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'अक्ल से बेवकूफ, पैसों से भरपूर लोगों का हर पार्टी में सम्मान' - पंचायत चुनाव 2021

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष एडवोकेट जालिम सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि आज के समय में पार्टियों के अंदर देश के लिए कुछ करने की भावना नहीं है, पढ़िए ये रिपोर्ट...

एडवोकेट जालिम सिंह से बातचीत.
एडवोकेट जालिम सिंह से बातचीत.
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Published : Apr 11, 2021, 3:30 PM IST

हाथरस: 'अक्ल से बेवकूफ, पैसे से भरपूर' व्यक्ति का आज के समय में सभी राजनीतिक पार्टियों में सम्मान है. यह कहना है हाथरस के रहने वाले और फिरोजाबाद में जिला पंचायत अध्यक्ष रहे जालिम सिंह एडवोकेट का. उन्होंने बताया कि उनके समय में राजनीति में धनबल और बाहुबल का उतना जोर नहीं था, जितना कि आज है.

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जालिम सिंह ने बताया कि उनकी कभी भी राजनीति में आने की इच्छा नहीं थी. एक मित्र ने समझाया कि समाज और खासकर दलित, पिछड़े, बहुजन समाज को आप जैसे लोगों की बहुत जरूरत है. इसी सोच के साथ वह राजनीति में आए थे. उन्होंने यह भी बताया कि वह कांशीराम जी से पहले से ही जुड़े हुए थे. वो उन्हें अपना राजनीतिक गुरु को मसीहा मानकर सन 1988 में सक्रीय राजनीति में काम शुरू कर दिया था.

एडवोकेट जालिम सिंह से बातचीत.

'तब पंचायत अध्यक्ष को मिला करते थे दो हजार रुपये'

उन्होंने बताया कि उनके समर्पण भाव से राजनीति करने पर कांशीराम जी को एहसास हुआ कि इसके बच्चों का पेट कैसे भरता होगा. यह सोचकर उन्होंने गुजारे भत्ते का रास्ता निकाला और उन्हें फिरोजाबाद का जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया. उस समय सन् 1993 में उन्हें भत्ते के रुप में सिर्फ दो हजार रुपये मिला करते थे. जब वह जिला पंचायत अध्यक्ष थे, तभी नया वॉर्ड पंचायत एक्ट बन रहा था. यदि आदमी गलत नीयत और नीति से काम करे तो वह जितना चाहे अमीर बन सकता है. उनके पास भी बड़े-बड़े प्रलोभन आए थे, जिन्हें ठुकराने पर धमकियां भी मिली थीं, बावजूद इसके वह अपने रासते से हटे नहीं.

जालिम सिंह ने कहा कि जब तक कांशीराम जीवित रहे, तब तक राजनीति में सबकुछ ठीक था. उनके दिवंगत होने के बाद सभी पार्टियों में पैसा घुस गया. उन पार्टियों में भी पैसे वालों का सम्मान होने लगा, जिन्हें नीति व मिशन से कोई मतलब नहीं था. आज जिनके पास धनबल और बाहुबल होता है, वह राजनीति में बहुत पनपते हैं.

इसे भी पढ़ें : प्रतापगढ़ में चल रहा डरा-धमका कर नामांकन वापस लेने का खेल

'पैसे की दौड़ में हुआ राजनीति से मोहभंग'

जालिम सिंह ने बताया कि जब राजनीति में पैसे का जोर ज्यादा हो गया, तो मायावती ने उनके जैसे लोगों को किनारे करने का काम भी शुरू कर दिया था. तभी पैसे की दौड़ की वजह से उनका राजनीति से मोहभंग हुआ था. वह राजनीति में समाज के दर्द को लेकर काम करते थे. बहुजन समाज के दुखों को दूर करने के लिए गए थे. अब के लोग राजनीति में व्यक्तिगत लाभ के लिए जाते हैं. उन्होंने कहा कि समाज में किसी के अंदर कुछ करने की भावना नहीं है.

राजनीति में धनबल-बाहुबल का कौन जिम्मेदार ?

राजनीति में धनबल और बाहुबल के लिए कौन जिम्मेदार है- इस पर पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों का आज कैरेक्टर एक जैसा ही है. सभी पार्टियां इसके लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि उनको अपनी संस्था को चलाने के लिए धन की जरूरत है.

