गोरखपुर: अयोध्या में भगवान श्रीराम की पावन जन्मभूमि पर, 22 जनवरी को रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह होगा. जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण के लिए करीब पांच सौ वर्षों के संघर्ष में, अनेकानेक रामभक्तों के बलिदान ने दिया था. लेकिन देश की आजादी के बाद इसके लिए आन्दोलन को, पहली बार ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ ने बकायदा रणनीति बनाकर संगठित स्वरूप दिया.
गोरखपुर में इतिहास के प्रोफेसर और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि को लेकर संघर्ष इस स्थान पर बाबरी मस्जिद बनने के साथ ही शुरू हो गया था. अठारहवीं सदी के बाद से हुए संघर्षों में गोरक्षपीठ ने उल्लेखनीय भूमिका निभानी शुरू की. आजादी मिलने से पहले तक तबके महंत गोपालनाथ जी महाराज और उनके बाद योगी गंभीरनाथ जी महाराज और महंत ब्रह्मनाथ जी महाराज ने विवाद के समाधान का प्रयास किया. लेकिन आन्दोलन की रूपरेखा दिग्विजय नाथ ने तय की.
अखिल भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि को लेकर ठोस आंदोलन की नींव देश के आजाद होने के बाद 1949 में पड़ी. इसके रणनीतिकार थे वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादागुरु और मंदिर आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने वाले ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के गुरुदेव, तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ थे. 1935 में गोरखनाथ मंदिर का महंत बनने के बाद से ही दिग्विजयनाथ ने अयोधया की.
इस विरासत को गुलामी की त्रासदी से मुक्त बनाने की रणनीति बनानी शुरू कर दी थी. इसके लिए उन्होंने अयोध्या के अलग-अलग मठों के साधु संतों को एकजुट करने के साथ ही जातीय विभेद से परे, हिंदुओ को समान भाव व सम्मान के साथ जोड़ा. 22/23 दिसंबर 1949 को प्रभु श्रीरामलला के विग्रह के प्रकटीकरण के नौ दिन पूर्व ही, महंत दिग्विजयनाथ के नेतृत्व में अखंड रामायण के पाठ का आयोजन शुरू हो चुका था. श्रीरामलला के प्राकट्य पर महंत दिग्विजय नाथ खुद वहां मौजूद थे. प्रभु श्रीराम के विग्रह के प्रकटीकरण के बाद मामला अदालत पहुंचा.
इसके चलते विवादित स्थल पर ताला भले जड़ दिया गया, पर पहली बार वहां पुजारियों को दैनिक पूजा की अनुमति भी मिली. दूसरे पक्ष ने भरसक यह प्रयास किया कि श्रीरामलला के विग्रह को बाहर कर दिया जाए लेकिन महंत दिग्विजयनाथ द्वारा बनाई गई रणनीति से यह प्रयास सफल नहीं हो सका. श्रीरामलला के प्रकटीकरण के बाद मंदिर आंदोलन को एक नई दिशा देने वाले महंत दिग्विजयनाथ 1969 में महासमाधि लेने तक, श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के लिए अनवरत प्रयास करते रहे.
श्रीमत्पंचखंड पीठाधीश्वर ब्रम्हलीन आचार्य धर्मेंद्र महाराज ने, मंदिर आंदोलन में महंत दिग्विजयनाथ के योगदान की चर्चा करते हुए एक बार कहा था, 'श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के मूल में महंत दिग्विजयनाथ महाराज की भूमिका वही है जो किसी मोबाइल सेट में उसके सिमकार्ड की होती है.'