गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शहर होने और उनके गोरखपुर सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की वजह से यहां की सभी 9 सीटें भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई हैं. इन्हीं सीटों में से एक पिपराइच विधानसभा सीट है, जहां भाजपा को 1991 के बाद 2017 में जीत मिली थी. यानी यहां भाजपा को 25 सालों के बाद जीत नसीब हुई थी. 2017 में पार्टी ने महेंद्र पाल सिंह को यहां से चुनाव मैदान में उतारा था और वह भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब हुए थे. एक बार फिर भाजपा ने उनपर भरोसा जताते हुए उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में वो भी लगातार अपने क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों और योगी-मोदी सरकार की सुरक्षा, सुशासन की नीतियों को लेकर जनता से वोट मांग रहे हैं. उन्होंने साफ कहा कि विरोधियों से उनकी कोई न तो लड़ाई है और न ही मुकाबला. योगी सरकार के 5 वर्ष में क्षेत्र में जो विकास हुआ है, वह जनता देख रही है. जिसके बल पर जातिवादी राजनीति करने वाले विपक्षी दलों के नेताओं को वह सिरे से खारिज करेगी. जनता उन्हें अपना विधायक चुनेगी और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार फिर बनेगी.
भाजपा प्रत्याशी महेंद्र पाल सिंह अपने क्षेत्र भ्रमण के दौरान ईटीवी भारत से खास बातचीत करते उन्होंने कहा कि क्षेत्र में 385 किलोमीटर की पक्की सड़कों के अलावा 240 किलोमीटर की अन्य सड़कें भी बनाई गई हैं. किसी भी सड़क में विपक्षी नेता गड्ढा नहीं दिखा सकते. नदी पर पीपे के पुल का निर्माण हुआ है. सबसे बड़ी बात गोरखपुर खाद कारखाना, वर्षों से बंद पड़ी पिपराइच की चीनी मिल, गुरु गोरक्षनाथ विश्वविद्यालय, आयुष विश्वविद्यालय और आईटीआई स्कूल जैसे बड़े प्रोजेक्ट उनके क्षेत्र में विकसित हुए हैं.
योगी आदित्यनाथ की उनके क्षेत्र पर विशेष कृपा रही है. जिससे विकास की जिस किरण से पिपराइच महरूम रहा है, वह अब विकसित पिपराइच के रूप में दिखाई दे रहा है. उन्होंने कहा कि आज जो भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं या जो पहले यहां से चुने गए उन्होंने क्षेत्र की जनता का सुख-दर्द जानने की कोशिश नहीं किए. चुनाव जीतने के बाद वह लोग गायब रहे. जबकि महेंद्र पाल लगातार 5 वर्षों से लोगों के बीच में रहे. कोरोना काल में भी घर-घर तक गए। यह जनता देख चुकी है और विरोधी भी देखकर परेशान हैं. उनके मुकाबले यहां कोई नहीं है.
पिपराइच विधानसभा सीट पर 1991 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से लल्लन प्रसाद त्रिपाठी चुनाव जीते थे. इसके बाद इस सीट पर भाजपा का खाता 2017 में खुला. इन 25 वर्षों में यहां से सपा, बसपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी जीतते रहे. 1993 में कांग्रेस के जितेंद्र कुमार जायसवाल यहां से चुनाव जीते ते. 1996 और 2002 में भी क्षेत्र की जनता ने उन पर भरोसा जताया. लेकिन 2007 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के जमुना निषाद यहां से चुनाव जीते और मायावती सरकार में मंत्री बने थे.
हालांकि, उनकी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिसके बाद उनकी पत्नी राजमती निषाद उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत विधानसभा पहुंची. 2012 का चुनाव भी सपा के टिकट पर राजमती जीतने में कामयाब हुईं. लेकिन 2017 के चुनाव में राजमती के पुत्र अमरेंद्र निषाद, महेंद्र पाल के सामने सपा के उम्मीदवार थे, जिन्हें महेंद्र पाल ने तीसरे नंबर पर ढकेल दिया था. लेकिन इस बार फिर वह अपने जीत का दावा कर रहे हैं.
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