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दिव्यांग महिलाओं को समृद्ध बना रहीं प्रियंका, महिला दिवस पर राजभवन से आया बुलावा

यूपी के गोरखपुर में दिव्यांग युवती प्रियंका दिव्यांगता के अभिशाप से खुद को मुक्त करते हुए अपने हौसले और मेहनत से आज इस मुकाम को हासिल कर चुकी है जिसके बल पर उनकी पहचान जिले से लेकर राजभवन लखनऊ तक हो गई है. महिला दिवस के अवसर पर राजभवन लखनऊ में आयोजित होने वाले महिलाओं के कार्यक्रम में उनको बुलावा आया है.

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Published : Mar 6, 2021, 11:08 PM IST

दिव्यांग महिलाओं को समृद्ध बना रहीं प्रियंका
दिव्यांग महिलाओं को समृद्ध बना रहीं प्रियंका

गोरखपुर: ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि कोई अपनी किस्मत संवारने के साथ दूसरों की भी किस्मत संवारने में भी पूरे मन से जुटा हो. गोरखपुर में एक ऐसी दिव्यांग युवती है जो कई दिव्यांग बेटियों/महिलाओं के हौसले को बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध कर रही हैं. वह दिव्यांगता के अभिशाप से खुद को मुक्त करते हुए अपने हौसले और मेहनत से आज इस मुकाम को हासिल कर चुकी है जिसके बल पर उनकी पहचान जिले से लेकर राजभवन लखनऊ तक हो गई है. प्रियंका नाम की यह युवती बेहद ही गरीब परिवार से है और करीब अस्सी प्रतिशत दिव्यांग भी है. यह उसके हौसले की ही बात है कि वह ग्रेजुएट है. प्रियंका ने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए कॉल सेंटर में भी कार्य किया लेकिन, आज वह अपने स्टार्टअप में दिव्यांग महिलाओं का समूह बनाकर इतना आगे निकल चुकी है कि वह आस-पास के गांवों की बेटियों और महिलाओं की आर्थिक समृद्धि का सहारा बन रही है.

दिव्यांग महिलाओं को समृद्ध बना रहीं प्रियंका

दिव्यांग महिलाओं का समूह है प्रियंका का 'स्वाभिमान'
प्रियंका ने अपना स्टार्टअप शुरू करने के लिए सेंट जोसेफ जैसी संस्था के द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों से प्रेरणा ली. उनके मार्गदर्शन में हुनरमंद बनी और फिर 'स्वाभिमान' नाम से स्वयं सहायता समूह बनाकर अपने साथ कई दिव्यांग महिलाओं को जोड़कर काम में जुट गईं. वह जूट का बैग बनाने से लेकर कोरोना की महामारी में मास्क और महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन भी बनाकर बाजार में अपनी पकड़ बना चुकी हैं. प्रियंका के समूह से निर्मित होने वाले उत्पादों की बाजार में डिमांड बनी रहती है. वह गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण करती हैं. अस्पताल हो या बाजार उनके बनाए सेनेटरी नैपकिन की मांग सभी जगह रहती है. उनके समूह द्वारा जूट के बनाए गए बैग ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध हैं. वह कहती हैं कि दिव्यांगता की वजह से सामने बहुत सी समस्याएं थीं लेकिन, पढ़ने-लिखने की इच्छा ने आज उसे इस मुकाम तक पहुंचाया है. इसमें उसके शिक्षक और पीजीएसएस जैसी सामाजिक सेवा से जुड़ी संस्था से बेहद मदद मिली. प्रियंका 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजभवन लखनऊ में आयोजित होने वाले महिलाओं के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जा रही हैं. जिला स्तर से बेहतरीन परफारमेंस देने वाले स्वयं सहायता समूह के रूप में उसके समूह का चयन हुआ है. उसे कमिश्नर गोरखपुर मंडल समेत कई लोगों ने सम्मानित किया है.

प्रियंका के समूह से जुड़कर 60 महिलाएं हुईं आर्थिक रूप से समृद्ध
26 वर्षीय प्रियंका चौरी चौरा तहसील के टेलनापार गांव की रहने वाली हैं. उसके पिता चौकीदारी करके परिवार का भरण पोषण करते थे लेकिन, अब उनकी नौकरी जा चुकी है. उसके इस कार्य से करीब 60 महिलाएं अब तक जुड़ चुकी हैं. उनके समूह से तैयार सेनेटरी पैड को यह महिलाएं गांव-गांव में वितरित करती हैं. इससे मिलने वाले कमीशन से वह अपने आपको आर्थिक मजबूती देती हैं. उनके समूह के द्वारा तैयार किए गए जूट के टिफिन, वाटर बैग काफी फिनिशिंग लिए हुए होते हैं. इसके लिए प्रियंका और उसकी सहयोगी ने जूट बोर्ड इंडिया से प्रशिक्षण लिया था. फिनिशिंग के कारण यह बैग ब्रांडेड से बेहतर दिखते हैं.

