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गंगा दशहरा 2020: 10 प्रकार के पापों का हरण करती हैं मां गंगा, जानिए कैसे हुआ अवतरण

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि और हस्त नक्षत्र में मां गंगा का स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था. ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त ज्येष्ठ शुक्ल दशमी दस प्रकार के पापों को हरने के कारण ही दशहरा कहलाती है.

सांकेतिक चित्र
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Published : Jun 1, 2020, 10:12 AM IST

गोरखपुर: आज का दिन 'गंगा दशहरा' का पावन दिन है. काशी से प्रकाशित पंचागों के अनुसार एक जून को सुबह 5 बजकर 16 मिनट पर और दशमी तिथि का मान दिन में 11 बजकर 54 मिनट तक है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि और हस्त नक्षत्र में मां गंगा का स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था. ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त ज्येष्ठ शुक्ल दशमी 10 प्रकार के पापों को हरने के कारण ही दशहरा कहलाती है. आइए जानते हैं उन 10 पापों को.

पहला- बिना अनुमति के दूसरे की वस्तु देना, दूसरा- हिंसा, तीसरा- पर स्त्री गमन, चौथा- कटु वचन बोलना, पांचवा- झूठ बोलना, छठा- पीछे से बुराई या चुगली करना, सातवां- निष्प्रयोजन बातें करना, यथा तीन मानसिक, आठवां- दूसरे की वस्तु को अन्याय पूर्ण ढंग से लेने का विचार रखना, नवां- दूसरे के अनिष्ट का चिन्तन करना, दसवां- नास्तिक बुद्धि रखना. इन्हीं 10 पापों का नाश गंगा दशहरा के दिन मां गंगा के पूजन-अर्चन से हो जाता है.

अनाज, जल और सत्तू करना चाहिए दान
ज्योतिष शरद चंद मिश्र के अनुसार, 'ज्येष्ठ मासि सिते पक्षे दशाम्यां बुध हस्तयोः। व्यतीपाते गरानन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ। दस योगे नरः स्नानात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।' अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को बुधवार हो, हस्त नक्षत्र हो, व्यतिपात योग हो, गर करण हो, आनंद नामक महायोग हो, सूर्य वृष राशि और चन्द्रमा कन्या राशि में हो तो ऐसा अभूतपूर्व योग महाफलदायक होता है.

व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. धर्म शास्त्रों के इस दिन निम्न मन्त्र का यथा संभव जप करना चाहिए. यदि हो सके तो उक्त मंत्र में नमः के स्थान पर 'स्वाहा' लगाकर हवन भी करें. तत्पश्चात 'ऊॅ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिलि-हिलि मिलि-मिलि गंगे मां पावय-पावय स्वाहा' इस मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके भगीरथ और हिमालय का भी पूजन करें. अंत में 10-10 मुट्ठी अनाज व अन्य वस्तुएं 10 ब्राह्मणों को दान करें. इस दिन जल और सत्तू का भी दान करना चाहिए.

ऐसे हुआ मां गंगा का अवतरण
गंगा दशहरा व्रत के बारे में पंडित मिश्र ने बताया कि अयोध्या के महाराजा सगर अपने असमंजस सहित 60 हजार पुत्रों के दुष्टता से बहुत दुःखी थे. फलतः असमंजस और 60 हजार पुत्रों के स्थान पर अपने पौत्र और असमंजस के पुत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया. जब सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तब इन्द्र ने अश्वमेध के घोड़े को पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. कपिल मुनि उस समय ध्यान मग्न थे. उन्हें इस बात की भनक न लगी.

जब सगर के 60 हजार पुत्रों को पता चला कि कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा बंधा हुआ है तो वह कपिल मुनि को मारने के लिए गए. कपिल मुनि ने अपने तेज से 60 हजार पुत्रों को भष्म कर दिया. अंशुमान को जब पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से प्रार्थना की. अंशुमान की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने उन्हें यज्ञ का घोड़ा वापस कर दिया और कहा कि गंगाजल के स्पर्श से सगर के 60 हजार पुत्रों की मुक्ति हो सकती है. महाराजा सगर का अश्वमेध यज्ञ समाप्त हुआ.

कुछ समय के पश्चात महाराज सगर ने अंशुमान को राजा बना दिया. परन्तु अंशुमान अपने चाचाओं की मुक्ति के लिए चिन्तित था. कुछ समय राज्य करने के बाद वह अपने पुत्र दिलीप को गद्दी सौंपने के पश्चात गंगा को पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिए वन में चले गए. जहां तपस्या करते हुए ही उन्होंने प्राण त्याग दिए, लेकिन पृथ्वी पर गंगा का अवतरण न हो सका. दिलीप भी प्रयास किए परन्तु वे भी असफल रहें. इसके बाद दिलीप के पुत्र भगीरथ ने प्रयास किया. भगीरथ ने ब्रह्मा के पश्चात शिव जी की आराधना की. तब समस्त देवगणों और भगीरथ के कठिन प्रयास से गंगा का अवतरण हुआ. इसलिए गंगा जी को 'भागीरथी' भी कहा जाता है.

