गोरखपुरः जनपद के भटहट ब्लाक अन्तर्गत ग्राम पंचायत फुलवरिया स्थित प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य मनोज कुमार सिंह ने बदहाल विद्यालय की सूरत बदल दी. सिर्फ पठन पाठन को बेहतर ही नहीं बनाया बल्कि विद्यालय की सूरत बदलने के लिए अपनी सैलरी से लाखों रुपया खर्च कर दिया. शिक्षा की इबारत लिखने वाले शिक्षक मनोज सिंह के जिज्ञासा को देख कर पड़ोसी गांव के शिक्षक भी उनको आर्थिक अनुदान देते है. उनके कार्यों को देख कर उनके विभाग ही नहीं क्षेत्र के लोग भी उनकी सराहना करते नहीं थकते है.
विद्यालय की हालत बद से बदतर थी
मनोज कुमार सिंह की तैनाती सितम्बर 2012 में बतौर प्रधानाध्यापक रुप में हुई है. श्री सिंह बताते है कि उस समय विद्यालय की हालत बद से बदतर थी. बच्चों के लिए बैठने की जगह नहीं थी. विद्यालय का मूल भवन अत्यंत जर्जर था. प्रांगण और बाऊंड्री वाल नहीं था. परिसर में गड्ढा था. शौचालय इस्तेमाल के काबिल नहीं था, बच्चों की संख्या चिंताजनक थी. सीमित संसाधन से बच्चों का भविष्य सवांरने के लिए ठान लिया. सबसे पहले उन्होंने अपने विभाग से विद्यालय की मरम्मत और एक कक्षीय कमरा निर्माण कराने की गुहार लगाई, लेकिन विभाग ने हाथ खड़ा कर लिया. जनप्रतिनिधियों से सहयोग मांगा तो उन्हे सिर्फ अश्वासन मिला. श्री सिंह जब हर तरफ से मायूस हो गए तो उन्होंने खुद के बलबूते पर विद्यालय की दयनीय दशा को सुधारने का फैसला किया. तब उनके सहयोगी शिक्षकों का सहयोग मिला. आज उस विद्यालय की सूरत बदल गई. कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर बच्चों को बैठने के लिए डेस्क ब्रेंच उपलब्ध है. खेलने के लिए मैदान सुरक्षा के दृष्टि से बाऊंड्री वाल आदि का सुविधा उपलब्ध है. बच्चों की संख्या में भी काफी हद तक इजाफा हुआ है.
खुद के बलबूते लाखों खर्च कर बदली बदहाल विद्यालय की सूरत
प्रधानाध्यापक मनोज सिंह बताते है कि विद्यालय का मूल भवन जर्जर था उसको पूरी तरह ध्वस्त करा दिया उसके पूराने ईंट से खडंजा लगवाया मिट्टी को प्रांगण में डलवाया. विद्यालय का बाऊंड्री वाल और गेट अपना निजी धन खर्च कर निर्माण कराया. प्रांगण में पवने दो- दो सौ ट्राली मिट्टी डाल कर उसको लेबल कराया तब खेलने योग्य मैदान बना. जो शौचालय उस समय निर्मित थे वह इस्तेमाल के काबिल नहीं थे उस पर रकम खर्च कर नये सिरे से महिला पूरूष शौचालय का निर्माण कराया. मध्यावाहन भोजन पकाने के लिए रसोई घर का मरम्मत कराया.
सुधरने लगी विद्यालय की दशा, बढ़ने लगी बच्चों की संख्या
श्री सिहं के परिश्रम से धीरे धीरे विद्यालय की दशा सुधरने लगी. पठन पाठन सुचार रुप से चलने लगा तब बच्चों की संख्या में बेतहाशा इजाफा होने लगा. श्री सिंह बताते है कि 2012 में उस विद्यालय पर मात्र 67 बच्चों का नामांकित था. लेकिन आज वहां पर 240 बच्चों का नामांकन है जिसमें 70-75% बच्चों की उपस्थिति दर्ज होती है. बच्चों की संख्या बढ़ने पर संसाधन की किल्लत होने लगी. बैठने लिए कमरे कम पड़ने लगे. एक ही हैण्डपम्प था उस पर भीड़ लग जाती थी. बच्चों की परेशानी को देखते हुए खुद के जेब सुविधाओं का विस्तार किया.
शिक्षक ने लाखों खर्च कर एक कक्षीय कमरा बनवाया
बच्चों की संख्या में इस कदर इजाफा हुआ कि उनके बैठने के लिए जगह कम पड़ने लगी. श्री सिंह ने 1 लाख 38 हजार रुपया खर्च कर हाल ही में एक कमरे का निर्माण और 27 हजार रुपये की खर्च से चबूतरा, परिसर में 156 ट्राली मिट्टी डलवाया, रंगरोगन के साथ साथ परिसर में पेड़ पौधे फूलपत्ती की रोपाई करा दी. आज विद्यालय सिर्फ पढ़ने के लायक ही नहीं बल्कि देखने के काबिल भी बन चूका है.
एक कक्षीय भवन निर्माण कराने में इनका रहा योगदान
श्री सिंह ने बताया कि जब एक कमरे का निर्माण कराने लगा तो मेरी सहायक अध्यापिका मनोरमा राय, रीता देबी, कुमारी किरन ने 5100-5100 रुपया का अनुदान दिया. इसके अलावा सहायक अध्यापिका यासमीन ने 3 हजार और पढोसी गांव के विद्यालय के शिक्षक डा आनन्द मोहन ने 5100 रुपया का अनुदान दे कर मेरा सहयोग किया और बच्चों के बेहर भविष्य निर्माण में योगदान किया.
2012 से ही बच्चों को मिलने लग अगं वस्त्र
श्री सिंह बताते है कि प्रदेश में योगी अदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद परिषदीय विद्यालयों में 2016 से अंग वस्त्र मिलने लगा. इसके बहुत पहले ही हम अपने और सहयोगियों के सहयोग से हर वर्ष बच्चों को एक सफेद पैन्ट-सर्ट और जाड़े के मौसम स्वेटर वितरित करते रहे हैं.
इस विद्यालय में पढे़ छात्र का नवोदय में हुआ चयन
सीमित संसाधनों में ज्ञान की इबारत गढ़ने वाले शिक्षकों के प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि मार्च 2018 को कक्षा पांच पास करने वाले छात्र सुमित कुमार पुत्र रामजीराव निवासी फुलवरिया का चयन नवोदय विद्यालय पीपीगंज में हुआ है. उस विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे अपने गुरुजनों पर नाज करते है. बच्चों के प्रति उनका लगाव निष्ठाभाव से पठन पाठन में रुचि रखते हैं.