गोरखपुरः कोरोना महामारी ने इस बार नवरात्रि के त्योहार को भी काफी फीका कर दिया है. देवी के मंदिरों में इस अवसर पर उमड़ने वाली भीड़ में काफी कमी आ गई है. गोरखपुर के बुढ़िया माता मंदिर में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है. जहां श्रद्धालुओं दर्शन के लिए बहुत कम संख्या पहुंच रहे हैं. हालांकि ऐतिहासिक महत्व के इस मंदिर में लोगों का आना जाना लगा है, लेकिन उत्साह, विशेष उमंग और घंटे की आवाज में भारी कमी आई है.
बारात और नाच से जुड़ी है, इस मंदिर के स्थापना की कहानी
बुढ़िया माता का मंदिर गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर कुसमी जंगल में स्थापित है. इसका इतिहास काफी पुराना है. यहां के पुजारी इसे मुगलकालीन बताते हैं और कहते हैं कि सैकड़ों साल पहले जहां यह मंदिर है. वहां एक नाला हुआ करता था. नाले पर लकड़ी का पुल था. उस पुल के पास ही एक बुढ़िया महिला खड़ी रहती थीं. एक बार यहां से एक बारात गुजर रही थी. बुढ़िया मां ने बारातियों से नाच दिखाने की गुजारिश की. सभी बराती बुढ़िया मां की हंसी उड़ाने लगे, लेकिन इस दौरान जोकर ने बुढ़िया मां को प्रसन्न करने के लिए अपनी अदाकारी निभाई थी. बारात नाले को पार करके चली गई.
जोकर ने दिखाई थी अपनी अदाकारी
जब 3 दिन बाद बारात लौटी तो बुढ़िया माई फिर वहीं पर खड़ी थीं. उन्होंने एक बार फिर बारातियों से नाच दिखाने का आग्रह किया, लेकिन जोकर को छोड़ किसी ने बुढ़िया मां की मांग नहीं मानी. जिसका परिणाम था कि बारात जैसे ही नाले के पुल पर चढ़ी पुल टूट गया और पूरी बारात उस नाले में समाहित हो गई. कहा जाता है कि केवल जोकर ही जीवित बचा. यह चर्चा क्षेत्र में काफी तेजी के साथ फैली. लोगों ने इसे देवी रूप का चमत्कार मानते हुए जंगल में पूजा अर्चना शुरू कर दिया.
पूजा करने से नहीं होती अकाल मृत्यु
दुर्गा मां के मंदिर की यहां स्थापना की गई और मंदिर के बगल में ही बुढ़िया माता के रूप में भी एक प्रतिमा की स्थापना करके, दोनों की पूजा अर्चना आज भी की जाती है. जिसके दर्शन पूजन के लिए गोरखपुर ही नहीं आसपास के पड़ोसी जिलों के लोग भी यहां पहुंचते हैं. मान्यता है कि श्रद्धा भाव से दर्शन करने वाले श्रद्धालु को कभी अकाल मृत्यु नहीं होती. यहां जो भी आता है उसकी मन्नत जरूरी पूरी होती है.
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रात में बुढ़िया माता मंदिर में लग जाता है ताला, आज भी बना है रहस्य
इस मंदिर की एक जो सबसे रोचक, रहस्यमयी घटना है. वह यह कि इस मंदिर में रात के समय में कोई भी नहीं रुकता. यहां तक कि मंदिर का पुजारी भी मंदिर में ताला लगा कर अपने घर चला जाता है. जो व्यापारी यहां दिन में व्यापार करते हैं. वह भी अपने पूजा-पाठ की सामग्री को समेट कर घर चले जाते हैं. वह अगले दिन आकर फिर बाजार से सजाते हैं. मंदिर के पुजारी की माने तो ऐसा इसीलिए होता है कि, जिससे किसी प्रकार की अनहोनी न हो. पूर्व के पुरोहितों, पुजारियों का भी कुछ ऐसा ही कहना था. इसका पालन जिला प्रशासन भी कराता है, लेकिन लोगों की श्रद्धा में इस मंदिर के प्रति कोई कमी नहीं है.
कोरोना ने प्रभावित किया कारोबार
कोरोना की वजह से मंदिर परिसर के व्यापारियों का व्यापार भी प्रभावित है. मंदिर के पुजारी भी दर्शनार्थियों के इंतजार में खाली हाथ ही बैठे हुए हैं. मुख्यमंत्री के आदेश के बाद मंदिर में कम दर्शन का असर देखा जा रहा है. इसमें एक बार में 5 लोगों की संख्या को प्रवेश करने को कहा गया है. इसका भी दर्शनार्थियों पर असर पड़ा है. कोरोना से बचाव भी एक बड़ा कारण बना हुआ है.