गोरखपुर: कोरोना की महामारी ने लोगों की जिंदगी में उथल-पुथल मचा दी है. चाहे वह सरकारी कर्मचारी हों या फिर दिहाड़ी मजदूर. रेलवे जैसी संस्था और यहां पर काम करने वाले कुलियों की तो जिंदगी मौजूदा समय में बेपटरी हो गई है. कोरोना संक्रमण से पहले रेल की पटरियों पर जिस तरह से ट्रेनें दौड़ा करती थीं वैसे ही यहां के कुली अपनी जिंदगी के लिए दौड़ लगाते थे, लेकिन इस महामारी ने इनकी रफ्तार थाम दी है. मौजूदा समय तो इन कुलियों पर और भी भारी पड़ रहा है क्योंकि ट्रेनों का संचालन बेहद कम है और जो यात्री स्टेशन आ रहे हैं वह संक्रमित होने के डर से अपना सामान खुद उठाकर ले जाते हैं. जिससे इन कुलियों की कमाई नहीं हो रही है.
कोरोना में बंद हुई कुलियों की कमाई
गोरखपुर रेलवे स्टेशन पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय है. लॉकडाउन से पहले यहां से सैकड़ों ट्रेनें देश के हर प्रमुख स्टेशन के लिए गुजरती रहती हैं. इन ट्रेनों से आने वाले यात्री इन कुलियों की जीविका के माध्यम बनते थे. यह कुली यात्रियों का बोझ अपने सिर पर रखकर ले जाते थे, जिसका इन्हें निर्धारित शुल्क भी मिलता था. कोरोना की महामारी में इनकी तो कमाई पूरी तरह बंद हो चुकी है. दुनिया का सबसे बड़ा प्लेटफार्म गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर है, साथ ही यहां कुल 9 प्लेटफार्म बनाए गए हैं. जिनपर रेलवे के रिकॉर्ड के अनुसार 139 कुली काम करते हैं. इनमें से ज्यादातर कुली दूसरे शहर यहां तक कि दूसरे प्रदेशों के भी हैं. गोरखपुर के स्थानीय कुलियों की संख्या दर्जन भर से ज्यादा है और मौजूदा समय में स्थानीय कुली ही स्टेशन पर नजर आ रहे हैं.
कोरोना के डर से कोई यात्री नहीं उठाने देता सामान
इस स्टेशन से मात्र 15 ट्रेनों का ही आना-जाना हो रहा है. जिनसे करीब 20 हजार यात्री ही प्रतिदिन यहां आ रहे हैं. इन्ही यात्रियों से यह कुली उनका सामान उठाने और ढोने के लिए आग्रह करते हैं, लेकिन कोरोना के डर से बहुत मुश्किल से ही कोई यात्री अपना सामान उठाने देता है. लॉकडाउन के पहले चरण यानी कि मार्च 2020 से पहले यहां तैनात हर कुली करीब 400 से 500 रुपये प्रतिदिन कमाता था, जो अब 100-200 पर ही आकर रुक गया है. यही नहीं 139 कुलियों में जो बाहर के कुली थे वह अब नहीं आ रहे. उन्हें कमाई से ज्यादा संक्रमित होने का भी खतरा महसूस हो रहा है. स्थानीय कुली अपने बीच सामंजस्य स्थापित करके एक-दो दिन के अंतराल पर आ रहे हैं.
संकट की घड़ी में कोई नहीं ले रहा कुलियों की सुध
पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह की माने तो रेलवे ने कुलियों से गुड्स गोडाउन में काम करने को कहा था क्योंकि माल गाड़ियों का संचालन हो रहा था, लेकिन यह कुली यहां काम करने के लिए तैयार नहीं हुए. वहीं कुलियों ने अपनी आप बीती सुनाते हुए कहा कि संकट की घड़ी में उनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है. राजस्थान से आकर यहां काम करने वाले कुली समीर ने कहा कि वह अपने बाप-दादा के धंधे से जुड़े और उसी के होकर रह गए. कमाई न होने से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है.