गोरखपुर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2025 में भारत को टीबी मुक्त बनाने का दावा किया है. इसके लिए विभिन्न प्रयास और उपाय पर जोर दिया जा रहा है. लेकिन, शोध के क्षेत्र की जानी-मानी संस्था आईसीएमआर इस अध्ययन में जुटी है कि आखिरकार अच्छे शहर और अच्छी सोसायटी के अमीर लोग टीबी की चपेट में कैसे आते हैं. जबकि, गरीब और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग तो इसके शिकार हो सकते हैं, जिसका कारण कुपोषण और गंदगी भी है.
आईसीएमआर ने पीएम मोदी के मिशन को पूरा करने के उद्देश्य से दो शहारों को जांच का आधार बनाया है. इसमें देहरादून जैसी VIP सिटी और कुशीनगर जैसा पिछड़ा जिला शामिल है. इसमें जांच के आधार मुसहर और गरीब बस्ती के लोग तो अमीरों की श्रेणी के लोग देहरादून से शामिल हैं. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में स्थापित देश का दूसरे आईसीएमआर शोध केंद्र इसपर शोध में जुटा है और परिणाम तक पहुंचा भी है. जो इस बीमारी के उन्मूलन में बड़ा कारगर साबित होगा.
टीबी की बीमारी के शोध के लिए कुशीनगर और देहरादून को चुना
बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में स्थापित आईसीएमआर संस्था के साइंटिस्ट डॉक्टर अशोक पांडेय कहते हैं कि इस शोध को पूरा करने का उद्देश्य ही है कि टीबी जैसी बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सके और उसकी मूल वजह की पहचान की जा सके. उन्होंने कहा कि कुशीनगर जैसे पिछड़ा जिला और देहरादून जैसा वीआइपी जिला उनके शोध का विषय इसलिए बना है. क्योंकि, इन दोनों क्षेत्रों में टीबी मरीजों की संख्या काफी अच्छी पाई गई है. कुशीनगर में जहां गरीब और पिछड़े क्षेत्र के लोग इसकी चपेट में ज्यादा दिखाई दिए हैं तो देहरादून में अच्छी सोसायटी के लोग टीबी की चपेट में हैे. इसलिए शोध के लिए यह दोनों जिले केंद्र बने हैं कि आखिरकार वह कौन सी वजह है जो, अच्छी सोसायटी और अच्छे वातावरण में रहने वाले लोगों को भी टीबी की चपेट में ले रहा है.
कुशीनगर में 158 मरीज और देहरादून में 94 मरीज
कुशीनगर में मौजूदा समय में 158 मरीज एक्टिव हैं और दवा 161 की चल रही है. जिले का फाजिलनगर, तमकुही और दुदही इस रोग से ग्रसित लोगों का बड़ा केंद्र है, जो इसके जांच के दायरे में है. यह आंकड़े हेल्थ एजुकेटर आरबी सिंह ने दिए हैं तो देहरादून के जिला कुष्ठ रोग अधिकारी चंदन सिंह रावत ने बताया है कि देहरादून में टीबी मरीजों का आंकड़ा 94 का है. इनका इलाज चल रहा है. जबकि, 168 ऐसे मरीज जो ठीक हो चुके हैं, उनका भी फॉलोअप विभाग करता है.
आईसीएमआर की टीम लोगों को कर रही जागरूक
उन्होंने कहा कि उनकी टीम ऐसे लोगों के बीच जाकर जागरूकता भी फैला रही है और स्क्रीनिंग करके यह पता करने में जुटी है कि आखिर में इन्हें टीबी हुई कैसे और जिनकी टीबी ठीक हो गई वह दोबारा इसकी चपेट में कैसे आए. टेस्ट में पॉजिटिव मरीजों में मिलने वाले कारण का अध्ययन आईसीएमआर में चल रहा है. उन्होंने कहा कि कुशीनगर से अभी तक जो रिजल्ट देखने को मिला है, उसमें कुपोषण और रहन-सहन बड़ी वजह निकलकर सामने आई है. ऐसे में कमजोर लोगों को यह बैक्टीरिया अपनी चपेट में ले रहा है. जबकि, देहरादून में इस बीमारी की चपेट में आने वाले हाई-फाई सोसायटी के लोगों के बीच अध्ययन से जो चीज सामने निकलकर आई है उसमें हाइपरटेंशन, शुगर और धूम्रपान वजह बनता दिखाई दिया है.
डॉक्टर अशोक पांडेय ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के टीबी मुक्त भारत के 2025 के लक्ष्य को हासिल करने में यह शोध अपनी बड़ी भूमिका निभाएगा. क्योंकि, टेस्ट में पॉजिटिव जो कारण मिल रहे हैं, उन पर एक्शन करते हुए जागरूकता अभियान और मेडिसिन मुहैया कराई जाएगी. लक्ष्य को हासिल करने में जो 2 वर्ष का समय है, वह टीबी मुक्त भारत की कहानी को गढ़ने में मददगार साबित होगा.
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