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सावधान! कहीं आपके बच्चे को भी तो नहीं आंखों में धुंधलापन और ड्राईनेस की शिकायत

कोरोना वायरस की वजह से बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली लागू कर दी गयी थी. जिसके बाद हरदोई जिले के तकरीबन 1 लाख से अधिक बच्चे इस शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बने हुए हैं. बच्चे लगातार एलईडी स्क्रीन पर पढ़ाई कर रहे हैं, जिससे उनकी आंखों पर गहरा असर पड़ रहा है. जब इस संबंध में ईटीवी की टीम ने विशेषज्ञों की राय ली तो तो उन्होंने इसे बेहद घातक और हानिकारक करार दिया.

ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों की आंखों पर हो रहा असर.
ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों की आंखों पर हो रहा असर.
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Published : Dec 12, 2020, 7:35 PM IST

हरदोई: जिले में भी कोरोना काल से शासन के निर्देशों पर ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली लागू कर दी गयी थी. जिसके बाद देश के तकरीबन 24 करोड़ तो हरदोई के 1 लाख से अधिक बच्चे इस प्रणाली का हिस्सा बनकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. लेकिन किसी ने ये सोचा है कि एलईडी स्क्रीन पर लगातार बने रहने से बच्चों की आंखों पर इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ रहा है और भविष्य में इसके क्या परिणाम हो सकते हैं. जब इस संबंध में ईटीवी की टीम ने विशेषज्ञों की राय ली तो तो उन्होंने इसे बेहद घातक और हानिकारक करार दिया. डॉक्टरों के अनुसार आज देश के 80 फीसदी बच्चों में ड्राईनेस की समस्या देखने को मिल रही है. इसी के साथ मोबाइल के संपर्क में ज्यादा समय तक आने से बच्चों में आंखों की रोशनी कम होने के साथ लो ब्लिंकिंग रेशियो की समस्या, आंखों में धुंधलापन और ड्राईनेस होने जैसी अन्य तमाम समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

कैसा महसूस कर रहे हैं बच्चे
कोरोना काल से ही जिले के लाखों बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का हिस्सा बने हुए हैं. एक निजी विद्यालय के कक्षा 5 के छात्र चिरंजीव सिंह से जब इस संबंध में बात की गई तो उसने बताया कि उसे पढ़ाई करना तो अच्छा लगता है, लेकिन ऑनलाइन प्रक्रिया थोड़ी सी कष्टदाई साबित हो रही है. इससे उसकी आंखों मे खुजली होना, धुंधला दिखना और अन्य समस्याएं महसूस हो रही हैं. हालांकि 4 से 5 घंटे के सेशन में उसने ब्रेक मिलने की बात भी कही. बच्चे ने बताया कि जबसे उसने ऑनलाइन क्लासेज अटेंड करना शुरू किया है तब से उसे कुछ समस्याएं महसूस होना शुरू हुई हैं. आंखों के साथ ही सिर में भारीपन आदि समस्याओं की बात भी बच्चे ने कही. इसीलिए वह अपने अभिवावक के साथ एक आई स्पेशलिस्ट के क्लीनिक पर आई टेस्ट करवाने आया है. डॉक्टर ने भी बच्चे को लगातार फोन का इस्तेमाल न करने की सलाह दी उसे एक ब्लू रे कोटिंग का चश्मा देने के साथ ही आंखों में डालने वाला लुब्रिकेंट दिया.

ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों की आंखों पर हो रहा असर.

हो सकती है मेमोरी लॉस की समस्या
जब इस संबंध में एक मनोचिकित्सक डॉ. नवनीत आनंद से जानकारी ली गयी तो उन्होंने बच्चों के ज्यादा मोबाइल और कंप्यूटर इस्तेमाल करने पर मेमोरी लॉस जैसी समस्याएं पैदा होने की बात कही. उन्होंने कहा कि टोटल मेरोरी लॉस नहीं लेकिन, एकाग्रता शक्ति कम होने से जल्दी भूलने और चीजों को याद न रखने जैसी समस्याओं से बच्चों को जूझना पड़ सकता है. डॉक्टर ने कहा कि लोगों को लगता है मोबाइल और अन्य एलईडी पर बने रहने से सिर्फ आंखों को ही नुकसान होता है, लेकिन ऐसा सोचना गलत है. आंखों से ज्यादा दुष्प्रभाव दिमाग की नसों पर पड़ता है. जिससे दिमाग के अंदर की नसें कमजोर हो जाने से तमाम विकृतियां पैदा हो सकती हैं. डॉक्टर ने कहा कि अभिवावकों से अपील है कि बच्चों को ज्यादा देर तक मोबाइल का इस्तेमाल न करने दें. अगर वह पढ़ाई के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं तो उनको बीच बीच में ब्रेक जरूर लेने को कहें. मनोचिकित्सक ने बताया कि मोबाइल पर आजकल तमाम तरह की चीजें देखने को मिल जाती हैं, जिनको देखकर बच्चे अपने दिमाग और सोच को भी उसी तरीके से ढालने का प्रयास करते हैं. इसलिए सकारात्मक दृश्य और फिल्म आदि ही बच्चों को देखने के लिए प्रेरित करें और नकारात्मकता से बचाएं. जिससे कि उनके जीवन, कार्यशैली और दिमाग के ऊपर गलत असर न पड़े.

