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यूपी के हापुड़ की रहने वाली 'पैड वुमेन' को मिला आस्कर का 'स्नेह' - एकेडमी अवार्ड्स

साल 2017 में अमेरिका से आई एक टीम ने स्नेह पर आधारित एक छोटी सी फिल्म 'पीरियडः एंड ऑफ सेंटेंस' को बनाया. उसी फिल्म ने आज ऑस्कर में चार विदेशी फिल्मों को पछाड़ते हुए जीत हासिल की है.

'पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस'
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Published : Feb 25, 2019, 2:56 PM IST

हापुड़ : महिलाओं को जहां आज भी घर से बाहर निकलने के लिए तमाम बंदिशों को सहना पड़ता है, घर के अंदर भी उन्हें पर्दे में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. वहीं समाज के तमाम तानों और उपेक्षाओं को झेलकर एक महिला ने अपनी मेहनत और लगन से ऐसा काम कर दिखाया जिसकी अब हर कोई तारीफ कर रहा है. यूपी के हापुड़ के छोटे से गांव की रहने वाली एक महिला स्नेहा ने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने जिले हापुड़ का नाम रोशन किया है, बल्कि देश का नाम विदेश में भी रोशन किया है. नारी स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर बनी फिल्म 'पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस' ने ऑस्कर जीत कर इतिहास रचा है.

देखें विशेष रिपोर्ट.

यह फिल्म हापुड़ जिले के गांव काटीखेड़ा की एक लड़की पर फिल्माई गई है. यह लड़की सहेलियों संग मिलकर अपने ही गांव में सबला महिला उद्योग समिति में सेनेटरी पैड बनाती है. यह पैड गांव की महिलाओं के साथ नारी सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था एक्शन इंडिया को भी सप्लाई किया जाता है. वहीं ऑस्कर मिलने की इस उपलब्धि से सभी खुश हैं. स्नेहा की सहयोगी सुमन बताती हैं कि उन्हें अपने पैड्स बनाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा कि उसे झूठ बोलकर घर के पीछे से रास्ता बनाकर जाना पड़ता था. वहीं यहां काम करने वाली महिलाओं और युवतियों को सेनेटरी पैड बनाने जाने के लिए घर पर झूठ बोलकर जाना पड़ता था. वह कहती थी कि वो बच्चों के लिए डाइपर बनाने का काम करती हैं.

सुमन ने बताया की उनको काफी संघर्षो से गुरजना पड़ा. जब उन्होंने पैड्स बनाने की शुरुआत की थो महिलाएं तक भी उनपर हंसती थी, लेकिन स्नेहा ने दुनिया की कोई परवाह नहीं की और अपने काम में आगे बढ़ती चली गयी. धीरे-धीरे स्नेहा ने महिलाओं को भी जागरूक करना शुरू कर दिया और गांव की ही कुछ महिलाओं ने भी पैड्स बनाने का काम शुरू कर दिया. साल 2017 में अमेरिका से आई एक टीम ने स्नेहा पर आधारित एक छोटी सी फिल्म 'पीरियडः एंड ऑफ सेंटेंस' को बनाया वही फिल्म आज ऑस्कर में चार विदेशी फिल्मों को पछाड़ते हुए जीत हासिल की है.

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हापुड़ : महिलाओं को जहां आज भी घर से बाहर निकलने के लिए तमाम बंदिशों को सहना पड़ता है, घर के अंदर भी उन्हें पर्दे में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. वहीं समाज के तमाम तानों और उपेक्षाओं को झेलकर एक महिला ने अपनी मेहनत और लगन से ऐसा काम कर दिखाया जिसकी अब हर कोई तारीफ कर रहा है. यूपी के हापुड़ के छोटे से गांव की रहने वाली एक महिला स्नेहा ने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने जिले हापुड़ का नाम रोशन किया है, बल्कि देश का नाम विदेश में भी रोशन किया है. नारी स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर बनी फिल्म 'पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस' ने ऑस्कर जीत कर इतिहास रचा है.

देखें विशेष रिपोर्ट.