गोरखपुर: आज का दिन 'गंगा दशहरा' का पावन दिन है. काशी से प्रकाशित पंचागों के अनुसार एक जून को सुबह 5 बजकर 16 मिनट पर और दशमी तिथि का मान दिन में 11 बजकर 54 मिनट तक है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि और हस्त नक्षत्र में मां गंगा का स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था. ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त ज्येष्ठ शुक्ल दशमी 10 प्रकार के पापों को हरने के कारण ही दशहरा कहलाती है. आइए जानते हैं उन 10 पापों को.

पहला- बिना अनुमति के दूसरे की वस्तु देना, दूसरा- हिंसा, तीसरा- पर स्त्री गमन, चौथा- कटु वचन बोलना, पांचवा- झूठ बोलना, छठा- पीछे से बुराई या चुगली करना, सातवां- निष्प्रयोजन बातें करना, यथा तीन मानसिक, आठवां- दूसरे की वस्तु को अन्याय पूर्ण ढंग से लेने का विचार रखना, नवां- दूसरे के अनिष्ट का चिन्तन करना, दसवां- नास्तिक बुद्धि रखना. इन्हीं 10 पापों का नाश गंगा दशहरा के दिन मां गंगा के पूजन-अर्चन से हो जाता है.

अनाज, जल और सत्तू करना चाहिए दान
ज्योतिष शरद चंद मिश्र के अनुसार, 'ज्येष्ठ मासि सिते पक्षे दशाम्यां बुध हस्तयोः। व्यतीपाते गरानन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ। दस योगे नरः स्नानात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।' अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को बुधवार हो, हस्त नक्षत्र हो, व्यतिपात योग हो, गर करण हो, आनंद नामक महायोग हो, सूर्य वृष राशि और चन्द्रमा कन्या राशि में हो तो ऐसा अभूतपूर्व योग महाफलदायक होता है.

व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. धर्म शास्त्रों के इस दिन निम्न मन्त्र का यथा संभव जप करना चाहिए. यदि हो सके तो उक्त मंत्र में नमः के स्थान पर 'स्वाहा' लगाकर हवन भी करें. तत्पश्चात 'ऊॅ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिलि-हिलि मिलि-मिलि गंगे मां पावय-पावय स्वाहा' इस मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके भगीरथ और हिमालय का भी पूजन करें. अंत में 10-10 मुट्ठी अनाज व अन्य वस्तुएं 10 ब्राह्मणों को दान करें. इस दिन जल और सत्तू का भी दान करना चाहिए.

ऐसे हुआ मां गंगा का अवतरण
गंगा दशहरा व्रत के बारे में पंडित मिश्र ने बताया कि अयोध्या के महाराजा सगर अपने असमंजस सहित 60 हजार पुत्रों के दुष्टता से बहुत दुःखी थे. फलतः असमंजस और 60 हजार पुत्रों के स्थान पर अपने पौत्र और असमंजस के पुत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया. जब सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तब इन्द्र ने अश्वमेध के घोड़े को पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. कपिल मुनि उस समय ध्यान मग्न थे. उन्हें इस बात की भनक न लगी.

जब सगर के 60 हजार पुत्रों को पता चला कि कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा बंधा हुआ है तो वह कपिल मुनि को मारने के लिए गए. कपिल मुनि ने अपने तेज से 60 हजार पुत्रों को भष्म कर दिया. अंशुमान को जब पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से प्रार्थना की. अंशुमान की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने उन्हें यज्ञ का घोड़ा वापस कर दिया और कहा कि गंगाजल के स्पर्श से सगर के 60 हजार पुत्रों की मुक्ति हो सकती है. महाराजा सगर का अश्वमेध यज्ञ समाप्त हुआ.

कुछ समय के पश्चात महाराज सगर ने अंशुमान को राजा बना दिया. परन्तु अंशुमान अपने चाचाओं की मुक्ति के लिए चिन्तित था. कुछ समय राज्य करने के बाद वह अपने पुत्र दिलीप को गद्दी सौंपने के पश्चात गंगा को पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिए वन में चले गए. जहां तपस्या करते हुए ही उन्होंने प्राण त्याग दिए, लेकिन पृथ्वी पर गंगा का अवतरण न हो सका. दिलीप भी प्रयास किए परन्तु वे भी असफल रहें. इसके बाद दिलीप के पुत्र भगीरथ ने प्रयास किया. भगीरथ ने ब्रह्मा के पश्चात शिव जी की आराधना की. तब समस्त देवगणों और भगीरथ के कठिन प्रयास से गंगा का अवतरण हुआ. इसलिए गंगा जी को 'भागीरथी' भी कहा जाता है.

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