदा हो और प्रदूषण भी न हो। वहीं कृषि उपनिदेशक एचएन सिंह ने बताया कि पराली जलाने पर जुर्माने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि अभी तक जिले में पराली जलाने का सिर्फ एक ही मामला सामने आया है ।उन्होंने बताया कि जनपद में धान की फसल की कटाई अधिकांश हाथों से होती है और उसका प्रयोग पशुओं के चारे में किया जाता है। इसलिए यहां का किसान फसल की पराली व अवशेष जलाता नही है।
बाईट1-रामबाबू शर्मा-किसान
बाईट2- एचएन सिंह- कृषि उपनिदेशक


Conclusion:वीओ2- किसान जानते हैं कि खेत में पराली जलाने से उनके मित्र बैक्टीरिया मर जाते हैं।लेकिन इसके बाद भी वे ऐसा करते हैं। किसान चाहते हैं कि ऐसा तरीका इजाद किया जाए कि जल्दी से जल्दी उसकी पराली सड़ गल कर खाद बन जाए जिससे उन्हें लाभ मिल सके।

अतुल नारायण
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