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स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का प्रमुख हिस्सा है 'नेहरू पार्क', जाने क्या है इसकी कहानी

यूपी के गोरखपुर से स्वतंत्रता संग्राम के अभियान में देश में क्रांतिकारियों, संघर्षशील नेताओं के साथ स्थानों का भी बड़ा महत्व रहा है, जिसमें 'लाल डिग्गी पार्क' जो मौजूदा समय में 'नेहरू पार्क' शामिल है, जिसका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

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नेहरू पार्क गोरखपुर.
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Published : Jan 26, 2020, 12:26 AM IST

गोरखपुर: स्वतंत्रता संग्राम के अभियान में देश में क्रांतिकारियों, संघर्षशील नेताओं के साथ स्थानों का भी बड़ा महत्व रहा है. ऐसे ही स्थानों में एक है गोरखपुर का 'लाल डिग्गी पार्क' जो मौजूदा समय में 'नेहरू पार्क' के नाम से जाना जाता है. यहां से भी आजादी को लेकर कई तरह की गतिविधियां चलाई जाती थीं. उस दौर में यह हुंकार भरने के लिए नेताओं का प्रमुख स्थल हुआ करता था.

जाने लाल डिग्गी से नेहरू पार्क बनने तक का सफर.

यही वजह है कि 3 जून 1940 का दिन इस पार्क के नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जब स्वतंत्रता आंदोलन के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को संबोधित करने पंडित जवाहरलाल नेहरु यहां सभा करने आए और ब्रिटिश हुकूमत के आदेश पर उन्हें यहां से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

लाल डिग्गी से नेहरू पार्क बनने तक का सफर

तीन-तीन नाम की पहचान रखने वाला यह पार्क ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ने की वजह से अब विरासत की कड़ी बन चुका है. घटनाक्रम के अनुसार, पार्क के नाम को क्रम में रखा जाए तो सबसे पहले इसका नाम लाल डिग्गी ही था. उसके बाद इसे इस्माइल नाम मिला और अंत में यह नेहरू पार्क के नाम से स्थापित होकर मौजूदा समय में अपनी उपयोगिता शहरवासियों के बीच स्थापित कर चुका है. लाल डिग्गी नाम का इतिहास सतासी स्टेट के राजाओं से जुड़ा है, जहां के लाल बाबू इस स्थान पर रहते हुए एक पोखरे का निर्माण करवाया था, जिसको उस काल में डिग्गी कहा जाता था.

गोरखपुर जिला जेल में बंद थे नेहरू

यह आजादी के बाद पार्क का रूप लिया तो इसे लाल बाबू के नाम से जोड़ते हुए लाल डिक्की नाम दिया गया. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान स्वतंत्रता संग्राम को सक्रिय करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू जब इसमें सभा करने आए तो ब्रिटिश शासन उन्हें रोकने में लगा था. उस दौरान जस्टिस इस्माइल उन्हें अपने बग्गी पर लेकर यहां आए और सभा हो गई, लेकिन सभा के दौरान ही नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जिला कारागार में बंदी के तौर पर रखा गया. इस्माइल के योगदान पर यह आजादी के पूर्व इस्माइल पार्क के नाम से ही पुकारा जाता था, लेकिन स्वतंत्रा की लड़ाई में नेहरू के योगदान की वजह से लोग आज भी याद करते हैं.


पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने पार्क में लगवाई नेहरू की प्रतिमा
देश की आजादी के बाद 1958 में प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस पार्क का जीर्णोद्धार कराया तो बाद में इसे भव्य रूप देने का कार्य 1988 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया. उन्होंने ही इसे नेहरू पार्क का नाम दिया और पार्क में नेहरू जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई. इसका उद्घाटन 14 नवंबर 1988 को वीर बहादुर सिंह देश के संचार मंत्री के तौर पर किया. यह पार्क शहर के व्यस्ततम और व्यापारिक मंडियों के क्षेत्र में स्थित है.

गोरखपुर: स्वतंत्रता संग्राम के अभियान में देश में क्रांतिकारियों, संघर्षशील नेताओं के साथ स्थानों का भी बड़ा महत्व रहा है. ऐसे ही स्थानों में एक है गोरखपुर का 'लाल डिग्गी पार्क' जो मौजूदा समय में 'नेहरू पार्क' के नाम से जाना जाता है. यहां से भी आजादी को लेकर कई तरह की गतिविधियां चलाई जाती थीं. उस दौर में यह हुंकार भरने के लिए नेताओं का प्रमुख स्थल हुआ करता था.

जाने लाल डिग्गी से नेहरू पार्क बनने तक का सफर.

यही वजह है कि 3 जून 1940 का दिन इस पार्क के नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जब स्वतंत्रता आंदोलन के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को संबोधित करने पंडित जवाहरलाल नेहरु यहां सभा करने आए और ब्रिटिश हुकूमत के आदेश पर उन्हें यहां से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

लाल डिग्गी से नेहरू पार्क बनने तक का सफर

तीन-तीन नाम की पहचान रखने वाला यह पार्क ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ने की वजह से अब विरासत की कड़ी बन चुका है. घटनाक्रम के अनुसार, पार्क के नाम को क्रम में रखा जाए तो सबसे पहले इसका नाम लाल डिग्गी ही था. उसके बाद इसे इस्माइल नाम मिला और अंत में यह नेहरू पार्क के नाम से स्थापित होकर मौजूदा समय में अपनी उपयोगिता शहरवासियों के बीच स्थापित कर चुका है. लाल डिग्गी नाम का इतिहास सतासी स्टेट के राजाओं से जुड़ा है, जहां के लाल बाबू इस स्थान पर रहते हुए एक पोखरे का निर्माण करवाया था, जिसको उस काल में डिग्गी कहा जाता था.

