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गोरखपुरः अब दुनिया से नहीं समाप्त होगा केला, भारत ने खोजी उकठा रोग की दवा

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Published : Jul 31, 2019, 12:38 PM IST

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कृषि और बागवानी अनुसंधान के डायरेक्टर डॉक्टर शैलेंद्र राजन और डॉ. टी दामोदरन ने उकठा रोग की रोकथाम के लिए बनाई गई दवा के बारे में जानकारी दी. कृषि वैज्ञानिकों की इस खोज से केले में लगने वाले रोग से निजात मिल सकेगी.

उकठा की रोकथाम के लिए दवा का हुआ निर्माण.

गोरखपुरः दुनिया से केले की फसल नष्ट न होने पाए इसके लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दवा इजाद की है. जो अब पूरी तरह से केले की फसल को सुरक्षित रखेगी. इसे भारत के कृषि वैज्ञानिकों की अनोखी खोज बताया जा रहा है. वहीं ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और फिलीपींस जैसे देश इस बीमारी से अपने देश में केले की फसल को बर्बाद होने से बचा नहीं पाए. केले में लगने वाले इस रोग का नाम (उकठा) और पनामा विल्ट है. जो फ्यूजेरियम ऑक्सिसपोरम फफूंद से जनित होता है. इसकी रोकथाम के लिए जिस दवा का इजाद किया गया है उसका नाम है 'आईसीएआर फ्यूजीकांट', जो पूरी तरह से बॉयो केमिकल है.

दवा की जानकारी देते कृषि वैज्ञानिक.


केले में लगने वाला रोग है उकठाः
ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और फिलीपींस में घट चुकी इस घटना के बाद जो भी दवाईयां बनी वह कारगर नहीं रही. ऐसे में केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) चेन्नई के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर टी दामोदरन अपने रिसर्च में जुटे हुए थे. इस बीमारी का देश में पहला लक्षण बिहार के कटिहार जिले में मिला. उत्तर प्रदेश में यह बीमारी अयोध्या के क्षेत्र सोहावल में काफी तेजी से फैली थी. जिस पर कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी बनाई दवा का प्रयोग किया और परिणाम सकारात्म देखने को मिला.

भारत दवा का कराएगा पेटेंटः
भारत अपनी इस दवा को पेटेंट कराने के साथ ही किसानों को सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से बेचेगा. जिससे इसका दुरुपयोग भी न हो और किसानों को बेहतर लाभ मिले. कृषि क्षेत्र को मिली इस बड़ी सफलता की जानकारी गोरखपुर में कृषि एवं बागवानी अनुसंधान के डायरेक्टर डॉक्टर शैलेंद्र राजन ने दी. इस दौरान उनके साथ डॉ. टी. दामोदरन भी मौजूद थे.

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कृषि वैज्ञानिक डॉ. शैलेंद्र राजन और डॉ टी. दामोदरन


इस रोग के लक्षण...

  • इस रोग से प्रभावित पौधों की नई पत्तियां पीली होने लगती हैं.
  • पुरानी पत्तियां जलने भी लगती है इसके पहचान का असली समय जनवरी से मार्च का महीना होता है.
  • प्रभावित पौधों के तने को काटने पर लाल भूरा रंग दिखाई देता है.
  • वर्षा और ओलों की मार से इसके तने में पैदा हुए घाव से फफूंद प्रवेश करता है.
  • जिससे पूरा पेड़ बीमारी की चपेट में आ जाता है.


ऐसे करें दवा का प्रयोग...

  • केले की पौधों की रोपाई के 2 से 3 दिन पहले 10 लीटर पानी में 500 ग्राम आईसीएआर फ्यूजीकांट मिलाकर मिट्टी में ड्रेजिंग करें.
  • फ्यूजीकांट को तैयार करने के लिए 100 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ घोलने के बाद आईसीएआर फ्यूजीकांट को मिलाए.
  • पौधे लगाने के तीसरे महीने से लेकर 12 में महीने के बीच तक 5 बार इस दवा का प्रयोग करने से बीमारी नहीं लगती.

अधिक जानकारी के लिए आईसीएआर की वेबसाइट पर जाएं.
आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में केले की खेती 55342 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली हुई है, जिसको बचाने की यह कवायद है. गोरखपुर क्षेत्र में इसका असर महाराजगंज, संतकबीर नगर, कुशीनगर क्षेत्र में न पड़े इसलिए वैज्ञानिकों ने अपनी सजगता और सक्रियता बढ़ाई है. उकठा रोग जिसे पनामा विल्ट भी कहते हैं, एक महामारी के रूप में केले की खेती में फैलता है.