प्रियंका के शिक्षक विनोद यादव कहते हैं कि पढ़ाई में शुरू से ही तीव्र रही प्रियंका को उसके पिता कंधे पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे. 12वीं से लेकर ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई के लिए वह लोग मिलकर उसे यहां तक पहुंचाए. प्रियंका के मुकाम को देखकर पूरा गांव और महिला समाज बेहद ही प्रसन्न रहता है.

गोरखपुर: ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि कोई अपनी किस्मत संवारने के साथ दूसरों की भी किस्मत संवारने में भी पूरे मन से जुटा हो. गोरखपुर में एक ऐसी दिव्यांग युवती है जो कई दिव्यांग बेटियों/महिलाओं के हौसले को बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध कर रही हैं. वह दिव्यांगता के अभिशाप से खुद को मुक्त करते हुए अपने हौसले और मेहनत से आज इस मुकाम को हासिल कर चुकी है जिसके बल पर उनकी पहचान जिले से लेकर राजभवन लखनऊ तक हो गई है. प्रियंका नाम की यह युवती बेहद ही गरीब परिवार से है और करीब अस्सी प्रतिशत दिव्यांग भी है. यह उसके हौसले की ही बात है कि वह ग्रेजुएट है. प्रियंका ने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए कॉल सेंटर में भी कार्य किया लेकिन, आज वह अपने स्टार्टअप में दिव्यांग महिलाओं का समूह बनाकर इतना आगे निकल चुकी है कि वह आस-पास के गांवों की बेटियों और महिलाओं की आर्थिक समृद्धि का सहारा बन रही है.

दिव्यांग महिलाओं को समृद्ध बना रहीं प्रियंका

दिव्यांग महिलाओं का समूह है प्रियंका का 'स्वाभिमान'
प्रियंका ने अपना स्टार्टअप शुरू करने के लिए सेंट जोसेफ जैसी संस्था के द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों से प्रेरणा ली. उनके मार्गदर्शन में हुनरमंद बनी और फिर 'स्वाभिमान' नाम से स्वयं सहायता समूह बनाकर अपने साथ कई दिव्यांग महिलाओं को जोड़कर काम में जुट गईं. वह जूट का बैग बनाने से लेकर कोरोना की महामारी में मास्क और महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन भी बनाकर बाजार में अपनी पकड़ बना चुकी हैं. प्रियंका के समूह से निर्मित होने वाले उत्पादों की बाजार में डिमांड बनी रहती है. वह गुणवत्तापूर्ण सामग्री का निर्माण करती हैं. अस्पताल हो या बाजार उनके बनाए सेनेटरी नैपकिन की मांग सभी जगह रहती है. उनके समूह द्वारा जूट के बनाए गए बैग ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध हैं. वह कहती हैं कि दिव्यांगता की वजह से सामने बहुत सी समस्याएं थीं लेकिन, पढ़ने-लिखने की इच्छा ने आज उसे इस मुकाम तक पहुंचाया है. इसमें उसके शिक्षक और पीजीएसएस जैसी सामाजिक सेवा से जुड़ी संस्था से बेहद मदद मिली. प्रियंका 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राजभवन लखनऊ में आयोजित होने वाले महिलाओं के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जा रही हैं. जिला स्तर से बेहतरीन परफारमेंस देने वाले स्वयं सहायता समूह के रूप में उसके समूह का चयन हुआ है. उसे कमिश्नर गोरखपुर मंडल समेत कई लोगों ने सम्मानित किया है.

प्रियंका के समूह से जुड़कर 60 महिलाएं हुईं आर्थिक रूप से समृद्ध
26 वर्षीय प्रियंका चौरी चौरा तहसील के टेलनापार गांव की रहने वाली हैं. उसके पिता चौकीदारी करके परिवार का भरण पोषण करते थे लेकिन, अब उनकी नौकरी जा चुकी है. उसके इस कार्य से करीब 60 महिलाएं अब तक जुड़ चुकी हैं. उनके समूह से तैयार सेनेटरी पैड को यह महिलाएं गांव-गांव में वितरित करती हैं. इससे मिलने वाले कमीशन से वह अपने आपको आर्थिक मजबूती देती हैं. उनके समूह के द्वारा तैयार किए गए जूट के टिफिन, वाटर बैग काफी फिनिशिंग लिए हुए होते हैं. इसके लिए प्रियंका और उसकी सहयोगी ने जूट बोर्ड इंडिया से प्रशिक्षण लिया था. फिनिशिंग के कारण यह बैग ब्रांडेड से बेहतर दिखते हैं.

प्रियंका के शिक्षक विनोद यादव कहते हैं कि पढ़ाई में शुरू से ही तीव्र रही प्रियंका को उसके पिता कंधे पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे. 12वीं से लेकर ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई के लिए वह लोग मिलकर उसे यहां तक पहुंचाए. प्रियंका के मुकाम को देखकर पूरा गांव और महिला समाज बेहद ही प्रसन्न रहता है.

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