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योगी की अग्निपरीक्षा : क्या जाति की दीवार तोड़ फिर ताकत हासिल करेगा मठ ? - अखिलेश यादव

18वें लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की साख दांव पर लगी है. उम्मीदवार हैं रविकिशन, जिन्हें भाजपा ने मैदान में उतारा है. पिछले उपचुनाव में भाजपा की हार से मठ के वर्चस्व को भी चुनौती मिली थी. अब देखना ये होगा कि मठ अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगा या नहीं.

योगी के मठ की अग्निपरीक्षा.
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Published : May 16, 2019, 10:38 PM IST

Updated : May 16, 2019, 11:53 PM IST

गोरखपुर : गोरखपुर में अब तक 16 बार लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है. दो बार यहां उपचुनाव भी हुआ है. कुल 18 बार के चुनाव में मठ 10 बार अपना प्रतिनिधि संसद में भेजने में सफल रहा. खुद गोरक्षनाथ पीठ के पीठासीन महंतों ने संसद में गोरखपुर की अगुवाई की. चूंकि इस बार पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इसलिए पार्टी ने भोजपुरी स्टार रविकिशन शुक्ला को पार्टी का उम्मीदवार बनाया है. उपचुनाव हारने के बाद मंदिर के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती मिली. सवाल यह है कि क्या 19 मई को मंदिर अपने वर्चस्व को दोबारा हासिल करेगा.

योगी के मठ की अग्निपरीक्षा

कब-कब कौन गया गोरखपुर से संसद

अभी तक 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें से पांच बार कांग्रेस को जीत मिली, जबकि सबसे ज्यादा सात बार बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. इसके अलावा दो बार निर्दलीय, एक बार हिंदू महासभा, एक बार भारतीय लोकदल और एक बार सपा को जीत मिली है. 1952 से शुरू हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंहासन सिंह ने पहली जीत दर्ज की. वह लगातार 3 बार 1967 गोरखपुर से सांसद चुने गए. उस दौर में भी माना जाता रहा कि कांग्रेस को मठ का आशीर्वाद मिल रहा था. मगर इंदिरा गांधी के दौर में मठ ने सीधे राजनीति में उतरने का फैसला किया.

1967 में महंत दिग्विजय नाथ ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर जीत दर्ज की. 1970 के उपचुनाव में उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर उम्मीदवारी की और संसद पहुंचे. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में गोरखपुर की सीट लोकदल के हरकेश बहादुर के खाते में पहुंच गई. 1980 में हरकेश बहादुर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और सांसद बने. इंदिरा गांधी की शहीदी के बाद जब देश में कांग्रेस की लहर चली तो मदन पांडे को बड़ी जीत मिली.


1989 के बाद यूपी में रामजन्म भूमि विवाद चुनावी मुद्दे के तौर पर हावी हो गया. मठ ने राम जन्मभूमि का समर्थन किया. महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा की टिकट से मैदान में उतरे. इसके बाद तो यह सीट पूरी तरह से गोरखनाथ मंदिर की हो गई. 1998 तक अवैद्यनाथ इस सीट से चुने जाते रहे. इसके बाद बारी आई योगी आदित्यनाथ की, जिसे महंत अवैद्यनाथ ने अपना वारिस चुना था. 1999 से 2017 तक आदित्यनाथ को कोई भी इस सीट से चुनौती नहीं दे सका.


2017 में योगी सीएम बने तो गोरखपुर में उपचुनाव हुए. समाजवादी पार्टी को बहुजन समाजवादी पार्टी ने समर्थन दे दिया और प्रवीन निषाद ने बीजेपी के उपेन्द्र शुक्ल को 21 हजार 881 वोटों से हरा दिया. हार से न सिर्फ उत्तरप्रदेश में खलबली मची बल्कि महागठबंधन की नींव भी पड़ गई. निषाद वोटरों की एकजुटता के आगे बीजेपी बेबस हो गई. चर्चा यह रही कि पसंद के उम्मीदवार नहीं होने के कारण मठ ने जीत के लिए रूचि नहीं ली हालांकि खुद सीएम योगी ने इसका खंडन किया और हार की जिम्मेदारी भी ली.


