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हाथरस: बाबा भैरवनाथ के इस मंदिर में भक्तों हर मनोकामना होती है पूरी

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Published : Aug 9, 2019, 7:48 AM IST

हाथरस के भैरव मंदिर का प्राचीन इतिहास है और यहां की बहुत मान्यता है. दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. सच्चे मन से जो भी यहां प्रार्थना करता है. भैरव बाबा द्वारा सभी लोगों की प्रार्थना पूरी की जाती है.

भैरव नाथ जी के मंदिर में सभी की मनोकामना पूरी होती है.

हाथरस: कस्बा मेंडू के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 91 पर बटुक भैरव नाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर पर रविवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. भैरव नाथ जी का मंदिर 100 साल पुराना है. यहां के पूर्व महंत को भैरव नाथ जी ने स्वप्न दिया था. जिसके बाद जमीन की खुदाई की गई और भैरव नाथ जी की प्रतिमा को बाहर निकाली गयी थी.

भैरव नाथ जी के मंदिर में सभी की मनोकामना पूरी होती है.

भैरवनाथ मंदिर का इतिहास

इस मन्दिर में आते और सच्चे मन से भैरव नाथ जी से अपनी मनोकामना मांगते हैं. उसको भैरव नाथ जी पूरा कर देते हैं. मंदिर में प्रसाद के रूप में मदिरा का सेवन भैरव नाथ जी को कराया जाता है. बताते हैं कि भैरव नाथ जी ने अपनी हाथ की छोटी उंगली से ब्रह्मा जी का शीश काट दिया था. जब देवताओं ने कहा की एक ब्राह्मण की हत्या की है. तो भैरव जी ने ब्रह्महत्या से बचने के लिए अपना सर काट दिया और वह सर काशी में जाकर गिरा.जिससे बाद ब्रह्मा जी जीवित हो गए. लेकिन जहां पर भैरव नाथ जी का सर गिरा वहां पर भैरव नाथ जी का विशाल मंदिर बनवा दिया गया. ब्रह्मा जी ने भैरव नाथ जी को काशी का कोतवाल होने का वरदान दिया है.

अंग्रेजों को भैरव मंदिर छोड़ कर जाना पड़ा

हाथरस के भैरव मंदिर का भी काशी से बहुत पुराना नाता है. 1847 में अंग्रेजों के जमाने में हाथरस के भैरव मंदिर के सामने अंग्रेज रेलवे लाइन बना रहे थे. भैरव नाथ जी नाराज हो गए और जब यहां ट्रेन पहुंची तो मंदिर के आते ही ट्रेन रुक गई. अंग्रेजों ने ट्रेन को सही करने के लिए कई सारे इंजीनियरों को बुलवाया लेकिन इंजन चालू ही नहीं हो सका.जब एक हिंदू इंजीनियर को भैरवनाथ ने रात्रि में स्वप्न दिया कि मंदिर के सामने मेडू के नाम से रेलवे स्टेशन बनाया जाए.

सुबह होते ही इंजीनियर ने मंदिर में जाकर दर्शन किए और भोग लगाकर प्रसाद चढ़ाया. मेडू रेलवे स्टेशन जल्द बनाने की बाबा से बात कही उसके बाद ट्रेन शुरू हो गई, लेकिन अंग्रेजों ने इस बात को नहीं माना. यहां के लोग बताते हैं कि रात में भैरव बाबा ट्रेन की पटरियों को उखाड़ देते थे. दिन में ट्रेन की पटरी अपने आप ही सही हो जाती थी.अंग्रेजों को यह जगह छोड़ कर जाना ही पड़ा.

