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हमीरपुर के वीरपुरुष ने आजादी के लिए पत्नी के साथ काटी थी जेल

हमीरपुर के वीर पुरुष शत्रुघ्न सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ किशोरावस्था से ही स्वाधीनता संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया था. उन्हें हिंदुस्तान का पहला ग्राम दानी होने का गौरव भी प्राप्त है. गांधी के आदर्शों पर चलने की वजह से लोग उन्हें बुंदेलखंड का गांधी (Gandhi of Bundelkhand) भी कहते हैं.

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हमीरपुर के वीरपुरुष दीवान शत्रुघ्न सिंह और उनकी पत्नी हारानी राजेंद्र कुमारी ने देश की आजादी के लिए कई बार जेल गए
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Published : Aug 14, 2022, 10:28 PM IST

हमीरपुर: जनपद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शत्रुघ्न सिंह (Legend Shatrughan Singh) ऐसे शख्स थे जो देश की आजादी के लिए बाल्यकाल से ही लड़ने लगे थे. बाल्यकाल में पिता की मृत्यु के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने बिगुल फूंक दिया था. अंग्रेजों ने उन्हें कई बार जेल भेजा था. सन् 1952 को संत विनोबा भावे (Sant Vinova Bhave) के भूदान यज्ञ में उन्होंने अपना पूरा गांव दान में दे दिया था. आजादी के इस अमृत महोत्सव में ईटीवी भारत राठ क्षेत्र के ऐसे ही वीरपुरुष के महत्वपूर्ण योगदान के बारे बता रहा है.

राठ के मंगरौठ गांव में 25 दिसंबर 1902 में सुदर्शन सिंह के घर में जन्मे दीवान शत्रुघ्न सिंह के विद्यार्थी जीवन में ही भारत को आजादी दिलाने के लिए दिल में आग दहकने लगी थी. जन्म के चार माह में ही पिता का साया उठ गया था. उनका विवाह फतेहपुर जिले के गाजीपुर के जमींदार की कन्या राजेंद्र कुमारी से हुआ था. आजादी की लड़ाई में दीवान शत्रुघ्न सिंह की पत्नी ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया. दोनों ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से बगावत करते हुए एक अंग्रेज कलेक्टर को युद्धफंड में चन्दा देने में मना कर की थी.

दरअसल विश्वयुद्ध की लड़ाई के लिए राठ के तहसीलदार ने चंदा एकत्र करने के लिए प्रबुद्धजनों की एक बैठक बुला कर उनसे सरकार को चंदा देने की अपील की थी. तब दीवान शत्रुघ्न सिंह ने चंदा देने से साफ इनकार कर बैठक से बाहर चले गए थे. तब सरकारी अधिकारियों ने उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी. उनके खिलाफ यहां पहला राजनीतिक मुकदमा भी दर्ज हुआ था.


1921 में कांग्रेस के वालटियरों की भर्ती पर जब अंग्रेजों ने रोक लगाई. इसके उल्लंघन करने और सत्याग्रह करने पर उन्हें हिरासत में लेकर जेल में बंद कर दिया गया था. सत्याग्रह करने पर दीवान शत्रुघ्न सिंह को डेढ़ साल की सजा दी गई थी. सजा के बाद इन्हें आगरा जेल भेजा गया था. इसके बाद नमक सत्याग्रह करने पर इनके तमाम साथियों को हमीरपुर, उन्नाव और लखनऊ की जेल में सजा काटनी पड़ी थी. व्यक्तिगत सत्याग्रह करने पर उन्हें सेंट्रल जेल चुनार भेजा गया था. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के आह्वान पर उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया. दीवान साहब को 1923 व नमक सत्याग्रह में सन् 1930 में व अभिनय अभज्ञा आंदोलन में 1933 में दीवान साहब को उनकी पत्नी राजेन्द्र कुमारी के साथ गिरफ्तार कर फतेहगढ़ जेल भेजा गया. 1940 में सत्याग्रह आंदोलन में चुनार जेल भेज दिया गया.

महात्मा गांधी के आवाहन पर सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कूदे और 3 वर्ष के लिए जेल भेज दिए गए. दीवान शत्रुघ्न सिंह को नेहरू, पंत, शास्त्री, विद्यार्थी एवं विनोबा जैसे नेताओं का सान्निध्य प्राप्त था. दीवान साहब ने मई 1952 में मंगरौठ ग्राम विनोबाजी को दान कर दिया. इस वजह से उन्हें हिंदुस्तान का पहला ग्राम दानी होने का गौरव प्राप्त है. उन्होंने कुछ रचनात्मक कार्य भी किये. जिसमें जीआरवी इंटर कॉलेज राठ (GRV Inter College Rath) एवं मंगरौठ में पंडित परमानंद इंटर कॉलेज (Pandit Parmanand Inter College) की स्थापना भी शामिल है. दीवान शत्रुघ्न सिंह वर्ष 1948 से 1957 तक जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे. दीवान साहब और उनकी पत्नी के नाम डाक टिकट जारी कर अमेरिका ने गौरव बढ़ाया था.

