गोरखपुर: कोरोना की महामारी (Corona Epidemic) के दौरान स्कूली बच्चों पर ऑनलाइन पढ़ाई (Online Study) का बोझ बढ़ता जा रहा है. इस पढ़ाई की वजह से अगर आपका बच्चा बात-बात पर गुस्सा कर रहा है या उसमें निर्णय (Decision) लेने की क्षमता कम दिखाई दे रही है, लगातार पढ़ने के बाद भी उसकी याददाश्त (Memory) कमजोर हो रही है तो एक अभिभावक के रूप में इस समस्या को लेकर आप सावधान हो जाएं. बच्चे में इस प्रकार का लक्षण इस बात का संकेत देता है कि बच्चा एंग्जाइटी रोग (Anxiety Disease) का शिकार हो गया है. ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि गोरखपुर के मंडलीय साइकोलॉजी सेंटर ने बच्चों में आ रही इस समस्या के आधार पर 9वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले 400 से ज्यादा बच्चों पर एक शोध और काउंसलिंग का कार्य किया है, जिसमें यह नतीजा देखने को मिला है कि तमाम बच्चे पढ़ाई को लेकर गुस्सा और तनाव के साथ कमजोरी के भी शिकार हो रहे हैं.
मोबाइल का न करें ज्यादा प्रयोग
मंडलीय साइकोलॉजी सेंटर की एक्सपर्ट डॉ. हिमांशु पांडेय की मानें तो मोबाइल की दीवानगी से बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं. पढ़ाई के लिए मोबाइल से जुड़ा रहना बच्चों के सामने मजबूरी बनी हुई है. स्कूल-कॉलेज बंद थे. ऐसी स्थिति में घरों में पढ़ाई करने वाले बच्चे इस शोध अभियान का हिस्सा बनें, जहां से यह रिजल्ट निकलकर सामने आया है. काउंसलिंग में जो बात चौंकाने वाली सामने आई है, उसमें यह है कि जो बच्चे 3 घंटे से अधिक मोबाइल यूज कर रहे थे उनमें यह समस्या ज्यादा देखने को मिली है. जो कम समय मोबाइल पर व्यतीत किए हैं, उनमें यह समस्या बहुत कम मिली है. कई तो काफी शार्प माइंड के भी दिखाई दिए.
यह है एंग्जाइटी के लक्षण (Symptoms of Anxiety)
ईटीवी भारत ने इस बीमारी के लक्षण से ग्रसित दो-तीन परिवारों के बच्चों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि पढ़ाई के बाद बच्चों की आंखों में जलन, सिर दर्द, भारीपन और चक्कर आने जैसी स्थिति होती है. एक बच्चा तो पिछले साल ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी के दौरान ऐसा बीमार पड़ा था कि उसका हाथ पैर पूरी तरह से कांप रहा था. डॉक्टरों ने उसे ताकत का इंजेक्शन दिया तो उसके अंदर सुधार हुआ, लेकिन इसकी वजह से वह काफी कमजोर हो गया था. यह बीमारी आंखों की भी समस्या (Eye Problems) बढ़ा रही है जिससे बच्चों को चश्मे लग रहे हैं.
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छात्र अनुपम पिछले वर्ष दसवीं प्री बोर्ड परीक्षा की तैयारी के दौरान बीमार पड़ गया. हर्ष उपाध्याय की आंख पिछले तीन महीने में ही इतनी कमजोर पड़ी कि उसे अब मोटे ग्लॉस का चश्मा लग गया है. श्रेया तो सातवीं में पढ़ती हैं लेकिन स्कूल में नंबर वन बने रहने के लिए उसकी पढ़ाई उसे कई तरह से परेशान कर रही है.
एक्सपर्ट ने दिया यह सुझाव
एक्सपर्ट डॉ. हिमांशु पाण्डेय का मानना है कि अगर मोबाइल से पढ़ने की यही लत बनी रही तो आने वाले 5 वर्षों में ऐसे बच्चे मानसिक रोग के शिकार हो सकते हैं. उनके लिए यह कमजोरी 30-35 वर्ष की उम्र में भी एक गंभीर समस्या का कारण बन सकती है. उन्होंने बताया कि शोध के लिए साइकोलॉजी सेंटर में जिस प्रक्रिया को अपनाया गया, उसमें बच्चों से तीन तरह के सवाल पूछे गए थे. इसमें एंग्जाइटी से जुड़ा सवाल था. एकेडमिक परफारमेंस और सोशल मीडिया पर टाइम स्पेंड करने से जुड़ा सवाल था. छात्रों के बीच साइड प्रैक्टिकल इवोल्यूशन (Side Practical Evolution) कराया गया, जिसका परिणाम यह निकला कि जो बच्चे 3 घंटे से ज्यादा मोबाइल यूज करते हैं, उनकी एकेडमिक परफॉर्मेंस में तेजी से गिरावट दर्ज हुई. गुस्सा की प्रवृत्ति बढ़ी और डिसीजन मेकिंग में कमी आई है.
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यह रिसर्च बताता है कि बड़े होकर ये बच्चे अपनी सोच को विकसित करने में असमर्थ होंगे. अगर यही हाल रहा तो आने वाले 5 साल में हर बच्चा मेंटल प्रॉब्लम का सामना करेगा, जबकि कोरोना की वजह से बच्चों की मेंटल हेल्थ पहले ही डाउन हो चुका है. मनोविज्ञान केंद्र का मानना है कि स्कूल शुरू हो तो स्कूलों में जाकर बच्चों का परीक्षण करना बेहद जरूरी होगा.
'हर पीरियड के बीच 15 मिनट का ब्रेक जरूरी'
मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय (Madan Mohan Malaviya Technical University) में मानविकी एवं प्रबंध विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिजीत मिश्रा (Assistant Professor Dr Abhijit Mishra) ने कहा है कि यह समस्या बड़ी है, जिसका निदान बच्चों को उनका सोशल एनवायरमेंट और खेल-कूद के साथ योग-प्राणायाम का अभ्यास कराना है. साथ ही ऑनलाइन पढ़ाई के क्रम को तोड़ते हुए हर पीरियड में कम से कम 15 मिनट का ब्रेक देना होगा. पढ़ाई को मनोरंजक बनाना होगा. नहीं तो यह मीठे जहर की तरह बच्चों के लिए नुकसानदायक बनती जाएगी.