जो भी लोग सच्चे मन से बाबा से कुछ मांगते हैं. उनकी हर तरीके की मुराद यहां पूरी की जाती है और बहुत दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं.
- ईष्वरीय प्रसाद, महंत

पढ़ें-छत्तीसगढ़ में शहीद हुए थे जवान मदन पाल सिंह, UP के हाथरस में ग्रामीणों ने दी अंतिम विदाई

हाथरस: कस्बा मेंडू के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 91 पर बटुक भैरव नाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर पर रविवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. भैरव नाथ जी का मंदिर 100 साल पुराना है. यहां के पूर्व महंत को भैरव नाथ जी ने स्वप्न दिया था. जिसके बाद जमीन की खुदाई की गई और भैरव नाथ जी की प्रतिमा को बाहर निकाली गयी थी.

भैरव नाथ जी के मंदिर में सभी की मनोकामना पूरी होती है.

भैरवनाथ मंदिर का इतिहास

इस मन्दिर में आते और सच्चे मन से भैरव नाथ जी से अपनी मनोकामना मांगते हैं. उसको भैरव नाथ जी पूरा कर देते हैं. मंदिर में प्रसाद के रूप में मदिरा का सेवन भैरव नाथ जी को कराया जाता है. बताते हैं कि भैरव नाथ जी ने अपनी हाथ की छोटी उंगली से ब्रह्मा जी का शीश काट दिया था. जब देवताओं ने कहा की एक ब्राह्मण की हत्या की है. तो भैरव जी ने ब्रह्महत्या से बचने के लिए अपना सर काट दिया और वह सर काशी में जाकर गिरा.जिससे बाद ब्रह्मा जी जीवित हो गए. लेकिन जहां पर भैरव नाथ जी का सर गिरा वहां पर भैरव नाथ जी का विशाल मंदिर बनवा दिया गया. ब्रह्मा जी ने भैरव नाथ जी को काशी का कोतवाल होने का वरदान दिया है.

अंग्रेजों को भैरव मंदिर छोड़ कर जाना पड़ा

हाथरस के भैरव मंदिर का भी काशी से बहुत पुराना नाता है. 1847 में अंग्रेजों के जमाने में हाथरस के भैरव मंदिर के सामने अंग्रेज रेलवे लाइन बना रहे थे. भैरव नाथ जी नाराज हो गए और जब यहां ट्रेन पहुंची तो मंदिर के आते ही ट्रेन रुक गई. अंग्रेजों ने ट्रेन को सही करने के लिए कई सारे इंजीनियरों को बुलवाया लेकिन इंजन चालू ही नहीं हो सका.जब एक हिंदू इंजीनियर को भैरवनाथ ने रात्रि में स्वप्न दिया कि मंदिर के सामने मेडू के नाम से रेलवे स्टेशन बनाया जाए.

सुबह होते ही इंजीनियर ने मंदिर में जाकर दर्शन किए और भोग लगाकर प्रसाद चढ़ाया. मेडू रेलवे स्टेशन जल्द बनाने की बाबा से बात कही उसके बाद ट्रेन शुरू हो गई, लेकिन अंग्रेजों ने इस बात को नहीं माना. यहां के लोग बताते हैं कि रात में भैरव बाबा ट्रेन की पटरियों को उखाड़ देते थे. दिन में ट्रेन की पटरी अपने आप ही सही हो जाती थी.अंग्रेजों को यह जगह छोड़ कर जाना ही पड़ा.

जो भी लोग सच्चे मन से बाबा से कुछ मांगते हैं. उनकी हर तरीके की मुराद यहां पूरी की जाती है और बहुत दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं.
- ईष्वरीय प्रसाद, महंत

पढ़ें-छत्तीसगढ़ में शहीद हुए थे जवान मदन पाल सिंह, UP के हाथरस में ग्रामीणों ने दी अंतिम विदाई

Intro:
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एंकर- ब्रज की देहरी कहे जाने वाले हाथरस में विराजमान है काशी के कोतवाल भैरवनाथ का मंदिर। इस मंदिर के चमत्कारों की मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है दूर दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं कई 100 साल पुराना बटुक भैरवनाथ जी का मंदिर हाथरस के मेंडू कस्बे के पास स्थित है इस मंदिर की महानता है कि यहां कोई भी वक्त अपने मन की इच्छा को भैरवनाथ के सामने प्रकट करता है और सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो उसकी मनोकामना भैरवनाथ पूरी कर देते हैं इस मंदिर में भैरवनाथ के भोग के लिए मदिरा चढ़ाई जाती है और लड्डू और मालपुआ का भी भोग लगता है इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है और भैरवनाथ के चमत्कारिक करिश्मे की एक अनोखी कहानी भी है।