ब्लिंकिंग रेशियो कम होने से हो रही ड्राइनेस की समस्या
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. आदर्श मिश्रा ने जानकारी दी कि लगातार मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ बच्चों ही नहीं बल्कि बड़ों के लिए भी हानिकारक है. बच्चों का कोरोना काल से अभी तक घण्टों मोबाइल के संपर्क में रहकर पढ़ाई करना कहीं न कहीं उनको दृष्टिहीन बना सकता है. उन्होंने कहा कि मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से आज 80 फीसदी तक बच्चों में ड्राइनेस की शिकायत देखने को मिल रही है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर एक मिनट में हमारी आंखे 7 से 9 बार झपकती हैं, लेकिन ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल से ब्लिंकिंग रेट 2 से 3 बार प्रति मिनट ही रह जाता है. जिससे बच्चों की आंख के अंदर मौजूद टियर फिल्म कमजोर हो जाती है और उनमें ड्राइनेस पैदा हो जाती है. इसके बाद आंखे कमजोर होने से उनमें चश्मे का नम्बर आ जाता है. उन्होंने कहा कि उनके पास आजकल बड़ों से ज्यादा बच्चे आई टेस्ट करवाने आ रहे हैं. आंखों में खुजली, धुंधला दिखना और पानी आने जैसी समस्याओं का बखान कर रहे हैं. इससे साफ है कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली बच्चों को समय से पहले ही आंखों का मरीज बना रही है.

आंखों के साथ कान और दिमाग पर भी हो रहा असर
अगर आपका बच्चा घण्टों तक ऑनलाइन पढ़ाई का हिस्सा बना हुआ है तो आपको सावधान होने की आवश्यकता है. घण्टों तक मोबाइल पर बने रहने से बच्चों की आंखें, कान और दिमाग पर भी इसका असर पड़ सकता है. कम उम्र में बच्चे आंखों की तमाम समस्याओं से जूझ सकते हैं. मोबाइल से निकलने वाली रेज बच्चों के दिमाग पर सीधा असर डालती हैं. बच्चों के कान के अंदर की झिल्लियां भी कमजोर पडने से कम सुनाई देने जैसी दिक्कतें भी पैदा हो सकती हैं. अभिवावकों को अपने बच्चों के ऊपर इस दौरान ध्यान देने की जरूरत है. उनकी आंखों में दिक्कतें न पैदा हो इसके लिए लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों को बचाएं, साथ ही लुब्रिकेंट आदि का इस्तेमाल बच्चों की आंखों में करें. चिकित्सकों से परामर्श लें और बच्चों की आंखों की जांच समय समय पर करवाते रहें. एक अभिवावक से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने सरकार और शिक्षा विभाग की इस प्रणाली को अब बंद करके विद्यालय खोले जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि जब सरकार बाजारें और शराब की दुकानें आदि खुल सकती हैं, तो सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम कर विद्यालय क्यों नहीं खोले जा रहे. उन्होंने कहा कि बच्चों का 4 से 5 घण्टा मोबाइल पर पढ़ाई करना बहुत ही हानिकारक है. इससे बच्चे कम समय मे ही आंखों की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं, साथ ही बच्चों के दिमाग पर भी इसका काफी बुरा असर पड़ने लगा है.

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जिला विद्यालय निरीक्षक वीके दुबे ने जानकारी दी कि मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल आमतौर पर तो हानिकारक है ही लेकिन, बच्चों की पढ़ाई भी बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए टीवी चैनल पर कक्षाओं को चलाने की व्यवस्था की गई है. साथ ही अब उनके स्कूल जाने के प्रबंध भी लगभग कर दिए गए हैं. जिससे कि वह बड़ी स्क्रीन पर भी पढ़ सकें और स्कूल जाकर पढ़ाई शुरू कर सकें. जिससे कि विद्यार्थियों की आंखों को आराम मिल सके. उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों की 5 घण्टे की कक्षाओं को ऑनलाइन ही संचालित किया जा रहा है, जिसमें उन्हें एक क्लास के बाद आधे घण्टे का ब्रेक दिया जाता है. जिसमें वह अपनी आंखों को आराम दे सकें.