गोरखपुर जिला जेल में बंद थे नेहरू

यह आजादी के बाद पार्क का रूप लिया तो इसे लाल बाबू के नाम से जोड़ते हुए लाल डिक्की नाम दिया गया. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान स्वतंत्रता संग्राम को सक्रिय करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू जब इसमें सभा करने आए तो ब्रिटिश शासन उन्हें रोकने में लगा था. उस दौरान जस्टिस इस्माइल उन्हें अपने बग्गी पर लेकर यहां आए और सभा हो गई, लेकिन सभा के दौरान ही नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जिला कारागार में बंदी के तौर पर रखा गया. इस्माइल के योगदान पर यह आजादी के पूर्व इस्माइल पार्क के नाम से ही पुकारा जाता था, लेकिन स्वतंत्रा की लड़ाई में नेहरू के योगदान की वजह से लोग आज भी याद करते हैं.


पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने पार्क में लगवाई नेहरू की प्रतिमा
देश की आजादी के बाद 1958 में प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस पार्क का जीर्णोद्धार कराया तो बाद में इसे भव्य रूप देने का कार्य 1988 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया. उन्होंने ही इसे नेहरू पार्क का नाम दिया और पार्क में नेहरू जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई. इसका उद्घाटन 14 नवंबर 1988 को वीर बहादुर सिंह देश के संचार मंत्री के तौर पर किया. यह पार्क शहर के व्यस्ततम और व्यापारिक मंडियों के क्षेत्र में स्थित है.

Intro:गोरखपुर। स्वतंत्रता संग्राम के अभियान में देश में क्रांतिकारियों, संघर्षशील नेताओं के साथ स्थानों का भी बड़ा महत्व रहा है। ऐसे ही स्थानों में एक है गोरखपुर का 'लाल डिग्गी पार्क' जो मौजूदा समय में 'नेहरू पार्क' के नाम से जाना जाता है। यहां से भी आजादी को लेकर कई तरह की गतिविधियां चलाई जाती थीं। उस दौर में यह हुंकार भरने के लिए नेताओं का प्रमुख स्थल हुआ करता था। यही वजह है कि 3 जून 1940 का दिन इस पार्क के नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जब स्वतंत्रता आंदोलन के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को संबोधित करने पंडित जवाहरलाल नेहरु यहां सभा करने आए और ब्रिटिश हुकूमत के आदेश पर उन्हें यहां से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

नोट-रेडी टू फ्लैश पैकेज... voice ओवर अटैच है।..Special है सर।


Body:तीन-तीन नाम की पहचान रखने वाला यह पार्क ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ने की वजह से अब विरासत की कड़ी बन चुका है। घटनाक्रम के अनुसार पार्क के नाम को क्रम में रखा जाए तो सबसे पहला नाम इसका लाल डिग्गी ही था। उसके बाद इसे इस्माइल नाम मिला और अंत में यह नेहरू पार्क के नाम से स्थापित होकर मौजूदा समय में अपनी उपयोगिता शहरवासियों के बीच स्थापित कर चुका है। लाल डिग्गी नाम का इतिहास सतासी स्टेट के राजाओं से जुड़ा है। जहां के लाल बाबू इस स्थान पर रहते हुए एक पोखरे का निर्माण करवाए थे। जिसको उस काल में डिग्गी कहा जाता था। यही वजह है कि जब यह आजादी के बाद पार्क का रूप लिया तो इसे लाल बाबू के नाम से जोड़ते हुए लाल टिक्की नाम दिया गया। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान स्वतंत्रता संग्राम को सक्रिय करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू जब इसमें सभा करने आए तो ब्रिटिश शासन उन्हें रोकने में लगा था।जिस दौरान जस्टिस इस्माइल उन्हें अपने बग्गी पर लेकर यहां आए और सभा हो गई। लेकिन सभा के दौरान ही नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जिला कारागार में बंदी के तौर पर रखा गया। इस्माइल के योगदान पर यह आजादी के पूर्व इस्माइल नाम से भी पुकारा जाता था। लेकिन स्वतंत्रा की लड़ाई में नेहरू के योगदान को लोग आज भी याद करते हैं।

बाइट--अनवर हुसैन, प्रवक्ता/महामंत्री, जिला कांग्रेस कमेटी


Conclusion:देश की आजादी के बाद 1958 में प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस पार्क का जीर्णोद्धार कराया तो बाद में इसे भव्य रूप देने का कार्य 1988 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया। उन्होंने ही इसे नेहरू पार्क का नाम दिया। पार्क में नेहरू जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई। नेहरू पार्क से इसका उद्घाटन 14 नवंबर 1988 को वीर बहादुर सिंह देश के संचार मंत्री के तौर पर किए। यह पार्क शहर के व्यस्ततम और व्यापारिक मंडियों के क्षेत्र में स्थित है। जिसका लोग भरपूर आनंद उठाते हैं। यहां पर स्थापित इतिहास से जोड़ने वाली जानकारियां भी लोगों को प्राप्त होती है।

क्लोजिंग पीटीसी..
मुकेश पाण्डेय
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