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1996 में गोरखपुर में शुरू हुई थी शोभायात्रा, सीएम योगी करते हैं अगुवाई - गोरखपुर गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ

गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ 1996 से 2019 तक गोरखपुर में होली के दिन निकलने वाली भगवान नृसिंह शोभायात्रा में अनवरत शामिल होते आ रहे हैं. इस बार भी योगी इस शोभायात्रा में शामिल होंगे

शोभा यात्रा
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Published : Mar 29, 2021, 2:03 PM IST

गोरखपुर: रंगों के प्रतीक रूप में उमंग व उल्लास का पर्व होली, गोरक्षपीठ के लिए सामाजिक समरसता के अभियान का नाम है. इस पीठ की विशेषताओं में छुआछूत, जातीय भेदभाव और ऊंच नीच की खाई पाटने का जिक्र सतत होता रहा है. समाज में विभेद से परे लोक कल्याण ही नाथपंथ का मूल है. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ, ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ द्वारा विस्तारित इस अभियान की पताका वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फहरा रहे हैं. गोरक्षपीठ का रंगोत्सव सामाजिक संदेश के ध्येय से विशिष्ट है. सामाजिक समरसता का स्नेह बांटने के लिए ही गोरक्षपीठाधीश्वर दशकों से होलिकोत्सव और भगवान नृसिंह शोभायात्रा में शामिल होते आ रहे हैं. गोरक्षपीठाधीश्वर की अगुवाई में गोरखनाथ मंदिर में होलिकोत्सव की शुरुआत होलिकादहन और सम्मत की राख से तिलक लगाने के साथ होती है. इस परंपरा में एक विशेष संदेश निहित होता है. होलिकादहन हमें भक्त प्रह्लाद और भगवान श्रीविष्णु के अवतार भगवान नृसिंह के पौराणिक आख्यान से भक्ति की शक्ति का अहसास कराती है.

यह भी पढ़ें: नरसिंह भगवान की शोभायात्रा में नहीं शामिल हुए सीएम योगी

सीएम होंगे शामिल

होलिकादहन की राख से तिलक लगाने के पीछे की मान्यता है कि भक्ति की शक्ति को सामाजिकता से जोड़ना. इस परिप्रेक्ष्य में गोरक्षपीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कथन सतत प्रासंगिक है कि "भक्ति जब भी अपने विकास की उच्च अवस्था में होगी तो किसी भी प्रकार का भेदभाव, छुआछूत और अस्पृश्यता वहां छू भी नहीं पायेगी." भक्ति और सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए ही गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ 1996 से 2019 तक गोरखपुर में होली के दिन निकलने वाली भगवान नृसिंह शोभायात्रा में अनवरत शामिल होते रहे हैं. गत वर्ष कोविड के शुरुआती संक्रमणकाल में जनमानस की सुरक्षा के दृष्टिगत वह शामिल नहीं हुए. लेकिन इस बार जबकि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के युद्धस्तरीय प्रयासों से कोविड पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है तो सीएम योगी के शोभायात्रा में शामिल होने की उम्मीद बलवती है.

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सीएम की शोभा यात्रा
रंगोत्सव शोभायात्रा की नानाजी देशमुख ने की शुरूआत

गोरखपुर में भगवान नरसिंह रंगोत्सव शोभायात्रा की शुरुआत अपने गोरखपुर प्रवासकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख ने 1940 में की थी. गोरखनाथ मंदिर में होलिकादहन की राख से होली मनाने की परंपरा इसके काफी पहले से जारी थी. नानाजी का यह अभियान होली के अवसर पर फूहड़ता दूर करने के लिए था. इस शोभायात्रा का गोरक्षपीठ से भी गहरा नाता जुड़ गया है. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ भी इसमें शामिल होते और उनके बाद महंत अवेद्यनाथ की होली का यह अभिन्न अंग बना. 1996 से योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी अगुवाई में न केवल गोरखपुर बल्कि समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामाजिक समरसता का विशिष्ट पर्व बना दिया. अब इसकी ख्याति मथुरा-वृंदावन की होली सरीखी है. लोगों को इंतजार रहता है योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाले भगवान नरसिंह शोभायात्रा का. पांच किलोमीटर से अधिक दूरी तय करने वाली शोभायात्रा में पथ नियोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहते हैं. भगवान नरसिंह के रथ पर सवार होकर गोरक्षपीठाधीश्वर रंगों में सराबोर हो बिना भेदभाव सबसे शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं.