गोरखपुरः दुनिया से केले की फसल नष्ट न होने पाए इसके लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दवा इजाद की है. जो अब पूरी तरह से केले की फसल को सुरक्षित रखेगी. इसे भारत के कृषि वैज्ञानिकों की अनोखी खोज बताया जा रहा है. वहीं ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और फिलीपींस जैसे देश इस बीमारी से अपने देश में केले की फसल को बर्बाद होने से बचा नहीं पाए. केले में लगने वाले इस रोग का नाम (उकठा) और पनामा विल्ट है. जो फ्यूजेरियम ऑक्सिसपोरम फफूंद से जनित होता है. इसकी रोकथाम के लिए जिस दवा का इजाद किया गया है उसका नाम है 'आईसीएआर फ्यूजीकांट', जो पूरी तरह से बॉयो केमिकल है.

दवा की जानकारी देते कृषि वैज्ञानिक.


केले में लगने वाला रोग है उकठाः
ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और फिलीपींस में घट चुकी इस घटना के बाद जो भी दवाईयां बनी वह कारगर नहीं रही. ऐसे में केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) चेन्नई के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर टी दामोदरन अपने रिसर्च में जुटे हुए थे. इस बीमारी का देश में पहला लक्षण बिहार के कटिहार जिले में मिला. उत्तर प्रदेश में यह बीमारी अयोध्या के क्षेत्र सोहावल में काफी तेजी से फैली थी. जिस पर कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी बनाई दवा का प्रयोग किया और परिणाम सकारात्म देखने को मिला.

भारत दवा का कराएगा पेटेंटः
भारत अपनी इस दवा को पेटेंट कराने के साथ ही किसानों को सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से बेचेगा. जिससे इसका दुरुपयोग भी न हो और किसानों को बेहतर लाभ मिले. कृषि क्षेत्र को मिली इस बड़ी सफलता की जानकारी गोरखपुर में कृषि एवं बागवानी अनुसंधान के डायरेक्टर डॉक्टर शैलेंद्र राजन ने दी. इस दौरान उनके साथ डॉ. टी. दामोदरन भी मौजूद थे.

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कृषि वैज्ञानिक डॉ. शैलेंद्र राजन और डॉ टी. दामोदरन


इस रोग के लक्षण...

  • इस रोग से प्रभावित पौधों की नई पत्तियां पीली होने लगती हैं.
  • पुरानी पत्तियां जलने भी लगती है इसके पहचान का असली समय जनवरी से मार्च का महीना होता है.
  • प्रभावित पौधों के तने को काटने पर लाल भूरा रंग दिखाई देता है.
  • वर्षा और ओलों की मार से इसके तने में पैदा हुए घाव से फफूंद प्रवेश करता है.
  • जिससे पूरा पेड़ बीमारी की चपेट में आ जाता है.


ऐसे करें दवा का प्रयोग...

  • केले की पौधों की रोपाई के 2 से 3 दिन पहले 10 लीटर पानी में 500 ग्राम आईसीएआर फ्यूजीकांट मिलाकर मिट्टी में ड्रेजिंग करें.
  • फ्यूजीकांट को तैयार करने के लिए 100 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ घोलने के बाद आईसीएआर फ्यूजीकांट को मिलाए.
  • पौधे लगाने के तीसरे महीने से लेकर 12 में महीने के बीच तक 5 बार इस दवा का प्रयोग करने से बीमारी नहीं लगती.

अधिक जानकारी के लिए आईसीएआर की वेबसाइट पर जाएं.
आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में केले की खेती 55342 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली हुई है, जिसको बचाने की यह कवायद है. गोरखपुर क्षेत्र में इसका असर महाराजगंज, संतकबीर नगर, कुशीनगर क्षेत्र में न पड़े इसलिए वैज्ञानिकों ने अपनी सजगता और सक्रियता बढ़ाई है. उकठा रोग जिसे पनामा विल्ट भी कहते हैं, एक महामारी के रूप में केले की खेती में फैलता है.

