गोरखपुर : किन्नर समाज की किरण घोष अब महामंडलेश्वर के रूप में कनकेश्वरी नंदगिरी बन गई हैं. इस सफर में उन्होंने समाज की उलाहना और परिवार के तिरस्कार को भी झेला इसलिए वह नहीं चाहती कि किसी के साथ भी ऐसा हो. शायद यही वजह है कि किन्नर होने के बावजूद भी वह सामाजिक सरोकार के साथ दिन दुखियों, जरूरतमंदों की सहायता करना नहीं भूलीं. देखिए खास रिपोर्ट.
7 वर्ष की उम्र में छोड़ा घर
दरअसल 38 वर्ष पूर्व आंध्र प्रदेश के कलानीघोसी में एक सरकारी कर्मचारी के परिवार में जन्मी नागमणि ने महज 7 वर्ष की उम्र में अपना घर परिवार छोड़ दिया. सामाजिक तिरस्कार के साथ परिवारिक उलाहना से तंग आकर नागमणि, किरण घोष के रूप में किन्नर समाज से जुड़कर नाच-गाकर बधाइयां देकर जीवन-यापन करने लगीं. सन् 1998 में जब गोरखपुर जिला बाढ़ की त्रासदी झेल रहा था, तब यहां किन्नर किरण घोष ने अपने साथियों के साथ मिलकर बाढ़ ग्रसित लोगों की जमकर सेवा की थी. तभी से उन्होंने समाज में किन्नरों को सम्मान दिलाने और कुछ अलग कर गुजरने की इच्छाशक्ति ने आज उन्हें किन्नर अखाड़ा का महामंडलेश्वर बना दिया. अब किरण घोष महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नंद गिरी के नाम से जानी जाती हैं.
परिजनों ने जीते जी कर दिया था श्राद्ध
जब उन्होंने परिवार को छोड़ा था तो कुछ महिला दोस्तों के कहने पर उन्होंने आर्केस्ट्रा में नाच गाकर और रामायण में विभिन्न पात्रों का अभिनय कर अपना गुजर बसर किया. वहीं परिवार के मुखिया ने सामाजिक तिरस्कार से बचने के लिए नागमणि का श्राद्ध तक करा दिया. इसके बाद नागमणि ने किरण घोष के नाम से किन्नर समाज से जुड़कर नए जीवन की शुरुआत की.
यजमानों के लिए रखा तीन दिन का निराजल व्रत
गोरखपुर के पिपराइच में पहली बार किन्नर गुरु छोटकी के पास रहकर किरण ने लोगों के घरों में बधाई देने का काम शुरू किया. लेकिन समाज में जिस तरह से किन्नरों को दिखा जाता है, यह उन्हें नागवार गुजरा. जिसके बाद किरण घोष ने किन्नरों की एक अलग पहचान स्थापित करने का बीड़ा उठाया. इस दौरान यजमानों की सुख समृद्धि के लिए उन्होंने निराजल 3 दिनों तक का छठ व्रत रखना शुरू किया. इस बीच अनेकों लड़कियों की शादी, कपड़ा बांटना, बाढ़ पीड़ितों की मदद करना, जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को किताबें और ड्रेस आदि देना उनकी दिनचर्या में शुमार हो गया.
समाजसेवा का हुआ विरोध
हालांकि यह सब इतना आसान भी नहीं था. इस काम में किन्नर समाज में भी उनका जमकर विरोध हुआ. किन्नरों का कहना था कि हम तो खुद दूसरों के भरोसे पलते हैं, ऐसे में हम मदद कैसे कर सकते हैं. लेकिन तमाम विरोध के बाद भी किरण घोष ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने वैश्विक महामारी के कोरोना के बीच बाहर से आने वाले श्रमिकों के बीच जाकर मास्क, सैनिटाइजर, भोजन, कपड़े व जरूरी सामानों का वितरण किया.
डब्ल्यूएचओ की सदस्य ने सौंपी महामंडलेश्वर की जिम्मेदारी
उनके इस काम की डब्ल्यूएचओ की सदस्य और किन्नर अखाड़ा की गुरु माता कहे जाने वाली लक्ष्मी नारायण ने खूब सराहना की और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए किन्नर समाज का महामंडलेश्वर बनाने का प्रण लिया. गुरु माता के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए किरण घोष ने किन्नर समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के साथ किन्नरों को उनका हक दिलाने के लिए महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नंदगिरी की जिम्मेदारी को संभाला.
युवा पर्वतारोही के सपने को किया साकार
वहीं शहर के युवा पर्वतारोही नितीश सिंह भी बड़ी उम्मीदों के साथ महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नंदगिरी के पास पहुंचे. नितीश सिंह का सपना था कि वो बीते 26 जनवरी को अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो पर भारत का गौरव तिरंगा फहरा सकें लेकिन उनके इस कार्य में किसी भी सफेदपोश और सरकारी कर्मचारी ने मदद नहीं की. वहीं महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नंदगिरी ने लाखों रुपए देकर युवा पर्वतारोही को उनके सपनों को साकार करने के लिए भेजा. जिसके बाद युवा पर्वतारोही ने भी भारत के तिरंगे को अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी पर फहरा कर देश का नाम रोशन किया.
27 फरवरी को कुंभ में होगी पेशवाई
अब उनका कहना है कि कुंभ के शाही स्नान में किन्नरों के लिए भी वह सारी सुविधाएं मुहैया कराएंगे जो अन्य लोगों पर साधु-संतों के लिए होती है. आगामी 27 फरवरी को महामंडलेश्वर कनकेश्वरी नंदगिरी की पेशवाई है और इसी दौरान उनका पट्टा अभिषेक भी होगा.