हरदोई: जिले में भी कोरोना काल से शासन के निर्देशों पर ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली लागू कर दी गयी थी. जिसके बाद देश के तकरीबन 24 करोड़ तो हरदोई के 1 लाख से अधिक बच्चे इस प्रणाली का हिस्सा बनकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. लेकिन किसी ने ये सोचा है कि एलईडी स्क्रीन पर लगातार बने रहने से बच्चों की आंखों पर इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ रहा है और भविष्य में इसके क्या परिणाम हो सकते हैं. जब इस संबंध में ईटीवी की टीम ने विशेषज्ञों की राय ली तो तो उन्होंने इसे बेहद घातक और हानिकारक करार दिया. डॉक्टरों के अनुसार आज देश के 80 फीसदी बच्चों में ड्राईनेस की समस्या देखने को मिल रही है. इसी के साथ मोबाइल के संपर्क में ज्यादा समय तक आने से बच्चों में आंखों की रोशनी कम होने के साथ लो ब्लिंकिंग रेशियो की समस्या, आंखों में धुंधलापन और ड्राईनेस होने जैसी अन्य तमाम समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

कैसा महसूस कर रहे हैं बच्चे
कोरोना काल से ही जिले के लाखों बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का हिस्सा बने हुए हैं. एक निजी विद्यालय के कक्षा 5 के छात्र चिरंजीव सिंह से जब इस संबंध में बात की गई तो उसने बताया कि उसे पढ़ाई करना तो अच्छा लगता है, लेकिन ऑनलाइन प्रक्रिया थोड़ी सी कष्टदाई साबित हो रही है. इससे उसकी आंखों मे खुजली होना, धुंधला दिखना और अन्य समस्याएं महसूस हो रही हैं. हालांकि 4 से 5 घंटे के सेशन में उसने ब्रेक मिलने की बात भी कही. बच्चे ने बताया कि जबसे उसने ऑनलाइन क्लासेज अटेंड करना शुरू किया है तब से उसे कुछ समस्याएं महसूस होना शुरू हुई हैं. आंखों के साथ ही सिर में भारीपन आदि समस्याओं की बात भी बच्चे ने कही. इसीलिए वह अपने अभिवावक के साथ एक आई स्पेशलिस्ट के क्लीनिक पर आई टेस्ट करवाने आया है. डॉक्टर ने भी बच्चे को लगातार फोन का इस्तेमाल न करने की सलाह दी उसे एक ब्लू रे कोटिंग का चश्मा देने के साथ ही आंखों में डालने वाला लुब्रिकेंट दिया.

ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों की आंखों पर हो रहा असर.

हो सकती है मेमोरी लॉस की समस्या
जब इस संबंध में एक मनोचिकित्सक डॉ. नवनीत आनंद से जानकारी ली गयी तो उन्होंने बच्चों के ज्यादा मोबाइल और कंप्यूटर इस्तेमाल करने पर मेमोरी लॉस जैसी समस्याएं पैदा होने की बात कही. उन्होंने कहा कि टोटल मेरोरी लॉस नहीं लेकिन, एकाग्रता शक्ति कम होने से जल्दी भूलने और चीजों को याद न रखने जैसी समस्याओं से बच्चों को जूझना पड़ सकता है. डॉक्टर ने कहा कि लोगों को लगता है मोबाइल और अन्य एलईडी पर बने रहने से सिर्फ आंखों को ही नुकसान होता है, लेकिन ऐसा सोचना गलत है. आंखों से ज्यादा दुष्प्रभाव दिमाग की नसों पर पड़ता है. जिससे दिमाग के अंदर की नसें कमजोर हो जाने से तमाम विकृतियां पैदा हो सकती हैं. डॉक्टर ने कहा कि अभिवावकों से अपील है कि बच्चों को ज्यादा देर तक मोबाइल का इस्तेमाल न करने दें. अगर वह पढ़ाई के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं तो उनको बीच बीच में ब्रेक जरूर लेने को कहें. मनोचिकित्सक ने बताया कि मोबाइल पर आजकल तमाम तरह की चीजें देखने को मिल जाती हैं, जिनको देखकर बच्चे अपने दिमाग और सोच को भी उसी तरीके से ढालने का प्रयास करते हैं. इसलिए सकारात्मक दृश्य और फिल्म आदि ही बच्चों को देखने के लिए प्रेरित करें और नकारात्मकता से बचाएं. जिससे कि उनके जीवन, कार्यशैली और दिमाग के ऊपर गलत असर न पड़े.

