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चरण पादुका मंदिर: जहां कभी ठहरे थे कबीरदास, आज बनी है जीर्णोद्धार की आस - birth anniversery of sant kabir

'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए' का संदेश देने वाले कबीर समाज को नई दिशा देने वाले संत थे. 24 जून को कबीर जयंती है. इस मौके पर हम आपको ले चलेंगे गोरखपुर के घासी कटरा स्थित चरण पादुका मंदिर में. जहां कबीर मगहर की यात्रा के दौरान यहां रात्रि विश्राम के लिए रुके थे.

संत कबीर की जयंती
संत कबीर की जयंती
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Published : Jun 24, 2021, 5:34 AM IST

गोरखपुर: 24 जून, गुरुवार (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा ) को संत कबीर की जयंती है. जनमानस में व्याप्त भ्रांति दूर करने के लिए संत कबीर ने अपने जीवन में कई मिथक तोड़े. उन्होंने अध्यात्म के रहस्यों की परतें खोलीं. कबीर साहब के अनुयायियों ने कबीर की स्मृति संजो रखी है. उनमें से एक है गोरखपुर के घासी कटरा का 'चरण पादुका मंदिर'. इस मंदिर में कबीर के खड़ांऊ रखे हैं. अनुयायियों का दावा है कि कबीर मगहर की यात्रा के दौरान यहां रात्रि विश्राम के लिए रुके थे. फिलहाल इस मंदिर को जर्णोद्धार की दरकार है, मगर इसकी सुध न तो सरकार ले रही है और न ही कबीर मठ की संचालन समिति.

जहां कबीर ने छोड़े थी खड़ाऊं, भक्तों ने बनाया चरण पादुका मंदिर

चरण पादुका मंदिर के महंत बालयोगी ने बताया कि जीवन के अंतिम दौर में कबीर काशी को छोड़कर निर्वाण के लिए मगहर चले गए थे. उस समय यह मान्यता थी कि मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म मिलता है, जबकि काशी में मरने वाले स्वर्ग जाते हैं. इस मिथक को तोड़ने के लिए संत अपने आखिरी समय में मगहर की ओर रवाना हुए. मगहर यात्रा के दौरान कबीर भक्तों के अनुरोध पर गोरखपुर के घासी कटरा स्थित एक सत्संग भवन में रुके. रात्रि विश्राम के बाद कबीर मगहर चले गए मगर भक्तों के अनुरोध पर अपनी खड़ाऊं छोड़ गए. उसके बाद घासी कटरा का सत्संग भवन 'चरण पादुका मंदिर' बन गया. महंत बालयोगी ने दावा किया कि जब संत कबीर ने मगहर में समाधि ली तो उनका पार्थिव शरीर फूल में बदल गया था. उसमें से कुछ फूलों को भी इस मंदिर में लाकर स्थापित किया गया था. अभी इस मंदिर में महात्मा कबीर की एक विशालकाय पेंटिंग लगी है, जिसके सामने उनकी चरण पादुका और बीजक पुस्तक को रखा गया है. यहां प्रतिदिन कबीर के अनुयायी भजन- कीर्तन करते हैं. परिसर के बीच में स्थापित यह मंदिर तो छोटा सा है मगर यहां की दीवारों पर लिखे हुए कबीर के विचार आने वाले लोगों को आज भी प्रेरित करते हैं.

संत कबीर की जयंती

बिजली खां के बुलावे पर बनारस छोड़कर मगहर गए थे महात्मा कबीर

गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' में कबीर की मगहर यात्रा और गोरखपुर में रात्रि प्रवास का उल्लेख मिलता है. संत कबीर को लेकर उनके अनुयायियों में कई कहानियां प्रचलित है. ऐसी मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया था. उन दिनों मगहर क्षेत्र में सूखा पड़ा था. बिजली खां को उम्मीद थी कि कबीर के आशीर्वाद से यह संकट खत्म हो जाएगा. कबीर इस मौके का उपयोग एक मिथक को तोड़ने के लिए भी करना चाहते थे. तब यह आम धारणा थी मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म लेना पड़ता है. इस भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर ने बिजली खां का निमंत्रण स्वीकार कर लिया.

