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गोरखपुर के टेराकोटा उत्पाद को मिला 'बौद्धिक संपदा अधिकार'

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में प्रसिद्ध टेराकोटा उत्पाद को 'बौद्धिक संपदा अधिकार' का दर्जा प्राप्त हुआ है. इसके आधार पर गोरखपुर के टेराकोटा शिल्प को कानूनी रूप से नई वैश्विक पहचान मिल गई है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस पर ट्वीट कर बधाई दी है.

टेराकोटा उत्पाद
टेराकोटा उत्पाद
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Published : May 4, 2020, 1:25 PM IST

गोरखपुर: जिले के प्रसिद्ध टेराकोटा उत्पाद को पहले से ही वैश्विक स्तर पर विशेष पहचान हासिल है. यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ओडीओपी योजना के तहत भी चयनित किया गया है, लेकिन इस बार इसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिलने के साथ 'बौद्धिक संपदा अधिकार' का भी दर्जा प्राप्त हुआ है. इसके आधार पर गोरखपुर के टेराकोटा शिल्प को कानूनी रूप से नई वैश्विक पहचान मिल गई है.

यही वजह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस खुशी को ट्वीट करके जाहिर किया है. इससे हस्तशिल्पियों को विधिक सुरक्षा भी मिलेगी. टेराकोटा उत्पाद को वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे 'एक जिला एक उत्पाद योजना' के अंतर्गत शामिल कर मान्यता दी थी, लेकिन बौद्धिक संपदा का अधिकार मिल जाने के बाद जिले के बाहर इस नाम से कोई और कलाकृतियों का निर्माण नहीं कर सकेगा.

  • गोरखपुर को विशिष्ट पहचान दिलाने वाली 'टेराकोटा कारीगरी' को 'बौद्धिक संपदा अधिकार' का दर्जा प्राप्त होने पर बधाई।

    हमारे इस अनूठे उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होगी। @UPGovt ने वर्ष 2018 में इसे 'एक जिला-एक उत्पाद' योजनांतर्गत सम्मिलित कर मान्यता दी थी।

    — Yogi Adityanath (@myogiadityanath) May 3, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इसके बाद टेराकोटा शिल्पियों को और बड़ा बाजार उपलब्ध होगा. गोरखपुर में गुलरिहा थाना क्षेत्र के औरंगाबाद गांव में इस उत्पाद को बनाने वाले कारीगर पीढ़ियों से रहते हैं. वहीं पर इनका कारखाना भी लगा हुआ है. यह अधिकार हासिल करने के लिए पद्मश्री डॉ. रजनीकांत के दिशा निर्देशन में साल 2018 से प्रयास हो रहा था, जिसे अब जाकर सफलता मिली है.

गोरखपुर न्यूज
टेराकोटा उत्पाद को 2018 में ओडीओपी के तहत मान्यता मिली थी.

गोरखपुर के टेराकोटा का विदेशों से पुराना नाता है. लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह के गुलाब चंद प्रजापति कहते हैं कि उनके बाबा स्वर्गीय विजय प्रताप 1982 में यहां की मिट्टी ले जाकर ब्रिटेन के बकिंघम पैलेस में अपना हुनर दिखा चुके हैं. उन्होंने 1986 में आस्ट्रेलिया, 1987 में हालैंड में अपनी कला का प्रदर्शन किया है.

साल 1995 में गणतंत्र दिवस की परेड में भी औरंगाबाद के टेराकोटा की प्रदर्शनी को शामिल किया जा चुका है. इसके उत्पादन से लगभग ढाई सौ परिवार जुड़ा हुआ है, जिनका सालाना कारोबार 40 लाख से ऊपर है.

ये भी पढ़ें- गोरखपुर पुलिस ने कहा, 'मैं कोरोना को रोकता हूं, आप घर पर ही रहिए'

गोरखपुर: जिले के प्रसिद्ध टेराकोटा उत्पाद को पहले से ही वैश्विक स्तर पर विशेष पहचान हासिल है. यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ओडीओपी योजना के तहत भी चयनित किया गया है, लेकिन इस बार इसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिलने के साथ 'बौद्धिक संपदा अधिकार' का भी दर्जा प्राप्त हुआ है. इसके आधार पर गोरखपुर के टेराकोटा शिल्प को कानूनी रूप से नई वैश्विक पहचान मिल गई है.

यही वजह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस खुशी को ट्वीट करके जाहिर किया है. इससे हस्तशिल्पियों को विधिक सुरक्षा भी मिलेगी. टेराकोटा उत्पाद को वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे 'एक जिला एक उत्पाद योजना' के अंतर्गत शामिल कर मान्यता दी थी, लेकिन बौद्धिक संपदा का अधिकार मिल जाने के बाद जिले के बाहर इस नाम से कोई और कलाकृतियों का निर्माण नहीं कर सकेगा.

  • गोरखपुर को विशिष्ट पहचान दिलाने वाली 'टेराकोटा कारीगरी' को 'बौद्धिक संपदा अधिकार' का दर्जा प्राप्त होने पर बधाई।

    हमारे इस अनूठे उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होगी। @UPGovt ने वर्ष 2018 में इसे 'एक जिला-एक उत्पाद' योजनांतर्गत सम्मिलित कर मान्यता दी थी।

    — Yogi Adityanath (@myogiadityanath) May 3, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इसके बाद टेराकोटा शिल्पियों को और बड़ा बाजार उपलब्ध होगा. गोरखपुर में गुलरिहा थाना क्षेत्र के औरंगाबाद गांव में इस उत्पाद को बनाने वाले कारीगर पीढ़ियों से रहते हैं. वहीं पर इनका कारखाना भी लगा हुआ है. यह अधिकार हासिल करने के लिए पद्मश्री डॉ. रजनीकांत के दिशा निर्देशन में साल 2018 से प्रयास हो रहा था, जिसे अब जाकर सफलता मिली है.

गोरखपुर न्यूज
टेराकोटा उत्पाद को 2018 में ओडीओपी के तहत मान्यता मिली थी.

गोरखपुर के टेराकोटा का विदेशों से पुराना नाता है. लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह के गुलाब चंद प्रजापति कहते हैं कि उनके बाबा स्वर्गीय विजय प्रताप 1982 में यहां की मिट्टी ले जाकर ब्रिटेन के बकिंघम पैलेस में अपना हुनर दिखा चुके हैं. उन्होंने 1986 में आस्ट्रेलिया, 1987 में हालैंड में अपनी कला का प्रदर्शन किया है.

साल 1995 में गणतंत्र दिवस की परेड में भी औरंगाबाद के टेराकोटा की प्रदर्शनी को शामिल किया जा चुका है. इसके उत्पादन से लगभग ढाई सौ परिवार जुड़ा हुआ है, जिनका सालाना कारोबार 40 लाख से ऊपर है.

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