गोरखपुर: रंगों के प्रतीक रूप में उमंग व उल्लास का पर्व होली, गोरक्षपीठ के लिए सामाजिक समरसता के अभियान का नाम है. इस पीठ की विशेषताओं में छुआछूत, जातीय भेदभाव और ऊंच नीच की खाई पाटने का जिक्र सतत होता रहा है. समाज में विभेद से परे लोक कल्याण ही नाथपंथ का मूल है. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ, ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ द्वारा विस्तारित इस अभियान की पताका वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फहरा रहे हैं. गोरक्षपीठ का रंगोत्सव सामाजिक संदेश के ध्येय से विशिष्ट है. सामाजिक समरसता का स्नेह बांटने के लिए ही गोरक्षपीठाधीश्वर दशकों से होलिकोत्सव और भगवान नृसिंह शोभायात्रा में शामिल होते आ रहे हैं. गोरक्षपीठाधीश्वर की अगुवाई में गोरखनाथ मंदिर में होलिकोत्सव की शुरुआत होलिकादहन और सम्मत की राख से तिलक लगाने के साथ होती है. इस परंपरा में एक विशेष संदेश निहित होता है. होलिकादहन हमें भक्त प्रह्लाद और भगवान श्रीविष्णु के अवतार भगवान नृसिंह के पौराणिक आख्यान से भक्ति की शक्ति का अहसास कराती है.

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सीएम होंगे शामिल

होलिकादहन की राख से तिलक लगाने के पीछे की मान्यता है कि भक्ति की शक्ति को सामाजिकता से जोड़ना. इस परिप्रेक्ष्य में गोरक्षपीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कथन सतत प्रासंगिक है कि "भक्ति जब भी अपने विकास की उच्च अवस्था में होगी तो किसी भी प्रकार का भेदभाव, छुआछूत और अस्पृश्यता वहां छू भी नहीं पायेगी." भक्ति और सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए ही गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ 1996 से 2019 तक गोरखपुर में होली के दिन निकलने वाली भगवान नृसिंह शोभायात्रा में अनवरत शामिल होते रहे हैं. गत वर्ष कोविड के शुरुआती संक्रमणकाल में जनमानस की सुरक्षा के दृष्टिगत वह शामिल नहीं हुए. लेकिन इस बार जबकि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के युद्धस्तरीय प्रयासों से कोविड पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है तो सीएम योगी के शोभायात्रा में शामिल होने की उम्मीद बलवती है.

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सीएम की शोभा यात्रा
रंगोत्सव शोभायात्रा की नानाजी देशमुख ने की शुरूआत

गोरखपुर में भगवान नरसिंह रंगोत्सव शोभायात्रा की शुरुआत अपने गोरखपुर प्रवासकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख ने 1940 में की थी. गोरखनाथ मंदिर में होलिकादहन की राख से होली मनाने की परंपरा इसके काफी पहले से जारी थी. नानाजी का यह अभियान होली के अवसर पर फूहड़ता दूर करने के लिए था. इस शोभायात्रा का गोरक्षपीठ से भी गहरा नाता जुड़ गया है. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ भी इसमें शामिल होते और उनके बाद महंत अवेद्यनाथ की होली का यह अभिन्न अंग बना. 1996 से योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी अगुवाई में न केवल गोरखपुर बल्कि समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामाजिक समरसता का विशिष्ट पर्व बना दिया. अब इसकी ख्याति मथुरा-वृंदावन की होली सरीखी है. लोगों को इंतजार रहता है योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाले भगवान नरसिंह शोभायात्रा का. पांच किलोमीटर से अधिक दूरी तय करने वाली शोभायात्रा में पथ नियोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहते हैं. भगवान नरसिंह के रथ पर सवार होकर गोरक्षपीठाधीश्वर रंगों में सराबोर हो बिना भेदभाव सबसे शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं.

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