हरदोई: हिंदू धर्म ग्रंथों में गाय को माता की संज्ञा दी गयी है. गाय के दूध को धरती का अमृत कहा जाता है. और यही वजह है, कि हिंदू धर्म में गाय पूजनीय है. लेकिन आज के विकसित परिवेश में लोग इस बात को भूलते जा रहे हैं. गायों को मारना, उनकी हत्या करना, घायल होने पर उन्हें लावारिश छोड़ देना आम बात हो गयी है. लेकिन इन सबके बीच हरदोई जिले का एक युवक है, इन बेसहारा बेजुबानों का सहारा बना हुआ है.
एक हादसे ने बदल दी सोच
करीब 6 वर्ष पूर्व प्रशांत गुप्ता की आंखों के सामने एक निराश्रित गाय कार की चपेट में आकर घायल हो गयी थी. जिसके बाद प्रशांत के दिल में उस घायल बेजुबान के लिए दया भाव पैदा हुआ. वो दो दिनों तक उसके इलाज के लिए पशु चिकित्सालय का चक्कर लगाए व जिम्मेदारों को सूचित भी किया. लेकिन न तो किसी जिम्मेदार ने उस घायल बेजुबान का दर्द समझा और न ही किसी पशु चिकित्सक ने उसका इलाज करना लाज़मी समझा. अंत में उस बेसहारा आवारा गौ की निर्मम मौत हो गयी.
तब का वो दिन था जब प्रशांत ने प्रण कर लिया कि जिले में इस तरह के जितने भी जानवर होंगे उनका इलाज व देख-रेख अपने निजी प्रयासों से करेंगे. प्रशांत का मानना है कि इंसान तो अपनी समस्याएं बोलकर बता सकते हैं. लेकिन ये बेजुबान किसी से अपनी समस्या कह पाने में सक्षम नहीं होते. इसलिए हममे से ही किसी की जिम्मेदारी बनती है कि इन बेजुबानों का दर्द समझें.
तब से प्रशांत ने एक हेल्पलाइन नम्बर जारी किया और लग गए गौ सेवा का कार्य करने में. देखते-देखते प्रशांत के पास-जगह जगह से फोन आने शुरू हुए और प्रशांत निजी खर्च पर डॉक्टरों को साथ ले जाकर इन निराश्रित पशुओं का इलाज करवाने लगे. इस सराहनीय कार्य को देखते हुए जिले के कुछ अन्य युवा भी प्रेरित हुए व उनके साथ जुड़ कर अपनी सेवा देने लगे. प्रशांत के साथ आज भी करीब 6 युवक जुड़े हुए हैं और एक टीम की तरह इन घायल व बीमार जानवरों को जीवनदान देने का काम करते हैं. अभी तक प्रशांत 2 हज़ार से अधिक ऐसे जानवरों को जीवनदान दे चुके हैं.
इंटरनेट से सीखी पशु चिकित्सा
25 वर्षीय प्रशांत कुछ समय तक तो निजी चिकित्सकों का सहारा लिए, लेकिन बाद में आर्थिक समस्याएं सामने आने लगीं. न तो प्रशांत को सरकार व प्रशासन की कोई सहायता मिली न ही उनके घर से उन्हें कोई आर्थिक सहायता मिली. इस पर प्रशांत ने इंटरनेट के जरिये पशु चिकित्सा की जानकारियां जुटानी शुरू की. घायल जानवरों का इलाज करने के साथ ही अन्य बीमारियों का इलाज कैसे किया जाए व जानवरों को कब किस तरह की दवाई देनी है, इस सब की जानकारी के लिए प्रशांत ने यू-ट्यूब व गूगल का सहारा लिया.
देखते-देखते गौ सेवक प्रशांत आज कुछ वर्षों में ही बिना किसी डिग्री के ही एक अच्छे व अनुभवी पशु चिकित्सक भी बन गए हैं. अब कहीं से भी सूचना मिलते ही गौ सेवक प्रशांत मौके पर, इलाज में प्रयुक्त होने वाली दवाइयां व उपकरण के साथ पहुंच जाते हैं. लोग भी अब किसी जिम्मेदार अधिकारी को जानकारी देने से प्रशांत को जानकारी देना लाज़मी समझते हैं.
घर के पास बनाई गौशाला
घायल व बीमार जनवरों का इलाज करने के बाद प्रशांत इन बेसहारा जानवरों को सड़क पर यथावत नहीं छोड़ते, बल्कि उनके लंबे इलाज के लिए व उन्हें पहले की तरह स्वस्थ बनाने के लिए वे इन जानवरों व गौवंशों को अपने घर के पास बनाई हुई गौशाला में लाते हैं. जहां वे इन जानवरों की सेवा के साथ इनका इलाज भी करते हैं. उन्होंने घर के पास खाली पड़ी जगह में ही लोहे की जालियां लगाकर एक गौशाला बनाई है. यही इन बेसहारा जानवरों के रहने की जगह है और यही इनका चिकित्सालय भी है. अभी भी प्रशांत ने करीब 60 बीमार गाय, सांड और दूसरे जानवरों को रखे हुए हैं, जिनका इलाज जारी है.
अपने बच्चों की तरह करते हैं देखभाल
गौ सेवक प्रशांत इन बेजुबानों को अपने बच्चों की भांति प्रेम करते हैं व इनकी देखभाल करते हैं. गाय के छोटे बछड़ों को वे गोद में उठाकर उनको पुचकारते हैं उन्हें लाड़-प्यार देते हैं. साथ इन बेसहारा जानवरों को नहलाने, खाने-पीने से लेकर इनकी साफ-सफाई जैसे सभी काम खुद करते हैं. प्रशांत का कहना है कि इन सब के पीछे का उद्देश्य बेसहारा बेजुबानों का सहारा बनना है. इससे उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है.
उनकी गौशाला में एक्सीडेंट की चपेट में आये जानवरों से लेकर बीमार जानवर मौजूद हैं. जिनमें गौवंशों के साथ ही कुछ घायल कुत्ते भी हैं. गौ सेवक प्रशांत का कहना है कि अब गाय के अलावा एक साल से वो सभी जानवरों का इलाज करना शुरू कर दिए हैं. 2 हज़ार से अधिक गौवंशों के साथ ही करीब 150 कुत्तों का इलाज कर उनका सहारा बने हैं. प्रशांत द्वारा किया जा रहा ये अनोखा व सराहनीय कार्य अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत है.