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यहां से हुई थी होली की शुरुआत, ऐसा ना होता तो कभी नहीं मनाते होली

सबके पसंदीदा त्योहार होली की शुरुआत हरदोई से हुई थी. हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था. हरि-द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु हिरण्यकश्‍यप. वो भगवान को बिलकुल नहीं मानता था, इसीलिए हिरण्यकश्‍यप की राजधानी का नाम हरिद्रोही था, जो आज हरदोई नाम से जाना जाता है.

होली हरदोई की
होली हरदोई की
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Published : Mar 28, 2021, 8:43 PM IST

हरदोई: पुरानी मान्यता है कि यूपी के हरदोई जिले से होली की शुरुआत हुई थी. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी के नाम से जाना जाता था. हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्‍यप अपने पुत्र प्रहलाद से नाराज रहता था. हिरण्यकश्‍यप ने अपने बेटे प्रहलाद को प्रताड़ित करने के लिए कभी उसे ऊंचे पहाड़ों से गिरवा दिया, तो कभी जंगली जानवरों से भरे वन में अकेला छोड़ दिया. लेकिन प्रहलाद की ईश्वरीय आस्था टस से मस न हुई और हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षित बच निकला. जब हिरण्यकश्‍यप को कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया. होलिका के पास ऐसी सिद्धी थी कि वह आग में नहीं जल सकती थी. हिरण्यकश्‍यप ने बहन होलिका से बेटे प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा जिससे प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए. लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानी होलिका जब प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठी तो उसकी शक्ति कमजोर पड़ गई. होलिका खुद जलकर राख हो गई और भक्त प्रहलाद बच गए. माना जाता है इसके बाद हरदोई से ही होली की शुरुआत हुई है.

हरदोई से हुई होली की शुरुआत

यह भी पढ़ें: काशी पर चढ़ा होली का रंग, सुनिए बनारस का फगुआ

पहले था हरिद्रोही नाम
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से होली के त्योहार की शुरुआत हुई थी. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था. हरि-द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु हिरण्यकश्‍यप. वो भगवान को बिलकुल नहीं मानता था, इसीलिए हिरण्यकश्‍यप की राजधानी का नाम हरिद्रोही था, जो आज हरदोई नाम से जाना जाता है.

खुशी में मनाई थी होली
प्राचीन काल से ही मान्यता है कि इसी हरदोई में हिरण्यकश्‍यप की बहन होलिका जलकर राख हो गई थी और उसी के बाद यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था. हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्‍यप पुत्र प्रहलाद से नाराज रहते थे.

राख उड़ाकर मनाई होली
होलिका के जलने के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्‍यप का वध कर दिया. होलिका के जलने और हिरणकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर उत्सव मनाया. तभी से होली के इस त्योहार की शुरुआत हुई. कहा जाता है कि मौजूदा वक्त में अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा की शुरुआत यहीं से हुई. आज भी यह परंपरा जारी है. हर साल लोग होली के त्योहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं.

हरदोई: पुरानी मान्यता है कि यूपी के हरदोई जिले से होली की शुरुआत हुई थी. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी के नाम से जाना जाता था. हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्‍यप अपने पुत्र प्रहलाद से नाराज रहता था. हिरण्यकश्‍यप ने अपने बेटे प्रहलाद को प्रताड़ित करने के लिए कभी उसे ऊंचे पहाड़ों से गिरवा दिया, तो कभी जंगली जानवरों से भरे वन में अकेला छोड़ दिया. लेकिन प्रहलाद की ईश्वरीय आस्था टस से मस न हुई और हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षित बच निकला. जब हिरण्यकश्‍यप को कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया. होलिका के पास ऐसी सिद्धी थी कि वह आग में नहीं जल सकती थी. हिरण्यकश्‍यप ने बहन होलिका से बेटे प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा जिससे प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए. लेकिन भगवान की कृपा से हुआ उल्टा यानी होलिका जब प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठी तो उसकी शक्ति कमजोर पड़ गई. होलिका खुद जलकर राख हो गई और भक्त प्रहलाद बच गए. माना जाता है इसके बाद हरदोई से ही होली की शुरुआत हुई है.

हरदोई से हुई होली की शुरुआत

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पहले था हरिद्रोही नाम
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से होली के त्योहार की शुरुआत हुई थी. आज की हरदोई को तब हिरण्यकश्‍यप की नगरी हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था. हरि-द्रोही का मतलब था भगवान का शत्रु हिरण्यकश्‍यप. वो भगवान को बिलकुल नहीं मानता था, इसीलिए हिरण्यकश्‍यप की राजधानी का नाम हरिद्रोही था, जो आज हरदोई नाम से जाना जाता है.

खुशी में मनाई थी होली
प्राचीन काल से ही मान्यता है कि इसी हरदोई में हिरण्यकश्‍यप की बहन होलिका जलकर राख हो गई थी और उसी के बाद यहां के लोगों ने खुश होकर होली का उत्सव मनाया था. हिरण्यकश्‍यप भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था और उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. इसी बात को लेकर पिता हिरण्यकश्‍यप पुत्र प्रहलाद से नाराज रहते थे.

राख उड़ाकर मनाई होली
होलिका के जलने के बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्‍यप का वध कर दिया. होलिका के जलने और हिरणकश्यप के वध के बाद लोगों ने यहां होलिका की राख को उड़ाकर उत्सव मनाया. तभी से होली के इस त्योहार की शुरुआत हुई. कहा जाता है कि मौजूदा वक्त में अबीर-गुलाल उड़ाने की परंपरा की शुरुआत यहीं से हुई. आज भी यह परंपरा जारी है. हर साल लोग होली के त्योहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं.

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