गोरखपुर: शहर की पहचान बन चुके 'रामगढ़ ताल' की कहानी अद्भुत और ऐतिहासिक है. बौद्धकाल में इस तालाब के बनने के पीछे एक राजा के अहंकार और उसके चलते आई त्रासदी की कहानी छिपी है. गोरखपुर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अकुलहीं गांव में रामगढ़ ताल के बनने के राज आज भी छिपे हुए हैं. इसी गांव में एक प्राचीन मंदिर भी है. रामगढ़ का राज्य ध्वस्त होने और रामगढ़ ताल बनने की कहानी इस मंदिर से भी जुड़ी है.
रामग्राम था पहला नाम
इतिहासकारों और साक्ष्यों के अनुसार गोरखपुर का प्राचीन नाम रामग्राम था. इसके नाम पर ही इस ताल का नाम रामगढ़ ताल पड़ा. गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर राजवंत राव ने बताया कि गढ़ का तात्पर्य किसी किले और राज्य से ही होता है. यह बताता है कि रामगढ़ ताल किसी गणराज्य या राज्य व्यवस्था का हिस्सा रहा है.
विदेशियों ने लिखी है कहानी
डॉक्टर राजवंत राव ने बताया कि जनश्रुति और बौद्ध ग्रंथों से पता चलता है कि छठी शताब्दी में रामग्राम नाम से नागवंशी कोली गणराज्य की यह राजधानी रहा है. इस वंश से ही भगवान बुद्ध की माता महामाया, मौसी और उनकी पत्नी यशोधरा संबंध रखती थीं. इसलिए प्राचीन काल में गोरखपुर का नाम रामग्राम था. उन्होंने कहा कि यहां कोलिय गणराज्य था. ऐसा इतिहासकारों की पुस्तकों से पता चलता है. वर्तमान की रोहित नदी उन दिनों रामगढ़ ताल से होकर गुजरती थी. ऐसा फाह्यान और ह्वेनसांग जैसे विदेशी यात्रियों ने अपने यात्रा वृतांत में लिखा है.
'लोकतंत्र की प्रयोगशाला रहा है लोकतंत्र'
डॉ. राव कहते हैं कि इतिहास इस बात की पुष्टी करता है कि पूर्वांचल लोकतंत्र की एक तरह से प्रयोगशाला रहा है. वह कहते हैं कि इतिहासकार विद्वान डॉ. राजबली पाण्डेय ने भी रामग्राम का संबंध रामगढ़ ताल के साथ जोड़ा है. उन्होंने कहा कि एक पक्ष यह भी है कि शाक्यों और रामग्राम के कोलियों के बीच रोहिनी नदी के जल के बंटवारे को लेकर कई बार विवाद हुआ था. इसको शांत कराने का प्रयास भगवान बुद्ध ने किया था. रामगढ़ ताल करीब 1800 एकड़ में फैला हुआ है. इसका परिमाप भी लगभग 18 किलोमीटर का है.
डॉ. राव ने कहा कि फाह्यान ने लिखा है कि रामग्राम गंगा की बाढ़ में बह गया. रामग्राम के होने की बात जिस स्थान पर कही जाती है, वहां पर गोरखपुर क्षेत्र में अभी भी गांव जैसा माहौल ही देखने को मिलता है. यह निषाद जाति के लोगों का घनी बस्तियों में बसा हुआ गांव है. इनका पेशा मछली पकड़ना है. अब यह गोरखपुर के नगरीय क्षेत्र का हिस्सा बन चुका है. इस गांव में रहने वाले बूढ़े-बुजुर्ग रामगढ़ ताल के बनने के पीछे की जो कहानी बताते हैं, वह उन लोगों ने अपने पूर्वजों से सुनी है. वह कहते हैं कि जिस स्थान पर रामगढ़ ताल बना है, वह गांव की घनी आबादी का हिस्सा था. यह एक राजा के अहंकार के चलते धंसना शुरू हो गया था. इस गढ़ से बचकर केवल बिल्ली ही भाग पाई थी. बाकी जो लोग भी थे, उस ताल में ही समा गए थे.
ताल के बीच में हैं बड़े-बड़े कुएं
आज भी यहां पर उस ताल के बीच में बड़े-बड़े कुएं हैं. आज का रामगढ़ ताल गोरखपुर की खास पहचान बन चुका है. पर्यटन के नक्शे पर यह देश-प्रदेश में पूरी तरह स्थापित हो चुका है. यहां योगी सरकार वॉटर स्पोर्ट्स से लेकर लेजर लाइट शो और बोटिंग भी शुरू करा चुकी है. जिसका आनंद लेने लोग आते हैं.