गोरखपुरः शहर की विरासत बन चुके शास्त्री चौक पर स्थित क्राइस्ट चर्च शहर का सबसे पुराना चर्च है. लगभग 200 वर्ष पुराने इस चर्च की बनावट एवं खूबसूरती लोगों को आकर्षित करती है. बताया जाता है कि सन 1920 में इसकी नीव पड़ी थी और कोलकाता के विशप डेनियल विल्सन ने 1 मार्च 1841 को इसका पवित्रीकरण किया था. तत्कालीन कमिश्नर रहे रॉबर्ट मार्टिन बर्ड को इस चर्च में पुरोहित की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. तब सिर्फ बड़े अंग्रेज अधिकारी यहां पर प्रार्थना करने आते थे.
200 साल पुराना इतिहास
आजादी के बाद इस चर्च के गेट को आम लोगों के लिए खोल दिए गए. प्रार्थना सभा हाल की दीवारों पर लगे पत्थरों की खूबसूरती अभी भी बनी हुई है. बेदी के सामने एवं पीछे बेल्जियम ग्लास लगा हुआ है. इस ग्लास को 30 दिसंबर 1895 में कैंपियरगंज स्टेट में इंग्लैंड से मंगवाकर चर्च को तोहफे के रूप में दिया था. आज भी इस चर्च में 200 वर्ष पुरानी तिजोरी, लकड़ी की अलमारी, ऑल्टर एवं कुर्सी मेज सुरक्षित है. चर्च की ऐतिहासिकता पर्यटन विभाग की साइट पर घूम कर रही है.
समय के साथ होता रहा बदलाव
ज्यादातर गिरजाघरों की नींव ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने अपनी आध्यात्मिक जरूरत को पूरा करने के लिए रखी थी. कुछ की सूरत समय के साथ बदल गई, लेकिन कुछ आज भी अपने मूल रूप में विद्यमान है. क्राइस्ट चर्च के सचिव अमर जॉय सिंह के अनुसार शास्त्री चौक पर स्थित क्राइस्ट चर्च शहर का सबसे पुराना चर्च है. लगभग 200 वर्ष पुराने इस चर्च की बनावट एवं खूबसूरती आज भी ब्रिटिश हुकूमत की याद दिलाती है. इस चर्च का निर्माण सन 1820 में शुरू हुआ था. लगभग 10 वर्ष बाद यह चर्च बनकर तैयार हुआ.
क्राइस्ट चर्च के कर्मचारी रवि मोरियन गावली ने बताया कि जन्म से वह इस चर्च में आ रहे हैं और यहां पर रहकर वह चर्च की सेवा में लगे हुए हैं. इस ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च में दूरदराज से लोग आकर प्रार्थना सभाओं में हिस्सा लेते हैं.
लगभग 3 पीढ़ियों से क्राइस्ट चर्च में आ रहे डॉक्टर सपन कुमार लारेंस ने बताया कि क्राइस्ट चर्च किसी ऐतिहासिक धरोहर से कम नहीं है. यहां पर देश-विदेश से लोग बड़ी संख्या में आकर प्रार्थना सभाओं में भाग लेते हैं. ब्रिटिश हुकूमत ने इस क्राइस्ट चर्च का निर्माण अपने उच्च अधिकारियों की प्रार्थना सभाओं के लिए करवाया था, लेकिन बाद में इसे आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया. इस चर्च का निर्माण दो भागों में हुआ था, पहले पिछला हिस्सा बना था और फिर कुछ वर्षों बाद आगे की गुंबद और दीवारें बनी थी. इस चर्च में बतौर सदस्य के रूप में वह यहां पर हर बड़े छोटे कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए आते हैं.
ईसाई धर्म के अनुयायी नेहा क्लॉडियस ने बताया कि जन्म से ही वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ क्राइस्ट चर्च में आकर विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेती हैं. यहां आने के बाद उनके मन को शांति मिलती है. यह चर्च गोरखपुर की धरोहरों में से एक है और इसका इतिहास भी सैकड़ों वर्ष पुराना है.