गोरखपुर: अपनी आय बढ़ाने के लिए विभिन्न उपायों में जुटा गोरखपुर नगर निगम अब गोमूत्र का सहारा लेने जा रहा है. इससे वह फसलों की सुरक्षा और उत्पादन को बढ़ाने के लिए संजीवनी नाम की जहां खाद तैयार करेगा. वहीं, इससे गायों की देखभाल भी बढ़ जाएगी. किसानों की आय दोगुनी करने के चल रहे प्रयास के क्रम में कई तरह के सरकारी स्तर पर प्रयास हो रहे हैं तो इस प्रयास से किसानों और नगर निगम का भी लाभ सम्भावित है.
निगम क्षेत्र में संचालित कान्हा गोशाला समेत क्षेत्र की अन्य गोशालाओं से निगम गोमूत्र का कलेक्शन कराएगा. इस गोमूत्र के शोधन और इसे फसलों के लिए उपयोगी बनाने के लिए एक संस्था के साथ निगम का करार अंतिम दौर में है, जो पहले गोमूत्र को शुद्ध करेगा. फिर बॉयलर पर गर्म करने के बाद उसे ठंडा करके बोतलों में बंद किया जाएगा. माना जा रहा है कि एक लीटर गोमूत्र में 15 लीटर पानी मिलाकर फसलों पर इसका छिड़काव करने से उसमें कीड़े नहीं लगेंगे. ऐसा कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के बाद नगर निगम कदम उठा रहा है. अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन 500 लीटर गोमूत्र कलेक्शन से इसकी शुरुआत होगी.
गोशाला क्षेत्र के प्रभारी अभियंता नर्वदेश्वर पाण्डेय की माने तो आइडीएस इंटरप्राइजेज नाम की संस्था से इसके लिए करार होगा. यह फर्म ही वर्मी कंपोस्ट बना रही है, जिसकी बिक्री नगर निगम संजीवनी के नाम से कर रहा है. अब गोमूत्र पर काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि कान्हा उपवन में बेसहारा पशुओं की संख्या तकरीबन 14 सौ है. इन पशुओं को दो बड़े सेड में रखा गया है. पशुओं के गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार कर इसकी बिक्री हो रही है, जिसके बाद गोमूत्र के व्यवसायिक उपयोग की शुरुआत होने जा रही है. इससे नगर निगम की आय में वृद्धि तो होगी, वहीं किसानों को छिड़काव रूपी एक ऐसी खाद या कीटनाशक प्राप्त होगा, जो उनकी फसलों को सुरक्षा प्रदान करेगा. कृषि वैज्ञानिक एसबी सिंह कहते हैं की गोबर की खाद और पशुओं का मल मूत्र खेती के लिए सदैव से लाभकारी रहा है. अगर नई तकनीक पर कुछ काम हो रहा है तो उम्मीद की जा सकती है कि वह किसानों के लिए बेहतर होगा.
आईडीएस इंटरप्राइजेज के प्रोपराइटर आर के नायक का कहना है कि गोमूत्र को इकट्ठा कर इसे शुद्ध किया जाएगा. फिर बॉयलर में गर्म करने के बाद उसे ठंडा कर बोतलों में भरा जाएगा. एक लीटर गोमूत्र 15 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से कीड़े नहीं लगेंगे. साथ ही फफूंद से भी फसल बचती है. यह फसलों में रोग नहीं लगने देता और पैदावार भी अच्छी होती है. इसके प्रयोग के बाद खेत में पोटाश और फास्फोरस की जरूरत नहीं पड़ती. गोमूत्र से फिनायल और फर्श की सफाई के लिए लिक्विड भी बनाया जाएगा. जिसके लिए मशीन मंगाई जाएगी. उन्होंने कहा कि विभिन्न गौशालाओं में इसके एकत्रीकरण की व्यवस्था बनाई जा रही है.
यह भी पढ़ें- एनसीईआरटी की वजह से बेसिक शिक्षा परिषद की किताबें प्रकाशित करने का टेंडर पुरानी कंपनियों के हवाले