जब गुरु गोरक्षनाथ ने अंगूठे से धरती दबाकर पानी निकाल दिया

आईने गोरखपुर पुस्तक के अनुसार कबीर दास काशी से निकलने के बाद गाजीपुर, बलिया, देवरिया होते हुए गोरखपुर के घासी कटरा पहुंचे. यहां एक सत्संग भवन में वह रुके. अनुयायियों ने उनके साथ सत्संग का लाभ लिया. जब वह गोरखपुर से मगहर के लिए जाने लगे तो उनके भक्तों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. कबीरदास रुके तो नहीं, मगर अपनी खड़ाऊं वहीं छोड़ दी. तब से भक्तों ने वहां पूजा-अर्चना शुरू कर दी. कबीरपंथी साधु तपस्वी साहब का दावा है कि यहां पर कबीर ने अपनी आध्यात्मिक क्षमता दिखाते हुए एक दीवार को गति प्रदान कर दी. उस दौर में ही गुरु गोरक्षनाथ भी अपनी सिद्धियों के लिए प्रसिद्ध थे. कबीरदास ने गुरु गोरक्षनाथ को मगहर आमंत्रित किया, जहां बिजली खां की ओर से भंडारे का आयोजन किया गया था. गोरक्षनाथ उनके निमंत्रण पर मगहर पहुंचे, जहां अपनी सिद्धि की बदौलत अंगूठे से धरती को दबाकर पानी की धार निकाल दी थी. उस स्थान को आज गोरख तलैया के नाम से जाना जाता है जो मगहर संत कबीर नगर में स्थित है.

घासी खटरा के चरण पादुका मंदिर से संत कबीरदास से जुड़ी कई कहानियां जुड़ी हैं. फिलहाल इस मंदिर को जर्णोद्धार की दरकार है, मगर इसकी सुध न तो सरकार ले रही है और न ही कबीर मठ की संचालन समिति. अनुयायियों का कहना है कि यह मंदिर विशिष्ट स्थान रखता है, जिसे उसकी गरिमा के अनुरूप तवज्जो नहीं मिल रही है.

गोरखपुर: 24 जून, गुरुवार (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा ) को संत कबीर की जयंती है. जनमानस में व्याप्त भ्रांति दूर करने के लिए संत कबीर ने अपने जीवन में कई मिथक तोड़े. उन्होंने अध्यात्म के रहस्यों की परतें खोलीं. कबीर साहब के अनुयायियों ने कबीर की स्मृति संजो रखी है. उनमें से एक है गोरखपुर के घासी कटरा का 'चरण पादुका मंदिर'. इस मंदिर में कबीर के खड़ांऊ रखे हैं. अनुयायियों का दावा है कि कबीर मगहर की यात्रा के दौरान यहां रात्रि विश्राम के लिए रुके थे. फिलहाल इस मंदिर को जर्णोद्धार की दरकार है, मगर इसकी सुध न तो सरकार ले रही है और न ही कबीर मठ की संचालन समिति.

