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अपनों से न काट दें सपनों की ये दुनिया, जानें सोशल मीडिया के Side Effect

डीडीयू विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में छह माह पहले स्थापित हुए "स्वास्थ्य मनोविज्ञान परामर्श" केंद्र में कई मामले ऐसे है जिसमें इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल साइटों पर लाइक, कमेंट को लेकर तमाम यंगस्टर्स साइकोपैथी के शिकार हो रहे हैं.

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Published : May 24, 2022, 7:00 PM IST

गोरखपुर : आज के दौर में मोबाइल और कंप्यूटर हमारे जीवन से ऐसे जुड़ गए हैं कि इन्हें अब अलग नहीं किया जा सकता. जहां एक तरफ इसके फायदे हैं तो दूसरी ओर यह आग में घी का काम भी कर रहे है. ऊपर से तरह-तरह के एप जो बच्चों के बीच मशहूर हैं जिसके चलते बच्चे अब ग्राउंड में जाकर खेलने की बजाए मोबाइल पर गेम्स खेलना, इंटाग्राम पर रिल्स बनाना ज्यादा पसंद करने लगे है. गोरखपुर विश्वविद्यालय से एक ऐसी खबर सामने आई है जो माता-पिता की चिंता बढ़ा सकती है. जी हां, डीडीयू के मनोविज्ञान विभाग में छह माह पहले स्थापित हुए "स्वास्थ्य मनोविज्ञान परामर्श" केंद्र से कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल साइटों पर लाइक, कमेंट को लेकर एक्टिव और अपने अनुकूल जवाब न पाने से तमाम यंगस्टर्स साइकोपैथी के शिकार हो रहे हैं.

सोशल मीडिया पर खास रिपोर्ट

मनोवैज्ञानिक परामर्श केंद्र की प्रभारी और विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग डॉक्टर अनुभूति दुबे का कहना है कि आज के समय में बच्चे सोशल मीडिया एप जैसे फेसबुक, इस्टाग्राम, यूट्यूबर पर अपना ज्यादा से ज्यादा समय बीता रहे है. इसके चलते बच्चों की सेहत और कैरियर दोनों प्रभावित हो रहा है. इतना ही नहीं, वह अब धीरे-धीरे साइकोपैथी के शिकार हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा "स्वास्थ्य मनोविज्ञान परामर्श" केंद्र स्थापित किया गया है जिसमें स्टूडेंट और उनके अभिभावकों को इससे बचने का परामर्श दिया जा रहा है.

यह भी पढ़ें- यूपी में कोरोना के 75 नए मरीज, 43 जिलों में 10 से कम बचे एक्टिव केस

डॉक्टर अनुभूति दुबे ने बताया कि इस दौरान सप्ताह में दो दिन शुक्रवार और शनिवार को दोपहर 12:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक काउंसलिंग होती है. इसमें उन्हें इसके नुकसान और फायदे के बारे में बताया जाता है. साथ ही सोशल मीडिया के प्रयोग से बच्चे स्रापचैट डिसमॉर्फिया सिंड्रोम, फबिंग, फेसबुक डीप्रेशन, सोशल मीडिया एंग्जाइटी डिसऑर्डर, फैंटम रिंगिग सिंड्रोम, नोमोफोबिया, साइबर चोड्रिया, गूगल इफेक्ट और फोमो जैसी बीमारियां हो रही है. उन्होंने कहा कि जिन बच्चों में यह समस्या पाई जा रही है. वह ज्यादा से ज्यादा समय अपना फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर गुजारते हैं. कुछ को तो वीडियो बनाने और यूट्यूबर बनने की लत लग चुकी है.

डॉक्टर अनुभूति दुबे ने एक मामले का जिक्र करते हुए कहा कि बीए सेकंड ईयर की स्टूडेंट ने इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो को एडिट कर डाला. इस फोटो को उसने एडिट कर इतना संवार दिया था. अब उसी तरह खुद को लाइफ में दिखाना उसके लिए चुनौती बन गई थी. आलम यहा था कि अब उसे इस दुनिया से बाहर निकलने से भी डर लग रहा था. वह सोच रही थी कि जिस रूप में लोगों के उसे लाइक कमेंट मिले हैं. अगर उन्हें उसका असली चेहरा दिखेगा तो फिर क्या होगा.