Intro:गोरखपुर। दुनिया से केले की फसल नष्ट ना होने पावे इसके लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दवा इजाद किया है जो अब पूरी तरह से केले की फसल को सुरक्षित करेगा। यह भारत के कृषि वैज्ञानिकों की अनोखी खोज है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और फिलीपींस जैसे देश इस बीमारी से अपने देश में केले की फसल बर्बाद होने से बचा नहीं पाए। केले में लगने वाले इस रोग का नाम (उकठा) रोग है जो फ्यूजेरियम ऑक्सिसपोरम फफूंद द्वारा जनित एक गंभीर रोग है। जिसके रोकथाम के लिए जो दवा ईजाद हुई है उसका नाम है 'आईसीएआर फ्यूजीकांट'। यह पूरी तरह से बायोकेमिकल है।

नोट--कम्प्लीट पैकेज, वॉइस ओवर अटैच। कृषि क्षेत्र की बड़ी खबर है।


Body:इस बीमारी का सबसे पहले अपने देश में पता बिहार के कटिहार से चला था। जिसके बाद देश के कृषि वैज्ञानिक एक्टिव हो गए। उत्तर प्रदेश में यह बीमारी अयोध्या के पास के क्षेत्र सोहावल में काफी तेजी से फैली थी जिस पर कृषि वैज्ञानिकों ने अपने दवा के प्रयोग से काफी नियंत्रण पाया है। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और फिलीपींस में घट चुकी इस घटना के बाद जो भी दवाई बन रही थी वह कारगर नहीं हो पा रही थी। ऐसे में सीएसएसआरआई चेन्नई के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर टी दामोदरन अपने रिसर्च में जुटे हुए थे जिसमें उन्हें या बड़ी सफलता हासिल हुई है। भारत अपने इस दवा को पेटेंट कराने के साथ किसानों को सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से बेचेगा जिससे इसका दुरुपयोग भी ना हो और किसानों को बेहतर लाभ दे मिले क्योंकि खुले बाजार में इसके डुप्लीकेसी और दुरुपयोग की संभावना ज्यादा है। कृषि क्षेत्र को मिली इस बड़ी सफलता की जानकारी गोरखपुर में कृषि एवं बागवानी अनुसंधान के डायरेक्टर डॉक्टर शैलेंद्र राजन ने दिया। उनके साथ डॉ टी दामोदरन भी मौजूद थे।

बाइट--डॉ शैलेन्द्र राजन, निदेशक, कृषि एवं बागवानी अनुसंधान, लखनऊ


Conclusion:आंकड़े के अनुसार पूरे देश में केले की खेती 55342 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैली हुई है। जिसको बचाने की यह कवायद है। गोरखपुर क्षेत्र में इसका असर महाराजगंज, संत कबीर नगर, कुशीनगर क्षेत्र में न पड़े इसलिए वैज्ञानिकों ने अपनी सजगता और सक्रियता बढ़ाई है। उकठा रोग जिसे पनामा विल्ट भी कहते हैं एक महामारी के रूप में केले की खेती में फैलता है।

इस रोग के लक्षण...
- इस रोग से प्रभावित पौधों की नई पत्तियां पीली होने लगती हैं पुरानी पत्तियां जलने भी लगती है इसके पहचान का असली समय जनवरी से मार्च तक का महीना है.
- प्रभावित पौधों के तने को काटने पर लाल भूरा रंग दिखाई देता है वर्षा और ओलों की मार से इसके तने में पैदा हुए घाव से फफूद प्रवेश करता है जिससे पूरा पेड़ बीमारी की चपेट में आ जाता है.

आईसीएआर फ्यूजीकांट दवा रामबाण, प्रयोग का तरीका इस प्रकार...


-केले की पौधों की रोपाई के 2 से 3 दिन पहले 10 लीटर पानी में 500 ग्राम आईसीएआर फ्यूजीकांट मिलाकर मिट्टी में ड्रेजिंग करना चाहिए।
- फ्यूजीकांट को तैयार करने के लिए 100 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड घोलने के बाद आईसीएआर फ्यूजीकांट मिलाया जाता है।
- पौधा लगाने के तीसरे महीने से 12 में महीने के बीच तक 5 बार इस दवा का प्रयोग करने से बीमारी अवधि में नहीं लगती जिससे अच्छी फसल तैयार होती है केले की। अधिक जानकारी के लिए आईसीएआर की वेबसाइट से पता लगाया जा सकता है।

क्लोजिंग पीटीसी
मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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