यह फिल्म हापुड़ जिले के गांव काटीखेड़ा की एक लड़की पर फिल्माई गई है. यह लड़की सहेलियों संग मिलकर अपने ही गांव में सबला महिला उद्योग समिति में सेनेटरी पैड बनाती है. यह पैड गांव की महिलाओं के साथ नारी सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था एक्शन इंडिया को भी सप्लाई किया जाता है. वहीं ऑस्कर मिलने की इस उपलब्धि से सभी खुश हैं. स्नेहा की सहयोगी सुमन बताती हैं कि उन्हें अपने पैड्स बनाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा कि उसे झूठ बोलकर घर के पीछे से रास्ता बनाकर जाना पड़ता था. वहीं यहां काम करने वाली महिलाओं और युवतियों को सेनेटरी पैड बनाने जाने के लिए घर पर झूठ बोलकर जाना पड़ता था. वह कहती थी कि वो बच्चों के लिए डाइपर बनाने का काम करती हैं.

सुमन ने बताया की उनको काफी संघर्षो से गुरजना पड़ा. जब उन्होंने पैड्स बनाने की शुरुआत की थो महिलाएं तक भी उनपर हंसती थी, लेकिन स्नेहा ने दुनिया की कोई परवाह नहीं की और अपने काम में आगे बढ़ती चली गयी. धीरे-धीरे स्नेहा ने महिलाओं को भी जागरूक करना शुरू कर दिया और गांव की ही कुछ महिलाओं ने भी पैड्स बनाने का काम शुरू कर दिया. साल 2017 में अमेरिका से आई एक टीम ने स्नेहा पर आधारित एक छोटी सी फिल्म 'पीरियडः एंड ऑफ सेंटेंस' को बनाया वही फिल्म आज ऑस्कर में चार विदेशी फिल्मों को पछाड़ते हुए जीत हासिल की है.

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समाज की उपेक्षा सहकर, कड़े संघर्ष के बीच किया ये काम, ऑस्कर का मिला अवार्ड 
हापुड़। महिलाओं को जहां आज भी घर से बाहर निकलने के लिए जहां तमाम बंदिशों को सहना पड़ता है, घर के अंदर भी उन्हें पर्दे में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वहीं समाज के तमाम तानों और उपेक्षाओं को झेलकर एक महिला ने अपनी मेहनत और लगने से ऐसा काम कर दिखाया जिसकी अब हर कोई तारीफ कर रहा है। राजधानी दिल्ली से करीब 55 किलोमीटर दूर बसे हापुड़ के छोटे से गांव की रहने वाली एक महिला सुमन ने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपने जिले हापुड़ का नाम रोशन किया है बल्कि देश का नाम विदेश में रोशन किया है। नारी स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर बनी फिल्म 'पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस' ऑस्कर के लिए न केवल नामांकित हुई बल्कि उसने अवार्ड भी जीत लिया।
 यह फिल्म हापुड़ जिले के गांव काटीखेड़ा की एक लड़की पर फिल्माई गई है। यह लड़की सहेलियों संग मिलकर अपने ही गांव में सबला महिला उद्योग समिति में सेनेटरी पैड बनाती है। यह पैड गांव की महिलाओं के साथ नारी सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था एक्शन इंडिया को भी सप्लाई किया जाता है। अपनी इस उपलब्धि से सभी खुश हैं। सुमन को अपने पेड्स बनाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा कि उसको काम करने के लिए अपने घर के पीछे एक रास्ता बनवाना पड़ा। वहीं यहां काम करने वाली महिलाओं और युवतियों को सैनेट्री पैड बनाने जाने के लिए घर पर झूठ बोलकर जाना पड़ता था। वह कहती थी कि वो बच्चों के लिए डाइपर बनाने का काम करती हैं।

सुमन ने बताया की उनको काफी संघर्षो से गुरजना पड़ा। जब उन्होंने पेड्स बनाने की शुरुआत की थो महिलाएं तक भी उनपर हंसती थी। लेकिन सुमन ने दुनिया की कोई परवाह नहीं की और अपने काम में आगे बढ़ती चली गयी। धीरे धीरे सुमन ने महिलाओं को भी जागरूक करना शुरू कर दिया और गांव की ही कुछ महिलाओं ने भी पेड्स बनाने का काम शुरू कर दिया। वर्ष 2017 में अमेरिका से आई एक टीम ने सुमन पर आधारित एक छोटी की फिल्म पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस को बनाया जोकि ऑस्कर के लिए नामित हुई। 

बाईट -  सबाना (कोर्डिनेटर, संस्था एक्शन इण्डिया)

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