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स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति का गवाह और आस्था का बड़ा केंद्र है देवी दुर्गा का 'तरकुलहा' मंदिर - तरकुलहा मंदिर

गोरखपुर में दुर्गा मां का तरकुलहा मंदिर चैत्र की नवरात्रि के लिए तैयार है. इस मंदिर की देश की आजादी की क्रांति में भी अहम भूमिका रही है.

"तरकुलहा" मंदिर
"तरकुलहा" मंदिर
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Published : Apr 1, 2022, 5:03 PM IST

गोरखपुर: चैत्र रामनवमी हो या शारदीय नवरात्र. इन दोनों अवसरों पर गोरखपुर के ऐतिहासिक और देश की आजादी की क्रांतिकारी गतिविधियों की साक्षी 'तरकुलहा देवी' मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां हर दिन मेले जैसा माहौल होता है. हालांकि नवरात्रों में यहां स्थानीय ही नहीं, दूसरे प्रांतों और जिलों के लोगों का भी बड़ी संख्या में आना लगा रहता है.

"तरकुलहा" मंदिर

गौरतलब है कि चैत्र रामनवमी की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है. मंदिर साफ-सफाई के साथ भक्तों के आगमन को लेकर तैयार है. ईटीवी भारत भी अपने दर्शकों और पाठकों तक इस ऐतिहासिक मंदिर की गाथा को पहुंचा रहा है. तरकुलहा माता के मंदिर को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने में शहीद बंधू सिंह जैसे क्रांतिकारी की अहम भूमिका है. जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय वर्तमान के तरकुलहा मंदिर परिक्षेत्र के घने जंगलों में देवी मां के पिंडी रूप में स्थापना करके पूजा अर्चना किया करते थे.

तरकुलहा  मंदिर
तरकुलहा मंदिर

यहीं से अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाते थे. मंदिर के पुजारी और क्रांतिकारी संदर्भ में वर्णित इस क्षेत्र के इतिहास के अनुसार जो भी अंग्रेज सिपाही इस क्षेत्र से गुजरते थे, बंधू सिंह उनका सिर कलम करके मां भगवती को भेंट कर देते थे. लगातार इस तरह की घटना से अंग्रेज काफी परेशान हो उठे थे. एक मुखबिर की सूचना पर बंधू सिंह को गिरफ्तार करने में वह कामयाब भी हो गए.

गिरफ्तारी और सजा के बाद बंधू सिंह को गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर बरगद के पेड़ पर खुले तौर पर अंग्रेजी हुकूमत में फांसी दी जा रही थी. मां भगवती के अनन्य भक्त की फांसी सात बार टल गई. फांसी का फंदा बार-बार टूट जा रहा था. अंत में खुद मां भगवती से बंधू सिंह ने आह्वान किया और अपने पास बुलाने को कहा. तब जाकर आठवीं बारे में बंधू सिंह को फांसी हो पाई.

उन्हें फांसी लगते ही तरकुलहा मंदिर क्षेत्र स्थित तरकुल का पेड़ टूट गया और रक्तस्राव होने लगा. रक्त स्थापित पिंडी पर गिरने लगा. धीरे-धीरे यह आस्था काफी मजबूत होती चली गई और यह स्थान दुर्गा स्वरूप तरकुलही माई के नाम से पूजा जाने लगा.

यह भी पढ़ें:चैत्र नवरात्र में इस तरह करें नौ गौरी की उपासना, इस मुहूर्त में करनी होगी कलश स्थापना

वर्तमान में इस स्थान को योगी सरकार ने शक्तिपीठ के रूप में मान्यता दे दी है. इसके विकास पर करोड़ों खर्च किया जा रहा है. बंधु सिंह का इतिहास इतना मजबूत था कि उन्हें सरकार ने भी सम्मान दिया और डाक टिकट जारी किया. आज मंदिर स्थान पर शहीद स्मारक, विश्रामालय, धर्मशाला, तालाब सभी का सुंदरीकरण तेजी से हो रहा है. यहां भक्तों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है.