Body:वीओ- बता दें कि हाथरस के कस्बा मेंडू के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 91 पर बटुक भैरव नाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थित है इस मंदिर पर रविवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है बताया जाता है कि भैरव नाथ जी का मंदिर कई 100 साल पुराना है यहां के पूर्व महंत को भैरव नाथ जी ने स्वप्न दिया था जिसके बाद जमीन की खुदाई की गई और भैरव नाथ जी की प्रतिमा को बाहर निकाला गया जब से यहां महंत द्वारा पूजा अर्चना की गई और जो भी लोग इस मन्दिर में आते और सच्चे मन से भैरव नाथ जी से अपनी मनोकामना मांगते हैं उसको भैरव नाथ जी पूरा कर देते हैं मंदिर में प्रसाद के रूप में मदिरा का सेवन भैरव नाथ जी को कराया जाता है बताते हैं कि भैरव नाथ जी ने अपनी हाथ की छोटी उंगली से ब्रह्मा जी का शीश काट दिया था जब देवताओं ने कहा की एक ब्राह्मण की हत्या की है तो भैरव जी ने ब्रह्महत्या से बचने के लिए अपना सर काट दिया और वह सर काशी में जाकर गिरा जिससे बाद ब्रह्मा जी जीवित हो गए लेकिन जहां पर भैरव नाथ जी का सर गिरा वहां पर भैरव नाथ जी का विशाल मंदिर बनवा दिया गया और ब्रह्मा जी ने भैरव नाथ जी को काशी का कोतवाल होने का वरदान दिया । वहीं हाथरस के भैरव मंदिर का भी काशी से बहुत पुराना नाता है बताते हैं कि 1847 में अंग्रेजों के जमाने में हाथरस के भैरव मंदिर के सामने अंग्रेजों ने रेलवे लाइन बना रहे थे जिसको लेकर बताते हैं कि भैरव नाथ जी नाराज हो गए और जब यहां ट्रेन पहुंची तो मंदिर के आते ही ट्रेन रुक गई अंग्रेजों ने ट्रेन को सही करने के लिए कई सारे इंजीनियरों को बुलवाया लेकिन इंजन चालू ही नहीं हो सका जब एक हिंदू इंजीनियर को भैरवनाथ ने रात्रि में स्वप्न दिया के मंदिर के सामने मेडू के नाम से रेलवे स्टेशन बनाया जाए वही सुबह होते ही इंजीनियर ने मंदिर में जाकर दर्शन किए और भोग लगाकर प्रसाद चढ़ाया और मेडू रेलवे स्टेशन जल्द बनाने की बाबा से बात कही ।उसके बाद ट्रेन शुरू हो गई लेकिन अंग्रेजों ने इस बात को नहीं माना तो यहां के लोग बताते हैं कि रात में भैरव बाबा ट्रेन की पटरियों को उखाड़ देते थे और दिन में ट्रेन की पटरी अपने आप ही सही हो जाती थी अंत में अंग्रेजों को यह जगह छोड़ कर जाना ही पड़ा मंदिर की देखरेख करने वाले महंत का कहना है कि जो भी लोग सच्चे मन से बाबा से कुछ मांगते हैं उनकी हर तरीके की मुराद यहां पूरी की जाती है और बहुत दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।

बाइट- ईष्वरीय प्रसाद ( महंत )



Conclusion:हाथरस के भैरव मंदिर का प्राचीन इतिहास है और यहां की बहुत मान्यता है दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और सच्चे मन से जो भी यहां प्रार्थना करता है जो भी मांग मांगता है भैरव बाबा द्वारा सभी लोगों की प्रार्थना पूरी की जाती है।
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