गोरखपुर: कचरा कोई भी हो उसके निस्तारण को लेकर सरकार और प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के साथ एनजीटी भी लगातार प्रयास कर रही है. ऐसे में एक है ई कचरा. जिसका निस्तारण भी समय के साथ चैलेंज बनता जा रहा है. शहर कोई भी हो वहां कचरा बड़ी मात्रा में प्रतिदिन निकल रहा है और भविष्य में इसके और निकलने की उम्मीद है.
गीडा में बन रहा प्लांट
भारत सरकार द्वारा ई-कचरे के निस्तारण के लिए एक पॉलिसी बना दिया गया है, जिसके अनुसार 5 साल में स्मार्ट फोन और दस साल में फ्रिज कबाड़ हो जायेंगे. सेंट्रल फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट मिनिस्ट्री ने करीब 134 ई उत्पादों के कबाड़ होने की समय सीमा तय कर दी है. जिसके बाद इसका निस्तारण एक बड़ा विषय है. यही वजह है कि गोरखपुर नगर निगम ने इस पर काम करना शुरू कर दिया है. जिला प्रदूषण कार्यालय भी इसमें सहयोगी है. सरकार के पास नगर निगम ठोस अपशिष्ट (MSW) ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का प्रस्ताव भेजा गया था. जिसपर सहमति बन गई और गीडा में इसका प्लांट स्थापित किया जा रहा है.
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए गाइड लाइन
गोरखपुर क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी इंजीनियर अनिल शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया है कि ई-वेस्ट के निस्तारण को लेकर भारत सरकार ने वर्ष 2011 में ही पॉलिसी तैयार कर दी थी. जिसके अनुक्रम में विभिन्न स्थानों पर निकलने वाले ई कचरे के निस्तारण के लिए प्लांट लगाए जाने की प्रक्रिया चल रही है. गोरखपुर पूर्वांचल का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है और यहां से बड़ी मात्रा में ई-कचरा निकलता है. तमाम लोग कूड़े कचरे में इसको फेंक देते हैं. यही वजह है कि सरकार ने अब ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माता के लिए गाइडलाइन जारी की है. जो अपने उत्पादों को तय समय सीमा में लोगों से कलेक्ट कर उसे रीसायकल करने के लिए की कचरे प्लांट तक पहुंचाएंगे.
ई-कचरों को एकत्र कर रहा है नगर निगम
गोरखपुर के औद्योगिक क्षेत्र गीडा में 500 टन का ई-कचरा निस्तारण प्लांट तैयार किया जा रहा है. जिसका निर्माण दिसंबर 2023 तक पूर्ण हो जाने की उम्मीद है. इसके बाद कूड़े कचरे के ढेर में ई-कचरे नहीं फेके जा सकेंगे. फिलहाल नगर निगम इसको लेकर जागरूकता फैलाने और ई-कचरों को इकट्ठा करने में जुटा हुआ है. कुछ उत्पादों का मूल्य भी दिया जा सके, ऐसी भी व्यवस्था की जा रही है. शहर की दीवारों पर इसका स्लोगन भी लोगों की जागरूकता के लिए पेंट कराया जा रहा है.
ई-कचरे के लिए बना है कानून
क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी ने बताया कि इस ई-कचरे के निस्तारण के पीछे का कारण यह है कि इससे निकलने वाले रसायन खतरनाक होते हैं. इसमें पारा, आर्सेनिक, कैडमियम जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जो सांस, फेफड़ों के कैंसर और त्वचा की बीमारियों का कारण बनते हैं. ऐसे में कंपनियां एक समय के बाद इन सामानों को नष्ट कर देंगी, जो 1 अप्रैल 2023 से ई-कचरा से निपटने का नया कानून लागू हुआ है. इसमें जो ई-कचरा पैदा करेगा. वही इसे नष्ट भी करेगा. जैसे कि अगर किसी कंपनी ने 5 साल पहले जितने मोबाइल बनाए थे, उसका 60 प्रतिशत हिस्सा वह नष्ट कर चुका है. 5 साल बाद इसका प्रमाण पत्र उसे देना होगा.
समय से निस्तारण न होने पर होगी कार्रवाई
इंजीनियर ने बताया कि ऐसा नहीं करने पर उसे जुर्माना और जेल दोनों हो सकता है. इससे उपभोक्ताओं को परेशान होने की जरूरत नहीं है. इसके निस्तारण की जिम्मेदारी ब्रांड उत्पादकों की होगी. वही इसे समुचित तरीके से नष्ट करेंगे. इसके बदले ही वह नया प्रोडक्ट लॉन्च भी करेंगे. ऐसी उनको अनुमति मिलेगी. कुछ उत्पाद जैसे कि रेफ्रिजरेटर इसकी एक्सपायरी डेट निर्माण से 10 वर्ष की होगी. सीलिंग फैन 10 वर्ष, वाशिंग मशीन 10 वर्ष, रेडियो 8 वर्ष, स्मार्टफोन और लैपटॉप 5 वर्ष, टेबलेट 5 वर्ष, स्कैनर 5 वर्ष, इलेक्ट्रिक ट्रेन और रेसिंग कार 2 वर्ष है. ऐसे ही अन्य उत्पादों की आयु तय की गई है. जिसका समय से निस्तारण करना कंपनियों की जवाब देही और जिम्मेदारी में शामिल है.
यह भी पढे़ं-मुरादाबादः घरों में ई-कचरा का लगा ढेर, पुलिस ने तीन को किया गिरफ्तार
यह भी पढे़ं-वाराणसी में धूल फांक रहीं लाखों की इलेक्ट्रिक कूड़ा गाड़ियां, चार्जिंग पॉइंट न होने के कारण शो हुआ फ्लॉप