जहां कबीर ने छोड़े थी खड़ाऊं, भक्तों ने बनाया चरण पादुका मंदिर

चरण पादुका मंदिर के महंत बालयोगी ने बताया कि जीवन के अंतिम दौर में कबीर काशी को छोड़कर निर्वाण के लिए मगहर चले गए थे. उस समय यह मान्यता थी कि मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म मिलता है, जबकि काशी में मरने वाले स्वर्ग जाते हैं. इस मिथक को तोड़ने के लिए संत अपने आखिरी समय में मगहर की ओर रवाना हुए. मगहर यात्रा के दौरान कबीर भक्तों के अनुरोध पर गोरखपुर के घासी कटरा स्थित एक सत्संग भवन में रुके. रात्रि विश्राम के बाद कबीर मगहर चले गए मगर भक्तों के अनुरोध पर अपनी खड़ाऊं छोड़ गए. उसके बाद घासी कटरा का सत्संग भवन 'चरण पादुका मंदिर' बन गया. महंत बालयोगी ने दावा किया कि जब संत कबीर ने मगहर में समाधि ली तो उनका पार्थिव शरीर फूल में बदल गया था. उसमें से कुछ फूलों को भी इस मंदिर में लाकर स्थापित किया गया था. अभी इस मंदिर में महात्मा कबीर की एक विशालकाय पेंटिंग लगी है, जिसके सामने उनकी चरण पादुका और बीजक पुस्तक को रखा गया है. यहां प्रतिदिन कबीर के अनुयायी भजन- कीर्तन करते हैं. परिसर के बीच में स्थापित यह मंदिर तो छोटा सा है मगर यहां की दीवारों पर लिखे हुए कबीर के विचार आने वाले लोगों को आज भी प्रेरित करते हैं.

संत कबीर की जयंती

बिजली खां के बुलावे पर बनारस छोड़कर मगहर गए थे महात्मा कबीर

गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' में कबीर की मगहर यात्रा और गोरखपुर में रात्रि प्रवास का उल्लेख मिलता है. संत कबीर को लेकर उनके अनुयायियों में कई कहानियां प्रचलित है. ऐसी मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया था. उन दिनों मगहर क्षेत्र में सूखा पड़ा था. बिजली खां को उम्मीद थी कि कबीर के आशीर्वाद से यह संकट खत्म हो जाएगा. कबीर इस मौके का उपयोग एक मिथक को तोड़ने के लिए भी करना चाहते थे. तब यह आम धारणा थी मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म लेना पड़ता है. इस भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर ने बिजली खां का निमंत्रण स्वीकार कर लिया.

जब गुरु गोरक्षनाथ ने अंगूठे से धरती दबाकर पानी निकाल दिया

आईने गोरखपुर पुस्तक के अनुसार कबीर दास काशी से निकलने के बाद गाजीपुर, बलिया, देवरिया होते हुए गोरखपुर के घासी कटरा पहुंचे. यहां एक सत्संग भवन में वह रुके. अनुयायियों ने उनके साथ सत्संग का लाभ लिया. जब वह गोरखपुर से मगहर के लिए जाने लगे तो उनके भक्तों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. कबीरदास रुके तो नहीं, मगर अपनी खड़ाऊं वहीं छोड़ दी. तब से भक्तों ने वहां पूजा-अर्चना शुरू कर दी. कबीरपंथी साधु तपस्वी साहब का दावा है कि यहां पर कबीर ने अपनी आध्यात्मिक क्षमता दिखाते हुए एक दीवार को गति प्रदान कर दी. उस दौर में ही गुरु गोरक्षनाथ भी अपनी सिद्धियों के लिए प्रसिद्ध थे. कबीरदास ने गुरु गोरक्षनाथ को मगहर आमंत्रित किया, जहां बिजली खां की ओर से भंडारे का आयोजन किया गया था. गोरक्षनाथ उनके निमंत्रण पर मगहर पहुंचे, जहां अपनी सिद्धि की बदौलत अंगूठे से धरती को दबाकर पानी की धार निकाल दी थी. उस स्थान को आज गोरख तलैया के नाम से जाना जाता है जो मगहर संत कबीर नगर में स्थित है.

घासी खटरा के चरण पादुका मंदिर से संत कबीरदास से जुड़ी कई कहानियां जुड़ी हैं. फिलहाल इस मंदिर को जर्णोद्धार की दरकार है, मगर इसकी सुध न तो सरकार ले रही है और न ही कबीर मठ की संचालन समिति. अनुयायियों का कहना है कि यह मंदिर विशिष्ट स्थान रखता है, जिसे उसकी गरिमा के अनुरूप तवज्जो नहीं मिल रही है.

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