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सामान्य हुई गोरखपुर महापौर की सीट से बढ़ी चुनावी सरगर्मी, राजनीतिक दलों के लिए प्रत्याशी का चयन करना हुआ मुश्किल

गोरखपुर नगर निगम चुनाव में अनारक्षित सीट होने के बाद सभी पार्टियों में प्रत्याशियों का चयन करना मुश्किल हो गया है. भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस समेत किसी भी पार्टी ने अब तक प्रत्याशी का चयन नहीं किया है. जबकि नामंकन करने की प्रक्रिया 18 अप्रैल तक ही चलेगी.

गोरखपुर महापौर की सीट
गोरखपुर महापौर की सीट
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Published : Apr 12, 2023, 5:31 PM IST

अनारक्षित सीट होने पर समाजवादी पार्टी के नेता ने टिकट को लेकर बताया.

गोरखपुर: नगर निगम चुनाव की घोषणा के साथ एक बार फिर राजनीतिक गलियारे में हलचल मची हुई है. अधिसूचना जारी होने के साथ नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. गोरखपुर में इस चुनाव की सरगर्मी की खास वजह यह है कि पहली बार यहां महापौर की सीट अनारक्षित हुई है. 20 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी पिछड़े वर्ग की इस सीट पर कब्जा है. लेकिन सामान्य सीट होने से बीजेपी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस सभी के लिए प्रत्याशी का चयन करना मुश्किल हो गया है. इस बार सभी दलों के भीतर सामान्य वर्ग के ही प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने की होड़ मची है. इसके बाद भी कई पिछड़े वर्ग के नेताओं ने अपनी दावेदारी पेशकर राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ा दी है.

बता दें कि गोरखपुर में 1994 में पहले मेयर, नगर प्रमुख और महापौर के रूप में पिछड़े वर्ग के कांग्रेसी नेता पवन बथ्वाल चुने गए थे. इसके बाद हुए चुनाव में 2007 को छोड़कर हर बार चुनाव में पिछड़ा पुरुष या महिला के लिए ही आरक्षित रहा है. जिससे सामान्य वर्ग राजनीतिक लोग चुनाव लड़ने से वंचित हो जाते थे. इसके बावजूद भी जो चुनाव वर्ष 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में हुआ. 2002 को छोड़ सभी में भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुआ. 2002 में किन्नर आशा देवी मेयर चुनी गयीं थी. बाकी सभी दलों को मुंह की खानी पड़ी थी. वहीं इस बार 2023 का चुनाव कई मायनों में भिन्न हो चुका है.

नगर निगम गोरखपुर की सीट अनारक्षित खाते में है. इसलिए सबसे ज्यादा दबाव भारतीय जनता पार्टी पर ही है. अनारक्षित कोटे पर पार्टी के किस कार्यकर्ता को चुनाव में टिकट देकर अपना प्रत्याशी बनाये. समाजवादी पार्टी भी ऐसे ही दबाव को झेल रही है. सूत्रों की मानें तो सपा तब तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं करना चाहती है. जब तक बीजेपी का कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं आता है. उसकी रणनीति है कि भाजपा अगर अनारक्षित वर्ग से चुनाव प्रत्याशी बनाती है. वह पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी को मैदान में उतारकर इस समाज के वोट को हथियाने के साथ चुनावी जीत की ओर आगे बढ़ना चाहती है.इस मामले में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के साथ आम आदमी पार्टी पर भी अनारक्षित वर्ग के ही प्रत्याशी को उतारने का दबाव है. इन दलों के भीतर भी इस बात को लेकर मंथन चल रहा है.

बीजेपी महानगर अध्यक्ष राजेश श्रीवास्तव का कहना है कि पार्टी नेतृत्व प्रत्याशी तय करता है. हम जीत के लिए मेहनत करते हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के क्षेत्रीय प्रभारी प्रदेश महामंत्री अनूप गुप्ता बैठकों का दौर कर रहे हैं. वहीं, प्रभारी मंत्री के रूप में सुरेश खन्ना और राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद भी अपने फीडबैक से पार्टी नेतृत्व को अवगत कराते हुए प्रत्याशी के नाम पर मुहर लगाएंगे. भारतीय जनता पार्टी की में चुनाव लड़ने में जो नाम सामने आ रहे हैं. उसमें चेंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल, महिला नेत्री सुधा मोदी, पार्टी के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र सिन्हा, इंजीनियर पीके मल्ल और विष्णु शंकर श्रीवास्तव के नाम की चर्चा की जा रही है.

समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में तो एक कायस्थ बिरादरी के नेता इंजीनियर सुनील कुमार श्रीवास्तव ने नामांकन पत्र भी खरीद लिया है. उन्होंने बताया कि वह चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. कायस्थ का वोट भी नगर निगम क्षेत्र में अच्छा है. लेकिन अंतिम फैसला समाजवादी पार्टी का ही होगा कि वह किसे लड़ाना चाहती है. लेकिन वह भी एक दावेदार हैं. इसके अलावा पार्टी के प्रवक्ता कपिश श्रीवास्तव, कीर्ति निधि पांडेय, बिंदा सैनी, विश्वजीत त्रिपाठी दावेदारों की सूची में शामिल हैं. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता कीर्ति निधि पांडेय और अंबेडकर जनमोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रवण निराला का कहना है कि इस चुनाव में अगर उनके प्रत्याशी को जीत मिलती है तो, वह गोरखपुर नगर निगम में हुए बड़े पैमाने पर लूट का पर्दाफाश करेंगी. वहीं, बसपा और कांग्रेस में अभी कोई भी नाम बड़ा उभरकर सामने नहीं आया है. लेकिन उम्मीद लगाई जा रही है कि दो तीन दिन में इन दलों द्वारा प्रत्याशियों का नाम फाइनल हो जाएगा. क्योंकि नामांकन पत्र खरीदने और दाखिल करने की प्रक्रिया भी 18 अप्रैल तक की चलेगी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे गोरखपुर क्षेत्र के स्थानीय निकाय चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है. बता दें कि 9 अप्रैल को उन्होंने बड़ी सभा के माध्यम से हजारों करोड़ की विकास योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया. इसके साथ ही सीएम ने कार्यकर्ताओं और जनता से निगम चुनाव में जीत की अपील की. इसके पहले वह निगम बोर्ड की आखिरी बैठक में भी विकास योजनाओं के बल पर पूर्व की सरकारों पर हमला बोलते रहे हैं.

यह भी पढ़ें- सारस के दोस्त आरिफ के सपोर्ट में आए वरुण गांधी..वीडियो ट्वीट कर लिखा, यह प्रेम निश्चल है

अनारक्षित सीट होने पर समाजवादी पार्टी के नेता ने टिकट को लेकर बताया.

गोरखपुर: नगर निगम चुनाव की घोषणा के साथ एक बार फिर राजनीतिक गलियारे में हलचल मची हुई है. अधिसूचना जारी होने के साथ नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. गोरखपुर में इस चुनाव की सरगर्मी की खास वजह यह है कि पहली बार यहां महापौर की सीट अनारक्षित हुई है. 20 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी पिछड़े वर्ग की इस सीट पर कब्जा है. लेकिन सामान्य सीट होने से बीजेपी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस सभी के लिए प्रत्याशी का चयन करना मुश्किल हो गया है. इस बार सभी दलों के भीतर सामान्य वर्ग के ही प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने की होड़ मची है. इसके बाद भी कई पिछड़े वर्ग के नेताओं ने अपनी दावेदारी पेशकर राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ा दी है.

बता दें कि गोरखपुर में 1994 में पहले मेयर, नगर प्रमुख और महापौर के रूप में पिछड़े वर्ग के कांग्रेसी नेता पवन बथ्वाल चुने गए थे. इसके बाद हुए चुनाव में 2007 को छोड़कर हर बार चुनाव में पिछड़ा पुरुष या महिला के लिए ही आरक्षित रहा है. जिससे सामान्य वर्ग राजनीतिक लोग चुनाव लड़ने से वंचित हो जाते थे. इसके बावजूद भी जो चुनाव वर्ष 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में हुआ. 2002 को छोड़ सभी में भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुआ. 2002 में किन्नर आशा देवी मेयर चुनी गयीं थी. बाकी सभी दलों को मुंह की खानी पड़ी थी. वहीं इस बार 2023 का चुनाव कई मायनों में भिन्न हो चुका है.