यहां तक कि बिहार, नेपाल के अलावा पड़ोसी जिले से भी लोग यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पहुंचते हैं. ईटीवी से बातचीत के दौरान एक श्रद्धालु भावुक होते हुए अपनी भावनाओं का जिक्र किया. उसने कहा कि जब भी संकट आया मां तरकुलही ने उसके सभी संकटों को हरने का कार्य किया है. इसलिए वह बार-बार मां के दरबार में माथा टेकने आते हैं. नवरात्र के 9 दिनों में यहां दर्शन पूजन किया जाएगा. यहां बलि प्रथा अब भी जीवंत है. हर नवरात्रि यहां बकरे की बलि दी जाती है.
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गोरखपुर: चैत्र रामनवमी हो या शारदीय नवरात्र. इन दोनों अवसरों पर गोरखपुर के ऐतिहासिक और देश की आजादी की क्रांतिकारी गतिविधियों की साक्षी 'तरकुलहा देवी' मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां हर दिन मेले जैसा माहौल होता है. हालांकि नवरात्रों में यहां स्थानीय ही नहीं, दूसरे प्रांतों और जिलों के लोगों का भी बड़ी संख्या में आना लगा रहता है.

"तरकुलहा" मंदिर

गौरतलब है कि चैत्र रामनवमी की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है. मंदिर साफ-सफाई के साथ भक्तों के आगमन को लेकर तैयार है. ईटीवी भारत भी अपने दर्शकों और पाठकों तक इस ऐतिहासिक मंदिर की गाथा को पहुंचा रहा है. तरकुलहा माता के मंदिर को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने में शहीद बंधू सिंह जैसे क्रांतिकारी की अहम भूमिका है. जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय वर्तमान के तरकुलहा मंदिर परिक्षेत्र के घने जंगलों में देवी मां के पिंडी रूप में स्थापना करके पूजा अर्चना किया करते थे.

तरकुलहा  मंदिर
तरकुलहा मंदिर

यहीं से अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाते थे. मंदिर के पुजारी और क्रांतिकारी संदर्भ में वर्णित इस क्षेत्र के इतिहास के अनुसार जो भी अंग्रेज सिपाही इस क्षेत्र से गुजरते थे, बंधू सिंह उनका सिर कलम करके मां भगवती को भेंट कर देते थे. लगातार इस तरह की घटना से अंग्रेज काफी परेशान हो उठे थे. एक मुखबिर की सूचना पर बंधू सिंह को गिरफ्तार करने में वह कामयाब भी हो गए.

गिरफ्तारी और सजा के बाद बंधू सिंह को गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर बरगद के पेड़ पर खुले तौर पर अंग्रेजी हुकूमत में फांसी दी जा रही थी. मां भगवती के अनन्य भक्त की फांसी सात बार टल गई. फांसी का फंदा बार-बार टूट जा रहा था. अंत में खुद मां भगवती से बंधू सिंह ने आह्वान किया और अपने पास बुलाने को कहा. तब जाकर आठवीं बारे में बंधू सिंह को फांसी हो पाई.

उन्हें फांसी लगते ही तरकुलहा मंदिर क्षेत्र स्थित तरकुल का पेड़ टूट गया और रक्तस्राव होने लगा. रक्त स्थापित पिंडी पर गिरने लगा. धीरे-धीरे यह आस्था काफी मजबूत होती चली गई और यह स्थान दुर्गा स्वरूप तरकुलही माई के नाम से पूजा जाने लगा.

यह भी पढ़ें:चैत्र नवरात्र में इस तरह करें नौ गौरी की उपासना, इस मुहूर्त में करनी होगी कलश स्थापना

वर्तमान में इस स्थान को योगी सरकार ने शक्तिपीठ के रूप में मान्यता दे दी है. इसके विकास पर करोड़ों खर्च किया जा रहा है. बंधु सिंह का इतिहास इतना मजबूत था कि उन्हें सरकार ने भी सम्मान दिया और डाक टिकट जारी किया. आज मंदिर स्थान पर शहीद स्मारक, विश्रामालय, धर्मशाला, तालाब सभी का सुंदरीकरण तेजी से हो रहा है. यहां भक्तों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है.

यहां तक कि बिहार, नेपाल के अलावा पड़ोसी जिले से भी लोग यहां अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पहुंचते हैं. ईटीवी से बातचीत के दौरान एक श्रद्धालु भावुक होते हुए अपनी भावनाओं का जिक्र किया. उसने कहा कि जब भी संकट आया मां तरकुलही ने उसके सभी संकटों को हरने का कार्य किया है. इसलिए वह बार-बार मां के दरबार में माथा टेकने आते हैं. नवरात्र के 9 दिनों में यहां दर्शन पूजन किया जाएगा. यहां बलि प्रथा अब भी जीवंत है. हर नवरात्रि यहां बकरे की बलि दी जाती है.
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