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आलू पैदा करने में गोरखपुर जेल को मिला पुरस्कार, जानिए खासियत

गोरखपुर जेल में कैदियों की मेहनत से उगाए गए आलू को राजभवन प्रदर्शनी में पुरस्कार मिला. मंडलीय कारागार का आलू आम आलू से अधिक वजन का है. प्रदर्शनी में इसकी तारीफ हुई और मंडलीय कारागार की झोली में प्रथम पुरस्कार भी आया.

गोरखपुर जेल में कैदियों ने तैयार किया आलू.
गोरखपुर जेल में कैदियों ने तैयार किया आलू.
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Published : Feb 16, 2021, 3:06 PM IST

गोरखपुर: जेल के फार्म हाउस में कैदियों की मेहनत से उगाए गए आलू को राजभवन में आयोजित फल, साग-भाजी प्रदर्शनी में पहला स्थान मिला है. यह पुरस्कार आलू के साइज को लेकर दिया गया है. सरकार की ओर से इस बेहतरीन कार्य के लिए जेल प्रशासन और कैदियों की सराहना की गई है. उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर पुरस्कृत भी किया गया है. इस उपलब्धि पर वरिष्ठ जेल अधीक्षक डॉ. रामधनी ने बंदियों की सराहना की है. जेलर प्रेम सागर शुक्ला ने यह पुरस्कार बतौर प्रभारी जेल अधीक्षक प्राप्त किया है. जानकारी के मुताबिक, मंडली कारागार के 13 एकड़ के फार्म हाउस में बंदी तरह-तरह की सब्जियां उगा रहे हैं.

गोरखपुर जेल में तैयार आलू को पुरस्कार.
जेलर प्रेम सागर शुक्ला ने प्राप्त किया पुरस्कार.
दूसरी जेलों को भी सप्लाई करता है आलू
गोरखपुर जेल से दूसरी जेलों को भी सब्जी की आपूर्ति की जा रही है. इसमें सर्वाधिक खेती आलू की हुई है. यही नहीं आलू की खेती के लिए जेल प्रशासन को शासन से प्रति एकड़ 2,350 रुपये की आर्थिक मदद भी मिल रही है. हालांकि, वर्तमान में लागत 5725 रुपये प्रति एकड़ आ रही है. बात करें पिछले सीजन की तो यहां से 549 क्विंटल आलू की पैदावार हुई थी. प्रभारी जेल अधीक्षक प्रेम सागर शुक्ला ने बताया कि जेल अपनी खपत के लिए आलू नहीं खरीदता, बल्कि पिछले वर्ष देवरिया जेल को 50 क्विंटल आलू की आपूर्ति भी की थी. उन्होंने कहा कि कैदियों और बंदियों को स्वास्थ्यवर्धक और सुपाच्य भोजन उपलब्ध कराने के लिए जेल परिसर में ही सब्जियों की बुआई कराई जाती है. यही वजह है कि पूरे साल बाजार से जेल प्रशासन को सब्जी खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. आने वाले समय में उत्पादन और बढ़ सके, इसके लिए ट्रैक्टर, कृषि संबंधी आधुनिक मशीनों की मांग शासन से की गई है.
इन सब्जियों को उगा रहा जेल प्रशासन
जेल के अंदर जिन सब्जियों की खेती पर जोर दिया गया है, उसमें बैगन, गोभी, टमाटर, ढोकली, मूली, पालक, नेनुवा, भिंडी, सरसों का साग, चौराई और प्याज शामिल है. जेल प्रशासन का कहना है कि खाली पड़ी जमीनों पर सीजनल फसल उगाने से ज्यादा लाभ सब्जियों को उगाने में दिखा है. इसकी खपत भी ज्यादा है और इस पर महंगाई का बोझ भी ज्यादा आता है. चावल-गेहूं एक निर्धारित मात्रा में पैदा तो होता है, लेकिन सब्जियों की जरूरत सबसे ज्यादा और प्रतिदिन होती है. इसलिए इस अभियान को आगे बढ़ाया जाएगा.

गोरखपुर: जेल के फार्म हाउस में कैदियों की मेहनत से उगाए गए आलू को राजभवन में आयोजित फल, साग-भाजी प्रदर्शनी में पहला स्थान मिला है. यह पुरस्कार आलू के साइज को लेकर दिया गया है. सरकार की ओर से इस बेहतरीन कार्य के लिए जेल प्रशासन और कैदियों की सराहना की गई है. उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर पुरस्कृत भी किया गया है. इस उपलब्धि पर वरिष्ठ जेल अधीक्षक डॉ. रामधनी ने बंदियों की सराहना की है. जेलर प्रेम सागर शुक्ला ने यह पुरस्कार बतौर प्रभारी जेल अधीक्षक प्राप्त किया है. जानकारी के मुताबिक, मंडली कारागार के 13 एकड़ के फार्म हाउस में बंदी तरह-तरह की सब्जियां उगा रहे हैं.

गोरखपुर जेल में तैयार आलू को पुरस्कार.
जेलर प्रेम सागर शुक्ला ने प्राप्त किया पुरस्कार.
दूसरी जेलों को भी सप्लाई करता है आलू
गोरखपुर जेल से दूसरी जेलों को भी सब्जी की आपूर्ति की जा रही है. इसमें सर्वाधिक खेती आलू की हुई है. यही नहीं आलू की खेती के लिए जेल प्रशासन को शासन से प्रति एकड़ 2,350 रुपये की आर्थिक मदद भी मिल रही है. हालांकि, वर्तमान में लागत 5725 रुपये प्रति एकड़ आ रही है. बात करें पिछले सीजन की तो यहां से 549 क्विंटल आलू की पैदावार हुई थी. प्रभारी जेल अधीक्षक प्रेम सागर शुक्ला ने बताया कि जेल अपनी खपत के लिए आलू नहीं खरीदता, बल्कि पिछले वर्ष देवरिया जेल को 50 क्विंटल आलू की आपूर्ति भी की थी. उन्होंने कहा कि कैदियों और बंदियों को स्वास्थ्यवर्धक और सुपाच्य भोजन उपलब्ध कराने के लिए जेल परिसर में ही सब्जियों की बुआई कराई जाती है. यही वजह है कि पूरे साल बाजार से जेल प्रशासन को सब्जी खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. आने वाले समय में उत्पादन और बढ़ सके, इसके लिए ट्रैक्टर, कृषि संबंधी आधुनिक मशीनों की मांग शासन से की गई है.
इन सब्जियों को उगा रहा जेल प्रशासन
जेल के अंदर जिन सब्जियों की खेती पर जोर दिया गया है, उसमें बैगन, गोभी, टमाटर, ढोकली, मूली, पालक, नेनुवा, भिंडी, सरसों का साग, चौराई और प्याज शामिल है. जेल प्रशासन का कहना है कि खाली पड़ी जमीनों पर सीजनल फसल उगाने से ज्यादा लाभ सब्जियों को उगाने में दिखा है. इसकी खपत भी ज्यादा है और इस पर महंगाई का बोझ भी ज्यादा आता है. चावल-गेहूं एक निर्धारित मात्रा में पैदा तो होता है, लेकिन सब्जियों की जरूरत सबसे ज्यादा और प्रतिदिन होती है. इसलिए इस अभियान को आगे बढ़ाया जाएगा.
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