यह भी पढ़ें-दो सुनारों से हुई लूट का खुलासा, चार अभियुक्त गिरफ्तार
दीवान शत्रुघ्न सिंह की पत्नी महारानी राजेंद्र कुमारी ने पर्दा प्रथा की पुरजोर मुखालफत की थी. उन्होंने पति के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी. आजादी की लड़ाई में 1930 के बाद वह भी 4 बार जेल गई थी. स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता को महारानी राजेन्द्र कुमारी ने चुनाव में हराया था. वह जनपद के मौदहा विधानसभा से विधायक भी चुनी गई थी. दीवान साहब की मौत के बाद उन्होंने खाना-पीना छोड़कर शरीर त्याग दिया था.

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हमीरपुर: जनपद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शत्रुघ्न सिंह (Legend Shatrughan Singh) ऐसे शख्स थे जो देश की आजादी के लिए बाल्यकाल से ही लड़ने लगे थे. बाल्यकाल में पिता की मृत्यु के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने बिगुल फूंक दिया था. अंग्रेजों ने उन्हें कई बार जेल भेजा था. सन् 1952 को संत विनोबा भावे (Sant Vinova Bhave) के भूदान यज्ञ में उन्होंने अपना पूरा गांव दान में दे दिया था. आजादी के इस अमृत महोत्सव में ईटीवी भारत राठ क्षेत्र के ऐसे ही वीरपुरुष के महत्वपूर्ण योगदान के बारे बता रहा है.

राठ के मंगरौठ गांव में 25 दिसंबर 1902 में सुदर्शन सिंह के घर में जन्मे दीवान शत्रुघ्न सिंह के विद्यार्थी जीवन में ही भारत को आजादी दिलाने के लिए दिल में आग दहकने लगी थी. जन्म के चार माह में ही पिता का साया उठ गया था. उनका विवाह फतेहपुर जिले के गाजीपुर के जमींदार की कन्या राजेंद्र कुमारी से हुआ था. आजादी की लड़ाई में दीवान शत्रुघ्न सिंह की पत्नी ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया. दोनों ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से बगावत करते हुए एक अंग्रेज कलेक्टर को युद्धफंड में चन्दा देने में मना कर की थी.

दरअसल विश्वयुद्ध की लड़ाई के लिए राठ के तहसीलदार ने चंदा एकत्र करने के लिए प्रबुद्धजनों की एक बैठक बुला कर उनसे सरकार को चंदा देने की अपील की थी. तब दीवान शत्रुघ्न सिंह ने चंदा देने से साफ इनकार कर बैठक से बाहर चले गए थे. तब सरकारी अधिकारियों ने उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी. उनके खिलाफ यहां पहला राजनीतिक मुकदमा भी दर्ज हुआ था.


1921 में कांग्रेस के वालटियरों की भर्ती पर जब अंग्रेजों ने रोक लगाई. इसके उल्लंघन करने और सत्याग्रह करने पर उन्हें हिरासत में लेकर जेल में बंद कर दिया गया था. सत्याग्रह करने पर दीवान शत्रुघ्न सिंह को डेढ़ साल की सजा दी गई थी. सजा के बाद इन्हें आगरा जेल भेजा गया था. इसके बाद नमक सत्याग्रह करने पर इनके तमाम साथियों को हमीरपुर, उन्नाव और लखनऊ की जेल में सजा काटनी पड़ी थी. व्यक्तिगत सत्याग्रह करने पर उन्हें सेंट्रल जेल चुनार भेजा गया था. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के आह्वान पर उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया. दीवान साहब को 1923 व नमक सत्याग्रह में सन् 1930 में व अभिनय अभज्ञा आंदोलन में 1933 में दीवान साहब को उनकी पत्नी राजेन्द्र कुमारी के साथ गिरफ्तार कर फतेहगढ़ जेल भेजा गया. 1940 में सत्याग्रह आंदोलन में चुनार जेल भेज दिया गया.

महात्मा गांधी के आवाहन पर सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कूदे और 3 वर्ष के लिए जेल भेज दिए गए. दीवान शत्रुघ्न सिंह को नेहरू, पंत, शास्त्री, विद्यार्थी एवं विनोबा जैसे नेताओं का सान्निध्य प्राप्त था. दीवान साहब ने मई 1952 में मंगरौठ ग्राम विनोबाजी को दान कर दिया. इस वजह से उन्हें हिंदुस्तान का पहला ग्राम दानी होने का गौरव प्राप्त है. उन्होंने कुछ रचनात्मक कार्य भी किये. जिसमें जीआरवी इंटर कॉलेज राठ (GRV Inter College Rath) एवं मंगरौठ में पंडित परमानंद इंटर कॉलेज (Pandit Parmanand Inter College) की स्थापना भी शामिल है. दीवान शत्रुघ्न सिंह वर्ष 1948 से 1957 तक जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे. दीवान साहब और उनकी पत्नी के नाम डाक टिकट जारी कर अमेरिका ने गौरव बढ़ाया था.

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दीवान शत्रुघ्न सिंह की पत्नी महारानी राजेंद्र कुमारी ने पर्दा प्रथा की पुरजोर मुखालफत की थी. उन्होंने पति के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी. आजादी की लड़ाई में 1930 के बाद वह भी 4 बार जेल गई थी. स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता को महारानी राजेन्द्र कुमारी ने चुनाव में हराया था. वह जनपद के मौदहा विधानसभा से विधायक भी चुनी गई थी. दीवान साहब की मौत के बाद उन्होंने खाना-पीना छोड़कर शरीर त्याग दिया था.

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