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शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के बलिदान दिवस पर दी श्रद्धांजलि

काकोरी कांड के महानायक शहीद राम प्रसाद बिस्मिल का आज 93वां बलिदान दिवस है. राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को यूपी के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी. आज ही के दिन आजादी की लड़ाई में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे. बलिदान दिवस पर उन्हें देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है...

महानायक शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को श्रद्धांजलि देते कार्यकर्ता.
महानायक शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को श्रद्धांजलि देते कार्यकर्ता.
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Published : Dec 19, 2020, 1:19 PM IST

गोरखपुर: गुरुकृपा संस्थान और अखिल भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा के बैनरतले शनिवार को (19 दिसम्बर) को अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के शहादत दिवस पर उन्हें मंडलीय कारागार में श्रद्धा सुमन अर्पित किया. उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर दीप जलाए गए. इस दौरान बृजेश राम त्रिपाठी के साथ राज्य सभा सांसद जय प्रकाश निषाद, प्रोफेसर अजय शुक्ला, जेलर प्रेम सागर शुक्ला समेत कई महिला नेत्री भी शामिल हुईं.

इस अवसर पर पिछले 11 वर्षों से अनवरत आयोजित हो रहे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बलिदानी मेला एवं खेल महोत्सव का आयोजन भी किया गया. इस आयोजन के तीसरे दिन बिस्मिल के बलिदान स्थल मंडलीय कारागार पर 19 दिसम्बर को श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित हुआ. इसके पूर्व इस कार्यक्रम और मेले के तहत देने शहर के चेतना तिराहे से मोटरसाइकिल और मशाल जुलूस भी निकाला गया.

श्रद्धांजलि कार्यक्रम पर मौजूद लोग.
श्रद्धांजलि कार्यक्रम पर मौजूद लोग.

बिस्मिल की शहादत पर दी गई श्रद्धांजलि

गोरखपुर मंडलीय कारागार में बिस्मिल को 19 दिसम्बर 1927 को प्रातः 6:30 बजे फांसी दी गई थी. इसी का आज भी पालन किया गया और जेल में बिस्मिल के चित्र पर दीप जलाकर आरती की गई. बलिदान स्थल पर रामेश्वरम से मंगाई गई विशेष शंख से शंखनाद किया गया, जिससे पूरा जेल परिसर गूंज उठा. बिस्मिल जेल के बंद कमरे से आज पूरी तरह आजाद हो चुके हैं. 1927 से उनकी यह स्थली जेल प्रशासन की देखरेख में था, जो समाजसेवी बृजेश राम त्रिपाठी की पहल पर आज पूरी तरह मुक्त हो चुका है. इसको योगी सरकार ने स्वतंत्र करते हुए करीब 2 करोड़ रुपये की धनराशि से इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का काम किया है.

दीपोत्सव में शामिल कार्यकर्ता.
दीपोत्सव में शामिल कार्यकर्ता.

महानायक शहीद की शहादत के किस्से से पटा गोरखपुर

बिस्मिल की शहादत के किस्से से पूरा गोरखपुर पटा पड़ा है. जेल में उन्होंने जहां अपनी आत्मकथा लिखी, वहीं उनकी शव यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए थे. उनकी माँ भी उनसे जेल पर मिलने आयीं थीं. उनकी शव यात्रा में शामिल होकर लोगों के लिए प्रेरणादायी भाषण भी दी थीं. आज उनके अंत्येष्टि स्थल राप्ती नदी के तट को बिस्मिल के नाम से किये जाने की मांग हो रही है, लेकिन समय अब करवट लेने लगा है. जेल परिसर की बंदिशों से बिस्मिल अब मुक्त होकर जहां सर्वसुलभ हुए हैं. वहीं अब इनसे जुड़ी चीजों के भी दिन बहुरने की उम्मीद जताई जा रही है.

गोरखपुर: गुरुकृपा संस्थान और अखिल भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा के बैनरतले शनिवार को (19 दिसम्बर) को अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के शहादत दिवस पर उन्हें मंडलीय कारागार में श्रद्धा सुमन अर्पित किया. उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर दीप जलाए गए. इस दौरान बृजेश राम त्रिपाठी के साथ राज्य सभा सांसद जय प्रकाश निषाद, प्रोफेसर अजय शुक्ला, जेलर प्रेम सागर शुक्ला समेत कई महिला नेत्री भी शामिल हुईं.

इस अवसर पर पिछले 11 वर्षों से अनवरत आयोजित हो रहे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बलिदानी मेला एवं खेल महोत्सव का आयोजन भी किया गया. इस आयोजन के तीसरे दिन बिस्मिल के बलिदान स्थल मंडलीय कारागार पर 19 दिसम्बर को श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित हुआ. इसके पूर्व इस कार्यक्रम और मेले के तहत देने शहर के चेतना तिराहे से मोटरसाइकिल और मशाल जुलूस भी निकाला गया.

श्रद्धांजलि कार्यक्रम पर मौजूद लोग.
श्रद्धांजलि कार्यक्रम पर मौजूद लोग.

बिस्मिल की शहादत पर दी गई श्रद्धांजलि

गोरखपुर मंडलीय कारागार में बिस्मिल को 19 दिसम्बर 1927 को प्रातः 6:30 बजे फांसी दी गई थी. इसी का आज भी पालन किया गया और जेल में बिस्मिल के चित्र पर दीप जलाकर आरती की गई. बलिदान स्थल पर रामेश्वरम से मंगाई गई विशेष शंख से शंखनाद किया गया, जिससे पूरा जेल परिसर गूंज उठा. बिस्मिल जेल के बंद कमरे से आज पूरी तरह आजाद हो चुके हैं. 1927 से उनकी यह स्थली जेल प्रशासन की देखरेख में था, जो समाजसेवी बृजेश राम त्रिपाठी की पहल पर आज पूरी तरह मुक्त हो चुका है. इसको योगी सरकार ने स्वतंत्र करते हुए करीब 2 करोड़ रुपये की धनराशि से इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का काम किया है.

दीपोत्सव में शामिल कार्यकर्ता.
दीपोत्सव में शामिल कार्यकर्ता.

महानायक शहीद की शहादत के किस्से से पटा गोरखपुर

बिस्मिल की शहादत के किस्से से पूरा गोरखपुर पटा पड़ा है. जेल में उन्होंने जहां अपनी आत्मकथा लिखी, वहीं उनकी शव यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए थे. उनकी माँ भी उनसे जेल पर मिलने आयीं थीं. उनकी शव यात्रा में शामिल होकर लोगों के लिए प्रेरणादायी भाषण भी दी थीं. आज उनके अंत्येष्टि स्थल राप्ती नदी के तट को बिस्मिल के नाम से किये जाने की मांग हो रही है, लेकिन समय अब करवट लेने लगा है. जेल परिसर की बंदिशों से बिस्मिल अब मुक्त होकर जहां सर्वसुलभ हुए हैं. वहीं अब इनसे जुड़ी चीजों के भी दिन बहुरने की उम्मीद जताई जा रही है.

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