हापुड़: वो जब तक जिंदा था तो उसे बचाने के लिए नहीं जागा प्रशासन, वो मर गया तब भी नहीं जागे आधिकारी, उनका शव 75 दिनों तक मुखाग्नि का इंतजार कर रहा था तब नहीं खुली नाकारा आधिकारियों की नींद. लेकिन अब जब अधिकारियों के नाकारेपन की खबरें मीडिया में आई हैं तो प्रशासन अपनी पीड़ित परिवार के घाव पर मरहम लगाकर अपनी इज्जत बचाने में जुटी हुई है. दरअसल, बीते दिनों हापुड़ जिले में पिछले दिनों एक ऐसा मामला सामने आया था जिसने मानवता को शर्मसार करने के साथ, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए थे. यहां एक अस्पताल ने कोरोना मरीज की मौत के बाद 15 हजार रुपये ना देने के चलते परिजनों को शव देने से मना कर दिया था. जिसके बाद गरीब मरीज के परिजन करीब दो महीने तक तक दर-दर भटकते रहे. लेकिन, किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी और 75 दिनों बाद मृतक मरीज के शव का अंतिम संस्कार किया गया. इस मामले के तूल पकड़ते के बाद जिला प्रशासन अब हरकत में आ आया है और अब प्रशासन के अधिकारी पीड़ित परिवार के घाव पर मरहम लगाने के काम में जुटे गए हैं.
घाव पर मरहम लगाने में जुटा प्रशासन
जिलाधिकारी अनुज सिंह ने मामले का संज्ञान लेते हुए मृतक की पत्नी गुड़िया को तत्काल अपने ऑफिस बुलाकर सारी घटना की जानकारी ली. खाने के लिए डेढ़ माह का राशन, 3 हजार रूपये नगद, गैस सिलेंडर और चूल्हा देने के अलावा मृतक की पत्नी को नौकरी देने और बेटी का स्कूल में दाखिला कराने सम्बंधित निर्देश अधिकारियों को दिए. वहीं सीएमओ रेखा शर्मा का कहना है कि उन्होंने नरेश के परिजनों को काफी तलाश किया, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं मिला. परिवार की तरफ जो मोबाइल नम्बर जो दिया गया था वह लगातार बंद जा रहा था. सीएमओ के मुताबिक मृतक नरेश के परिजनों को ढूंढ़ने के लिए उन्होंने कई बार पुलिस-प्रशासन से पत्राचार किया.
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क्या था पूरा मामला
जिले के देहात थाना क्षेत्र में ठेला लगाकर अपने परिवार का गुजारा करने वाले नरेश का तबीयत खराब होने के बाद परिजनों ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया. जहां से हालत बिगड़ने पर उसको स्वास्थ्य विभाग ने मेरठ मेडिकल के लिए रेफर कर दिया. यहां उसकी 15 अप्रैल 2021 को उपचार के दौरान मौत हो गई. नरेश के बडे़ भाई विजय के मुताबिक, नरेश की मौत के बाद डॉक्टरों ने शव देने के एवज में 15 हजार की मांग की. लेकिन, जब गरीब परिवार पैसे का इंतजाम नहीं कर सका तो मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने कहा नरेश कोरोना से संक्रमित था. लिहाजा हम ही अंतिम संस्कार कर देंगे. ये बात सुनकर अब नरेश की विधवा भी अपने घर को चली गई. हालांकि, इस बीच मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने शव को हापुड़ भेज दिया. जहां, स्वास्थ्य विभाग ने नरेश के शव को जीएस मेडिकल कॉलेज की मोर्चरी में रखवा दिया. इसके बाद पुलिस-प्रशासन और स्वास्थ विभाग को मृतक के परिजनों की तलाश का जिम्मा सौंपा गया. मृतक नरेश के परिवार में उसकी पत्नी और दो बेटियों और एक बेटे है.
सांकेतिक रूप से किया शव का अंतिम संस्कार
करीब 70 दिन बाद थाना देहात पुलिस नरेश जहां किराए पर रहता था, वहां पहुंची. उसके बारे में जानकारी की तो पता चला कि नरेश के परिजन आर्थिक तंगी और किराए का पैसा नहीं दे पाने के कारण अपने गृह जनपद बस्ती के गांव नाथपुर चले गए हैं. पुलिस ने 70 दिन बाद बस्ती में उसके परिजनों से संपर्क साधा और समस्त घटनाक्रम की सूचना परिजनों को दी. पुलिस ने अवगत कराया कि नरेश का शव आज भी मोर्चरी में रखा हुआ है. इसलिए परिजन अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जाएं. हालांकि, परिजन सांकेतिक रूप से नरेश का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार कर चुके थे.
वहीं नरेश का असली शव 70 दिनों बाद भी मोर्चरी में रखा हुआ अंतिम संस्कार की बाट जोह रहा था. जो पत्नी गुड़िया अंतिम समय में अपने पति के दर्शन नहीं कर पाई थी, अब वो परिजनों और तीनों मासूम बच्चों संग 750 किलोमीटर दूर से बुधवार को हापुड़ पहुंची. जिसके बाद 75 दिनों से लावारिश शव पड़े नरेश के शव का स्वास्थ्य विभाग की टीम और सामाजिक संस्था ने अंतिम संस्कार कर दिया.