गोरखपुर: वनटांगिया समाज की बेटियां नारी स्वावलंबन की नई दास्तां लिख रहीं हैं. कभी झुग्गियों में रहने वाली वनटांगिया महिलाएं अब फैशन शो के रैंप पर जलवा बिखेर रहीं हैं. जनवरी 2022 से अब तक वनटांगिया महिलाएं कई महोत्सव में प्रतिभाग कर चुकी हैं. इसमें गोरखपुर महोत्सव, आगरा महोत्सव, अयोध्या के सावन झूला महोत्सव, मथुरा, काशी में जी-20 समारोह और महराजगंज महोत्सव आदि शामिल हैं.
वनटांगिया महिलाओं को इस मुकाम तक पहुंचाने में एक महिला की मुख्य भूमिका है. वह दिल्ली हाईकोर्ट में अधिवक्ता के साथ एक समाजसेवी हैं, जिनका नाम शुगम शेखावत है. शुगम शेखावत ने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक बातचीत में बताया कि वनटंगिया समाज की बेटियां देश के विभिन्न पायदानों पर सफलता हासिल करें, इसके लिए उनका प्रयास जारी रहेगा. उनका कहना है कि फैशन व संस्कृति शो में प्रतिभाग कराकर वह वनटांगिया नारियों को आगे बढ़ा रहीं हैं. वहीं, सीएम योगी के मिशन शक्ति से खुद को जोड़ रहीं हैं. फैशन शो में रैंप पर चलने वालों में कोई बकरी चराती है, तो कोई खेती और सब्जी बेचने का काम करती है. वनटांगिया समाज की 17 साल की किशोरी से लेकर 66 वर्ष की बुजुर्ग तक रैंप पर सम्मान बंटोर चुकी हैं.
गौरतलब है कि सुगम शेखात के प्रयासों से वनटांगिया समाज की महिलाओं के हौसला और आत्मविश्वास को बढ़ावा मिला. जिस कारण इन सबने रैंप तक सफर तय किया है. सुगम सिंह शेखावत मूल रूप से राजस्थान की है. लेकिन, उनका जन्म और शिक्षा गोरखपुर में हुई है. वह वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं. सुगम सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से कभी वंचितों में गिने जाने वाले वनटांगिया समाज की जिंदगी में आए व्यापक परिवर्तन की मुरीद हैं.
गोरखपुर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार रितेश मिश्रा कहते हैं कि जिनकी पहचान जंगलों तक सिमट गई थी. उनको राज्य के कई महत्वपूर्ण शहरों में रैंप पर जलवा बिखेरते देखने की बात अचरज में डालती है. आज फैशन व संस्कृति शो में उनके कदम आत्मविश्वास से लबरेज होकर आगे बढ़ते हैं. वनटांगिया महिलाओं ने अब तक जितने भी फैशन शो किए, वे सब भारतीय संस्कृति के थीम पर रहे हैं.
इसका सिलसिला शुरू हुआ गोरखपुर महोत्सव 2022 से जिसके शो स्टॉपर थे फ़िल्म अभिनेता व सांसद रविकिशन. दशकों तक उपेक्षा ही वनटांगियों की पहचान बनी हुई थी. 2017 के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से इनके जीवन में भी विकास की दस्तक हुई. बुनियादी सुविधाओं से संतृप्त होकर वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ चुके हैं. आवास, बिजली, पानी, चूल्हा, राशन, पेंशन, सड़क, खेत की चिंताओं से उपर उठकर अब बड़ा सपना देख रहे हैं.
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