नगर निगम गोरखपुर की सीट अनारक्षित खाते में है. इसलिए सबसे ज्यादा दबाव भारतीय जनता पार्टी पर ही है. अनारक्षित कोटे पर पार्टी के किस कार्यकर्ता को चुनाव में टिकट देकर अपना प्रत्याशी बनाये. समाजवादी पार्टी भी ऐसे ही दबाव को झेल रही है. सूत्रों की मानें तो सपा तब तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं करना चाहती है. जब तक बीजेपी का कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं आता है. उसकी रणनीति है कि भाजपा अगर अनारक्षित वर्ग से चुनाव प्रत्याशी बनाती है. वह पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी को मैदान में उतारकर इस समाज के वोट को हथियाने के साथ चुनावी जीत की ओर आगे बढ़ना चाहती है.इस मामले में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के साथ आम आदमी पार्टी पर भी अनारक्षित वर्ग के ही प्रत्याशी को उतारने का दबाव है. इन दलों के भीतर भी इस बात को लेकर मंथन चल रहा है.

बीजेपी महानगर अध्यक्ष राजेश श्रीवास्तव का कहना है कि पार्टी नेतृत्व प्रत्याशी तय करता है. हम जीत के लिए मेहनत करते हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के क्षेत्रीय प्रभारी प्रदेश महामंत्री अनूप गुप्ता बैठकों का दौर कर रहे हैं. वहीं, प्रभारी मंत्री के रूप में सुरेश खन्ना और राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद भी अपने फीडबैक से पार्टी नेतृत्व को अवगत कराते हुए प्रत्याशी के नाम पर मुहर लगाएंगे. भारतीय जनता पार्टी की में चुनाव लड़ने में जो नाम सामने आ रहे हैं. उसमें चेंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल, महिला नेत्री सुधा मोदी, पार्टी के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र सिन्हा, इंजीनियर पीके मल्ल और विष्णु शंकर श्रीवास्तव के नाम की चर्चा की जा रही है.

समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में तो एक कायस्थ बिरादरी के नेता इंजीनियर सुनील कुमार श्रीवास्तव ने नामांकन पत्र भी खरीद लिया है. उन्होंने बताया कि वह चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. कायस्थ का वोट भी नगर निगम क्षेत्र में अच्छा है. लेकिन अंतिम फैसला समाजवादी पार्टी का ही होगा कि वह किसे लड़ाना चाहती है. लेकिन वह भी एक दावेदार हैं. इसके अलावा पार्टी के प्रवक्ता कपिश श्रीवास्तव, कीर्ति निधि पांडेय, बिंदा सैनी, विश्वजीत त्रिपाठी दावेदारों की सूची में शामिल हैं. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता कीर्ति निधि पांडेय और अंबेडकर जनमोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रवण निराला का कहना है कि इस चुनाव में अगर उनके प्रत्याशी को जीत मिलती है तो, वह गोरखपुर नगर निगम में हुए बड़े पैमाने पर लूट का पर्दाफाश करेंगी. वहीं, बसपा और कांग्रेस में अभी कोई भी नाम बड़ा उभरकर सामने नहीं आया है. लेकिन उम्मीद लगाई जा रही है कि दो तीन दिन में इन दलों द्वारा प्रत्याशियों का नाम फाइनल हो जाएगा. क्योंकि नामांकन पत्र खरीदने और दाखिल करने की प्रक्रिया भी 18 अप्रैल तक की चलेगी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे गोरखपुर क्षेत्र के स्थानीय निकाय चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है. बता दें कि 9 अप्रैल को उन्होंने बड़ी सभा के माध्यम से हजारों करोड़ की विकास योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया. इसके साथ ही सीएम ने कार्यकर्ताओं और जनता से निगम चुनाव में जीत की अपील की. इसके पहले वह निगम बोर्ड की आखिरी बैठक में भी विकास योजनाओं के बल पर पूर्व की सरकारों पर हमला बोलते रहे हैं.

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