गोरखपुरः सुमेर सागर ताल पर अवैध रूप से बने मकान और कमर्शियल भवनों पर प्रशासन का बुलडोजर चलने के बाद अब असुरन पोखरे को पाटकर बने अवैध मकानों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है. आरोप है कि जमीदार ने नवैयत (स्वरूप) बदलवा कर 12 एकड़ के असुरन पोखरे में 7 एकड़ को पाटकर उसे बेच दिया. अब यहां पर 200 से अधिक मकान बन चुके हैं. इसके साथ ही जीडीए ने नक्शा भी पास कर दिया. नगर निगम में सड़क और नालियां भी बना दी गई है. तहसील के तत्कालीन अधिकारियों और कर्मचारियों ने मिलकर पोखरे की नवैयत को भी बदल दिया. अब दोषी अधिकारी और कर्मचारी भी रडार पर आ गए हैं.
असुरन पोखरे को पाटकर बनाया गया मकान
शहर के बीचो बीच स्थित असुरन पोखरे पर बन चुके 200 से अधिक आवास अब दो ही सूरत में बच सकते हैं. पोखरे की जमीन पर बने आवास के बदले या तो उतनी ही जमीन कहीं दी जाए, नहीं तो 100 करोड रुपए सर्किल रेट के हिसाब से राजस्व के मद में ट्रेजरी में जमा कराया जाए. जिला प्रशासन ने पोखरे की जमीन को अवैध रूप से विक्रय करने वाले ऋषभ जैन को 29 जनवरी तक की मोहलत दी है. वे या तो साल 2010 में तत्कालीन मंडलायुक्त पीके मोहंती के साथ हुए समझौते के तहत कब्जा कर बेची गई असुरन पोखरे की जमीन के बदले जमीन दें, नहीं तो 100 करोड रुपए राजस्व में जमा कराएं.
12 में से 7 एकड़ जमीन पर पक्के मकान
शहर में ताल और पोखरे की जमीन से कब्जा हटाने की कार्रवाई के दौरान कुछ महीनों पहले ही तहसील की टीम ने असुरन पोखरे की भी पैमाइश की थी. जिसमें 12 एकड़ में से 7 एकड़ पर पक्के मकान बन चुके हैं. मकान ध्वस्त करने की तैयारी का जैसे ही कॉलोनी वालों को पता चला, वो एसडीएम सदर के कार्यालय पहुंच गए. उनके साथ जमीन बेचने वाले परिवार के सदस्य भी थे. सभी ने मामला हाईकोर्ट में लंबित होने और मंडलायुक्त की अध्यक्षता में करीब 10 साल पहले हुए एक समझौते के बारे में बताया.
जमीन के जमीन पर हुआ था समझौता
इस समझौते के अनुसार जमीन बेचने वाले परिवार ने कहीं और पोखरे के लिए जमीन देने को कहा था. इसी आधार पर उस समय राहत मिली थी. बातचीत के बाद एसडीएम ने पता किया तो यह बात सामने आई कि अभी तक जमीन नहीं दी गई है. ज्वाइंट मजिस्ट्रेट गौरव सिंह सोगरवाल ने साफ कर दिया है कि पोखरे की 7 एकड़ जमीन पर मकान बन चुके हैं. ऐसे में या तो इतनी कीमत कि कहीं जमीन उपलब्ध कराई जाए या फिर लगभग 100 करोड रुपए राजस्व में जमा कराए जाएं. इन दोनों के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.
विकास प्राधिकरण ने पास किया था नक्शा
हैरत की बात यह है कि गोरखपुर विकास प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों और कर्मचारियों ने बकायदा इसका नक्शा पास करा दिया था. वहीं नगर निगम के आला अधिकारियों ने यहां पर आरसीसी रोड के साथ पक्की नालियां भी बना दी. इतना ही नहीं बिजली विभाग ने यहां पर पोल और तारों का जाल बिछा दिया. अब प्रशासन की कार्रवाई के डर से कॉलोनी के लोगों की दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई है. ऐसे में उनकी मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं.
समझौते का नहीं हुआ पालन
इस संबंध में एसडीएम सदर गौरव सिंह सोगरवाल ने बताया कि असुरन पोखरा 12 एकड़ में फैला था. यह रेवन्यू रिकॉर्ड में जलाशय के नाम पर दर्ज है. साल 2010 में कमेटी बनी, आकलन किया गया कि कितने भूभाग पर निर्माण हो चुका है. इस दौरान पता चला था कि 3 एकड़ पर निर्माण हो चुका था. जबकि 8 एकड़ के करीब खाली था. तत्कालीन कमिश्नर पीके मोहंती ने जीडीए उपाध्यक्ष, नगर आयुक्त और डीएम को पत्र लिखा था. शासनादेश का हवाला देते हुए बताया था कि जलाशय की भूमि का नवैयत परिवर्तन करके जो प्लाटिंग की गई है, वह अवैध है. इसके अलावा उन्होंने सवाल किया था कि इस पर जीडीए ने नक्शा कैसे पास कर दिया. नगर निगम ने विकास कार्य कैसे कर दिए. संलिप्त अधिकारियों पर भी कार्रवाई की बात कही गई थी. साल 2010 के समझौते के मुताबिक जिन्होंने भूमि का विक्रय किया है. वह उतनी जमीन कहीं और दे दें. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो सर्किल रेट के हिसाब से 100 करोड़ रुपए सरकारी कोष में जमा कराएं. उन्होंने बताया कि 2010 के बाद समझौते का पालन नहीं हुआ.