ब्लिंकिंग रेशियो कम होने से हो रही ड्राइनेस की समस्या
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. आदर्श मिश्रा ने जानकारी दी कि लगातार मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ बच्चों ही नहीं बल्कि बड़ों के लिए भी हानिकारक है. बच्चों का कोरोना काल से अभी तक घण्टों मोबाइल के संपर्क में रहकर पढ़ाई करना कहीं न कहीं उनको दृष्टिहीन बना सकता है. उन्होंने कहा कि मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से आज 80 फीसदी तक बच्चों में ड्राइनेस की शिकायत देखने को मिल रही है. उन्होंने बताया कि आमतौर पर एक मिनट में हमारी आंखे 7 से 9 बार झपकती हैं, लेकिन ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल से ब्लिंकिंग रेट 2 से 3 बार प्रति मिनट ही रह जाता है. जिससे बच्चों की आंख के अंदर मौजूद टियर फिल्म कमजोर हो जाती है और उनमें ड्राइनेस पैदा हो जाती है. इसके बाद आंखे कमजोर होने से उनमें चश्मे का नम्बर आ जाता है. उन्होंने कहा कि उनके पास आजकल बड़ों से ज्यादा बच्चे आई टेस्ट करवाने आ रहे हैं. आंखों में खुजली, धुंधला दिखना और पानी आने जैसी समस्याओं का बखान कर रहे हैं. इससे साफ है कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली बच्चों को समय से पहले ही आंखों का मरीज बना रही है.

आंखों के साथ कान और दिमाग पर भी हो रहा असर
अगर आपका बच्चा घण्टों तक ऑनलाइन पढ़ाई का हिस्सा बना हुआ है तो आपको सावधान होने की आवश्यकता है. घण्टों तक मोबाइल पर बने रहने से बच्चों की आंखें, कान और दिमाग पर भी इसका असर पड़ सकता है. कम उम्र में बच्चे आंखों की तमाम समस्याओं से जूझ सकते हैं. मोबाइल से निकलने वाली रेज बच्चों के दिमाग पर सीधा असर डालती हैं. बच्चों के कान के अंदर की झिल्लियां भी कमजोर पडने से कम सुनाई देने जैसी दिक्कतें भी पैदा हो सकती हैं. अभिवावकों को अपने बच्चों के ऊपर इस दौरान ध्यान देने की जरूरत है. उनकी आंखों में दिक्कतें न पैदा हो इसके लिए लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों को बचाएं, साथ ही लुब्रिकेंट आदि का इस्तेमाल बच्चों की आंखों में करें. चिकित्सकों से परामर्श लें और बच्चों की आंखों की जांच समय समय पर करवाते रहें. एक अभिवावक से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने सरकार और शिक्षा विभाग की इस प्रणाली को अब बंद करके विद्यालय खोले जाने की मांग की. उन्होंने कहा कि जब सरकार बाजारें और शराब की दुकानें आदि खुल सकती हैं, तो सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम कर विद्यालय क्यों नहीं खोले जा रहे. उन्होंने कहा कि बच्चों का 4 से 5 घण्टा मोबाइल पर पढ़ाई करना बहुत ही हानिकारक है. इससे बच्चे कम समय मे ही आंखों की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं, साथ ही बच्चों के दिमाग पर भी इसका काफी बुरा असर पड़ने लगा है.

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जिला विद्यालय निरीक्षक वीके दुबे ने जानकारी दी कि मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल आमतौर पर तो हानिकारक है ही लेकिन, बच्चों की पढ़ाई भी बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए टीवी चैनल पर कक्षाओं को चलाने की व्यवस्था की गई है. साथ ही अब उनके स्कूल जाने के प्रबंध भी लगभग कर दिए गए हैं. जिससे कि वह बड़ी स्क्रीन पर भी पढ़ सकें और स्कूल जाकर पढ़ाई शुरू कर सकें. जिससे कि विद्यार्थियों की आंखों को आराम मिल सके. उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों की 5 घण्टे की कक्षाओं को ऑनलाइन ही संचालित किया जा रहा है, जिसमें उन्हें एक क्लास के बाद आधे घण्टे का ब्रेक दिया जाता है. जिसमें वह अपनी आंखों को आराम दे सकें.

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