इसी प्रकार बी.कॉम की एक स्टूडेंट केवल इसलिए परेशान रहती है कि उसकी अच्छी से अच्छी पोस्ट पर अधिक लाइक नहीं मिलते हैं. पूरे दिन, कभी-कभी रात में पूरा चैनल लाइक देखने के लिए वह मोबाइल झांकने में गुजार देती है और फिर सोचती है कि कैसी पोस्ट डाले जिससे उससे अधिक लाइक मिले.

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गोरखपुर : आज के दौर में मोबाइल और कंप्यूटर हमारे जीवन से ऐसे जुड़ गए हैं कि इन्हें अब अलग नहीं किया जा सकता. जहां एक तरफ इसके फायदे हैं तो दूसरी ओर यह आग में घी का काम भी कर रहे है. ऊपर से तरह-तरह के एप जो बच्चों के बीच मशहूर हैं जिसके चलते बच्चे अब ग्राउंड में जाकर खेलने की बजाए मोबाइल पर गेम्स खेलना, इंटाग्राम पर रिल्स बनाना ज्यादा पसंद करने लगे है. गोरखपुर विश्वविद्यालय से एक ऐसी खबर सामने आई है जो माता-पिता की चिंता बढ़ा सकती है. जी हां, डीडीयू के मनोविज्ञान विभाग में छह माह पहले स्थापित हुए "स्वास्थ्य मनोविज्ञान परामर्श" केंद्र से कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल साइटों पर लाइक, कमेंट को लेकर एक्टिव और अपने अनुकूल जवाब न पाने से तमाम यंगस्टर्स साइकोपैथी के शिकार हो रहे हैं.

सोशल मीडिया पर खास रिपोर्ट

मनोवैज्ञानिक परामर्श केंद्र की प्रभारी और विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग डॉक्टर अनुभूति दुबे का कहना है कि आज के समय में बच्चे सोशल मीडिया एप जैसे फेसबुक, इस्टाग्राम, यूट्यूबर पर अपना ज्यादा से ज्यादा समय बीता रहे है. इसके चलते बच्चों की सेहत और कैरियर दोनों प्रभावित हो रहा है. इतना ही नहीं, वह अब धीरे-धीरे साइकोपैथी के शिकार हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा "स्वास्थ्य मनोविज्ञान परामर्श" केंद्र स्थापित किया गया है जिसमें स्टूडेंट और उनके अभिभावकों को इससे बचने का परामर्श दिया जा रहा है.

यह भी पढ़ें- यूपी में कोरोना के 75 नए मरीज, 43 जिलों में 10 से कम बचे एक्टिव केस

डॉक्टर अनुभूति दुबे ने बताया कि इस दौरान सप्ताह में दो दिन शुक्रवार और शनिवार को दोपहर 12:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक काउंसलिंग होती है. इसमें उन्हें इसके नुकसान और फायदे के बारे में बताया जाता है. साथ ही सोशल मीडिया के प्रयोग से बच्चे स्रापचैट डिसमॉर्फिया सिंड्रोम, फबिंग, फेसबुक डीप्रेशन, सोशल मीडिया एंग्जाइटी डिसऑर्डर, फैंटम रिंगिग सिंड्रोम, नोमोफोबिया, साइबर चोड्रिया, गूगल इफेक्ट और फोमो जैसी बीमारियां हो रही है. उन्होंने कहा कि जिन बच्चों में यह समस्या पाई जा रही है. वह ज्यादा से ज्यादा समय अपना फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर गुजारते हैं. कुछ को तो वीडियो बनाने और यूट्यूबर बनने की लत लग चुकी है.

डॉक्टर अनुभूति दुबे ने एक मामले का जिक्र करते हुए कहा कि बीए सेकंड ईयर की स्टूडेंट ने इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो को एडिट कर डाला. इस फोटो को उसने एडिट कर इतना संवार दिया था. अब उसी तरह खुद को लाइफ में दिखाना उसके लिए चुनौती बन गई थी. आलम यहा था कि अब उसे इस दुनिया से बाहर निकलने से भी डर लग रहा था. वह सोच रही थी कि जिस रूप में लोगों के उसे लाइक कमेंट मिले हैं. अगर उन्हें उसका असली चेहरा दिखेगा तो फिर क्या होगा.

इसी प्रकार बी.कॉम की एक स्टूडेंट केवल इसलिए परेशान रहती है कि उसकी अच्छी से अच्छी पोस्ट पर अधिक लाइक नहीं मिलते हैं. पूरे दिन, कभी-कभी रात में पूरा चैनल लाइक देखने के लिए वह मोबाइल झांकने में गुजार देती है और फिर सोचती है कि कैसी पोस्ट डाले जिससे उससे अधिक लाइक मिले.

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