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आर्थिक तंगी की वजह से साइकिल का पंचर बना रहा है हैंडबॉल का नेशनल प्‍लेयर

यूपी के गोरखपुर में हैंडबॉल के नेशनल खिलाड़ी कार्तिक यादव आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. कार्तिक यादव अंडर 19 में यूपी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. लेकिन घर की आर्थिक स्थिति मजबूत न होने की वजह से साइकिल पंचर की दुकान चलाकर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर.

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नेशनल खिलाड़ी कार्तिक यादव
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Published : Sep 15, 2020, 6:18 PM IST

गोरखपुर: "छोटी सी मुसीबत से जो घबरा जाए वो अनाड़ी होता है, हार को भी सामने देखकर जो लड़ जाए वो खिलाड़ी होता है."

इस बात में सच्‍चाई तो है, जो सिस्‍टम को आईना दिखाने के साथ यह भी बताती है कि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. वह अपना रास्‍ता खुद ही बना लेते हैं और मंजिल भी तय कर लेते हैं. गोरखपुर के रहने वाले 17 वर्षीय नेशनल हैंडबॉल प्लेयर कार्तिक यादव इस छोटी सी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रहे हैं. तीन बार हैंडबॉल में यूपी का प्रतिनिधित्व कर चुके कार्तिक का यह दुर्भाग्य है कि नेशनल लेवल पर खेलने के बाद भी इस खिलाड़ी को परिवार का खर्च चलाने के लिए सड़क पर पंचर बनाना पड़ रहा है.

साइकिल का पंचर बना रहा है हैंडबॉल का नेशनल प्‍लेयर.

बचपन में ही पिता की मौत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर के दुर्गाबाड़ी तिराहे के रहने वाले कार्तिक यादव की जिंदगी साइकिल के पहियों के बीच बचपन से ही घूम रही है. 11 साल पहले कार्तिक के पिता की बीमारी से मौत हो चुकी है, वह भी इसी पंचर की दुकान से परिवार का खर्च चलाते थे. जब उनकी मौत हुई तो कार्तिक महज 6 साल के ही थे. उन्हें तो यह भी ठीक से नहीं पता था कि उसके पिता अब लौट कर कभी वापस नहीं आएंगे. लेकिन कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सिर पर आया तो सब सच्चाई सामने आ गई. हकीकत से रूबरू होने के बाद कार्तिक ने सारी जिम्मेदारियों के साथ अपने आप को तैयार किया.

समय मिलने पर करते हैं हैंडबॉल की प्रैक्टिस
नन्हे कंधों पर परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कार्तिक ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. चार बहनों के बीच तीसरे नंबर पर होने के बावजूद एक बहन की शादी की जिम्मेदारी भी पूरी कर दी. कार्तिक ने परिवार के खर्च और बहनों की पढ़ाई के साथ उनकी शादी की जिम्मेदारी के बीच अपने शौक को भी मरने नहीं दिया. दिनभर मेहनत के बीच वह स्टेडियम में हैंडबॉल का प्रैक्टिस भी करते रहे.

पढ़ाई पर भी दे रहे ध्यान
कार्तिक अपने अच्छे गेम की बदौलत ही यूपी सब जूनियर टीम से तीन बार नेशनल खेल चुके हैं, लेकिन घर की आर्थिक परेशानी की वजह से छोटी सी उम्र में साइकिल, मोटर साइकिल का पंचर बनाने का काम कर रहे हैं. इस कार्य से टाइम निकालकर कार्तिक डेली स्टेडियम में अपने सपनों को पूरा करने के लिए हैंडबॉल की भी प्रैक्टिस करते हैं. वहीं कार्तिक की तीन बहनें भी पढ़ने में तेज हैं, उनके लिए कार्तिक दिन-रात अपने सपनों को दबाकर मेहनत करते रहते हैं. कार्तिक ने हाईस्कूल में 55 और इंटरमीडिएट की परीक्षा में 65% नंबर से पास हुए हैं. वह विश्वविद्यालय से बीए के प्रथम वर्ष के छात्र हैं, खेल के साथ ही कार्तिक का पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान है.

देश के लिए खेलना चाहते हैं कार्तिक
ईटीवी भारत से बात करते हुए नेशनल हैंडबॉल खिलाड़ी कार्तिक यादव ने बताया कि अभी तो स्थिति यही है कि पंचर की दुकान पर काम कर रहा हूं. 2017 में यूपी हैंडबॉल की 16 सदस्य टीम में सिलेक्शन के बाद शामिल हुए. प्रदेश भर से ढेरों प्लेयर ट्रायल देने के लिए केडी सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ आए थे. मैं अलग-अलग तीन बार यूपी टीम का हिस्सा रह चुका हूं. कार्तिक ने बताया कि और आगे खेलने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है, वह उनके पास नहीं है. पंचर की दुकान से जो कमाई हो रही है, उसे इकठ्ठा कर रहे हैं. मेरा सपना है कि एक दिन वह देश के लिए खेलते हुए अपने माता-पिता और देश का नाम रोशन करें. रोज प्रैक्टिस करते हैं, प्रैक्टिस के बाद दुकान खोल लेते हैं. कार्तिक ने कहा कि सरकार से उनकी यही मांग है कि वह देश के लिए खेलने में उनकी मदद करें और मुझे एक आवास दे दें.