उस समय जालिम सिंह ने फिरोजाबाद में जिला पंचायत अध्यक्ष रहते कांच उद्योग से जुड़े मजदूरों का दर्द समझा. मजदूरों को तब 14 से 18 घंटे तक काम करना पड़ता था. उन्होंने अधिकारियों से मिलकर ऐसी व्यवस्था की थी कि मजदूरों को 8 घंटे से ज्यादा काम न करना पड़े, लेकिन आज के लोग ऐसा नहीं सोचते. वह सिर्फ विकास पर नजर रखते हैं, क्योंकि उसी से उनके खुद का भी विकास होता है.

हाथरस: 'अक्ल से बेवकूफ, पैसे से भरपूर' व्यक्ति का आज के समय में सभी राजनीतिक पार्टियों में सम्मान है. यह कहना है हाथरस के रहने वाले और फिरोजाबाद में जिला पंचायत अध्यक्ष रहे जालिम सिंह एडवोकेट का. उन्होंने बताया कि उनके समय में राजनीति में धनबल और बाहुबल का उतना जोर नहीं था, जितना कि आज है.

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जालिम सिंह ने बताया कि उनकी कभी भी राजनीति में आने की इच्छा नहीं थी. एक मित्र ने समझाया कि समाज और खासकर दलित, पिछड़े, बहुजन समाज को आप जैसे लोगों की बहुत जरूरत है. इसी सोच के साथ वह राजनीति में आए थे. उन्होंने यह भी बताया कि वह कांशीराम जी से पहले से ही जुड़े हुए थे. वो उन्हें अपना राजनीतिक गुरु को मसीहा मानकर सन 1988 में सक्रीय राजनीति में काम शुरू कर दिया था.

एडवोकेट जालिम सिंह से बातचीत.

'तब पंचायत अध्यक्ष को मिला करते थे दो हजार रुपये'

उन्होंने बताया कि उनके समर्पण भाव से राजनीति करने पर कांशीराम जी को एहसास हुआ कि इसके बच्चों का पेट कैसे भरता होगा. यह सोचकर उन्होंने गुजारे भत्ते का रास्ता निकाला और उन्हें फिरोजाबाद का जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया. उस समय सन् 1993 में उन्हें भत्ते के रुप में सिर्फ दो हजार रुपये मिला करते थे. जब वह जिला पंचायत अध्यक्ष थे, तभी नया वॉर्ड पंचायत एक्ट बन रहा था. यदि आदमी गलत नीयत और नीति से काम करे तो वह जितना चाहे अमीर बन सकता है. उनके पास भी बड़े-बड़े प्रलोभन आए थे, जिन्हें ठुकराने पर धमकियां भी मिली थीं, बावजूद इसके वह अपने रासते से हटे नहीं.

जालिम सिंह ने कहा कि जब तक कांशीराम जीवित रहे, तब तक राजनीति में सबकुछ ठीक था. उनके दिवंगत होने के बाद सभी पार्टियों में पैसा घुस गया. उन पार्टियों में भी पैसे वालों का सम्मान होने लगा, जिन्हें नीति व मिशन से कोई मतलब नहीं था. आज जिनके पास धनबल और बाहुबल होता है, वह राजनीति में बहुत पनपते हैं.

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'पैसे की दौड़ में हुआ राजनीति से मोहभंग'

जालिम सिंह ने बताया कि जब राजनीति में पैसे का जोर ज्यादा हो गया, तो मायावती ने उनके जैसे लोगों को किनारे करने का काम भी शुरू कर दिया था. तभी पैसे की दौड़ की वजह से उनका राजनीति से मोहभंग हुआ था. वह राजनीति में समाज के दर्द को लेकर काम करते थे. बहुजन समाज के दुखों को दूर करने के लिए गए थे. अब के लोग राजनीति में व्यक्तिगत लाभ के लिए जाते हैं. उन्होंने कहा कि समाज में किसी के अंदर कुछ करने की भावना नहीं है.

राजनीति में धनबल-बाहुबल का कौन जिम्मेदार ?

राजनीति में धनबल और बाहुबल के लिए कौन जिम्मेदार है- इस पर पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों का आज कैरेक्टर एक जैसा ही है. सभी पार्टियां इसके लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि उनको अपनी संस्था को चलाने के लिए धन की जरूरत है.

उस समय जालिम सिंह ने फिरोजाबाद में जिला पंचायत अध्यक्ष रहते कांच उद्योग से जुड़े मजदूरों का दर्द समझा. मजदूरों को तब 14 से 18 घंटे तक काम करना पड़ता था. उन्होंने अधिकारियों से मिलकर ऐसी व्यवस्था की थी कि मजदूरों को 8 घंटे से ज्यादा काम न करना पड़े, लेकिन आज के लोग ऐसा नहीं सोचते. वह सिर्फ विकास पर नजर रखते हैं, क्योंकि उसी से उनके खुद का भी विकास होता है.

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