गोरखपुर: साल 1920 में स्थापित गोरखपुर का क्षेत्रीय गांधी आश्रम 30 नवंबर 2020 को 100 साल पूरे करने जा रहा है. इस दौरान इसने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन मौजूदा दौर इसके लिए बेहद संकट भरा है. पिछले 5 वर्षों से इसकी दशा खराब होती जा रही है. कोरोना काल इसके लिए आफत बनकर आया. आलम यह है कि यहां के कर्मचारियों को वेतन आधा मिल रहा है. कतिन बुनकरों के पास गांधी आश्रम काम नहीं भेज पा रहा. हालांकि, इस सबके के बीच राहत भरी खबर यह है कि भरोसेमंद ग्राहक गांधी आश्रम में खरीदारी के लिए आ रहे हैं. इससे ठंड के मौसम में इसकी बिक्री बढ़ने की उम्मीद है.
यूपी सरकार पर करीब 100 करोड़ बकाया
आचार्य कृपलानी ने अंग्रेजी शासन काल में इसकी नींव रखी थी. ग्रामीण स्तर तक इसकी पहुंच और कारोबार की वजह से अंग्रेजी शासन काल में इस पर टैक्स नहीं लगा था. गांधी आश्रम मौजूदा समय में सरकारों की उपेक्षा का शिकार हो रहा है. यहां तक कि पहले कई विभागों में और ठंड के मौसम में यहां से कंबल की सप्लाई होती थी. यह ऑर्डर अब इसे नहीं मिलते. गांधी जयंती के बाद सरकारी छूट पर बिकने वाले कपड़ों के करीब 100 करोड़ रुपये यूपी सरकार पर बकाया हैं. कोरोना के कारण यहां की बिक्री में ढाई करोड़ रुपये की कमी आई है. यही वजह है कि कर्मचारियों को वेतन आधा मिल रहा है. बाजार में तैयार अपने उत्पाद गांधी आश्रम खरीद नहीं पा रहा. गांधी आश्रम कतिन बुनकरों का बकाया तक नहीं दे पा रहा. गोरखपुर क्षेत्रीय गांधी आश्रम के अधीन 43 शाखाएं संचालित हैं. उनकी दशा भी खराब है.
![गांधी आश्रम पर सामान खरीदते लोग.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-gkp-02-gandhi-ashram-waiting-for-a-good-day-pkg-7201177_20112020122715_2011f_00751_535.jpg)
सरकारी मदद का इंतजार
गांधी आश्रम में करीब 135 कर्मचारी हैं और इससे 725 कतिन और 170 बुनकर जुड़े हुए हैं. हर महीने यहां 27 लाख रुपये खर्च होते हैं. करीब डेढ़ करोड़ की बिक्री यहां प्रतिमाह होती थी. वह अब 18 लाख के करीब रह गई है. गांधी आश्रम का सफल संचालन तमाम घरों की आमदनी का सहारा होता था. संकट की इस घड़ी में गांधी आश्रम की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकारी मदद का इंतजार है. साल 2014 तक यह संस्था बेहतरीन कार्य करती रही है. तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने यहां की व्यवस्थापक को सम्मानित भी किया था.