गोरखपुर: "छोटी सी मुसीबत से जो घबरा जाए वो अनाड़ी होता है, हार को भी सामने देखकर जो लड़ जाए वो खिलाड़ी होता है."

इस बात में सच्‍चाई तो है, जो सिस्‍टम को आईना दिखाने के साथ यह भी बताती है कि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. वह अपना रास्‍ता खुद ही बना लेते हैं और मंजिल भी तय कर लेते हैं. गोरखपुर के रहने वाले 17 वर्षीय नेशनल हैंडबॉल प्लेयर कार्तिक यादव इस छोटी सी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रहे हैं. तीन बार हैंडबॉल में यूपी का प्रतिनिधित्व कर चुके कार्तिक का यह दुर्भाग्य है कि नेशनल लेवल पर खेलने के बाद भी इस खिलाड़ी को परिवार का खर्च चलाने के लिए सड़क पर पंचर बनाना पड़ रहा है.

साइकिल का पंचर बना रहा है हैंडबॉल का नेशनल प्‍लेयर.

बचपन में ही पिता की मौत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर के दुर्गाबाड़ी तिराहे के रहने वाले कार्तिक यादव की जिंदगी साइकिल के पहियों के बीच बचपन से ही घूम रही है. 11 साल पहले कार्तिक के पिता की बीमारी से मौत हो चुकी है, वह भी इसी पंचर की दुकान से परिवार का खर्च चलाते थे. जब उनकी मौत हुई तो कार्तिक महज 6 साल के ही थे. उन्हें तो यह भी ठीक से नहीं पता था कि उसके पिता अब लौट कर कभी वापस नहीं आएंगे. लेकिन कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सिर पर आया तो सब सच्चाई सामने आ गई. हकीकत से रूबरू होने के बाद कार्तिक ने सारी जिम्मेदारियों के साथ अपने आप को तैयार किया.

समय मिलने पर करते हैं हैंडबॉल की प्रैक्टिस
नन्हे कंधों पर परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कार्तिक ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. चार बहनों के बीच तीसरे नंबर पर होने के बावजूद एक बहन की शादी की जिम्मेदारी भी पूरी कर दी. कार्तिक ने परिवार के खर्च और बहनों की पढ़ाई के साथ उनकी शादी की जिम्मेदारी के बीच अपने शौक को भी मरने नहीं दिया. दिनभर मेहनत के बीच वह स्टेडियम में हैंडबॉल का प्रैक्टिस भी करते रहे.

पढ़ाई पर भी दे रहे ध्यान
कार्तिक अपने अच्छे गेम की बदौलत ही यूपी सब जूनियर टीम से तीन बार नेशनल खेल चुके हैं, लेकिन घर की आर्थिक परेशानी की वजह से छोटी सी उम्र में साइकिल, मोटर साइकिल का पंचर बनाने का काम कर रहे हैं. इस कार्य से टाइम निकालकर कार्तिक डेली स्टेडियम में अपने सपनों को पूरा करने के लिए हैंडबॉल की भी प्रैक्टिस करते हैं. वहीं कार्तिक की तीन बहनें भी पढ़ने में तेज हैं, उनके लिए कार्तिक दिन-रात अपने सपनों को दबाकर मेहनत करते रहते हैं. कार्तिक ने हाईस्कूल में 55 और इंटरमीडिएट की परीक्षा में 65% नंबर से पास हुए हैं. वह विश्वविद्यालय से बीए के प्रथम वर्ष के छात्र हैं, खेल के साथ ही कार्तिक का पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान है.

देश के लिए खेलना चाहते हैं कार्तिक
ईटीवी भारत से बात करते हुए नेशनल हैंडबॉल खिलाड़ी कार्तिक यादव ने बताया कि अभी तो स्थिति यही है कि पंचर की दुकान पर काम कर रहा हूं. 2017 में यूपी हैंडबॉल की 16 सदस्य टीम में सिलेक्शन के बाद शामिल हुए. प्रदेश भर से ढेरों प्लेयर ट्रायल देने के लिए केडी सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ आए थे. मैं अलग-अलग तीन बार यूपी टीम का हिस्सा रह चुका हूं. कार्तिक ने बताया कि और आगे खेलने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है, वह उनके पास नहीं है. पंचर की दुकान से जो कमाई हो रही है, उसे इकठ्ठा कर रहे हैं. मेरा सपना है कि एक दिन वह देश के लिए खेलते हुए अपने माता-पिता और देश का नाम रोशन करें. रोज प्रैक्टिस करते हैं, प्रैक्टिस के बाद दुकान खोल लेते हैं. कार्तिक ने कहा कि सरकार से उनकी यही मांग है कि वह देश के लिए खेलने में उनकी मदद करें और मुझे एक आवास दे दें.

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