विपक्ष से मिल रही चुनौती
इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट रवि किशन को सपा- बसपा गठबंधन के रामभुआल निषाद और कांग्रेस के मधुसूदन तिवारी से चुनौती मिल रही है. 19 मई 2019 को भी रविकिशन के साथ मठ की परीक्षा भी होगी. बीजेपी की तरफ से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी ने कमान संभाली है तो गठबंधन के लिए माया और अखिलेश भी प्रचार कर चुके हैं. इस बीज दीगर यह है कि रविकिशन खुद को मठ के उम्मीदवार और महाराजजी ( सीएम योगी) का उत्तराधिकारी के तौर पर खुद को पेश कर रहे हैं.

निषाद, ब्राह्मण और यादव तय करेंगे ताज
गोरखपुर संसदीय सीट पर 2011 की जनगणना के अनुसार 19.5 लाख मतदाता हैं. हालांकि जाति के हिसाब से वोटरों की सही संख्या के आंकड़े स्पष्ट नहीं है मगर निषाद समुदाय का दावा है कि इस सीट पर सबसे ज्यादा उनकी जाति के वोटर हैं. दावे के मुताबिक गोरखपुर सीट पर करीब 3.5 लाख वोट निषाद जाति के लोगों का है. उसके बाद यादव और दलित मतदाताओं की संख्या है. दो लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट के तहत सूबे की पांच विधानसभा सीट आती है. इनमें कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर नगरीय, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवां सीट है. मौजूदा समय में इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

गोरखपुर : गोरखपुर में अब तक 16 बार लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है. दो बार यहां उपचुनाव भी हुआ है. कुल 18 बार के चुनाव में मठ 10 बार अपना प्रतिनिधि संसद में भेजने में सफल रहा. खुद गोरक्षनाथ पीठ के पीठासीन महंतों ने संसद में गोरखपुर की अगुवाई की. चूंकि इस बार पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इसलिए पार्टी ने भोजपुरी स्टार रविकिशन शुक्ला को पार्टी का उम्मीदवार बनाया है. उपचुनाव हारने के बाद मंदिर के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती मिली. सवाल यह है कि क्या 19 मई को मंदिर अपने वर्चस्व को दोबारा हासिल करेगा.

योगी के मठ की अग्निपरीक्षा

कब-कब कौन गया गोरखपुर से संसद

अभी तक 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें से पांच बार कांग्रेस को जीत मिली, जबकि सबसे ज्यादा सात बार बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. इसके अलावा दो बार निर्दलीय, एक बार हिंदू महासभा, एक बार भारतीय लोकदल और एक बार सपा को जीत मिली है. 1952 से शुरू हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंहासन सिंह ने पहली जीत दर्ज की. वह लगातार 3 बार 1967 गोरखपुर से सांसद चुने गए. उस दौर में भी माना जाता रहा कि कांग्रेस को मठ का आशीर्वाद मिल रहा था. मगर इंदिरा गांधी के दौर में मठ ने सीधे राजनीति में उतरने का फैसला किया.

1967 में महंत दिग्विजय नाथ ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर जीत दर्ज की. 1970 के उपचुनाव में उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर उम्मीदवारी की और संसद पहुंचे. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में गोरखपुर की सीट लोकदल के हरकेश बहादुर के खाते में पहुंच गई. 1980 में हरकेश बहादुर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और सांसद बने. इंदिरा गांधी की शहीदी के बाद जब देश में कांग्रेस की लहर चली तो मदन पांडे को बड़ी जीत मिली.


1989 के बाद यूपी में रामजन्म भूमि विवाद चुनावी मुद्दे के तौर पर हावी हो गया. मठ ने राम जन्मभूमि का समर्थन किया. महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा की टिकट से मैदान में उतरे. इसके बाद तो यह सीट पूरी तरह से गोरखनाथ मंदिर की हो गई. 1998 तक अवैद्यनाथ इस सीट से चुने जाते रहे. इसके बाद बारी आई योगी आदित्यनाथ की, जिसे महंत अवैद्यनाथ ने अपना वारिस चुना था. 1999 से 2017 तक आदित्यनाथ को कोई भी इस सीट से चुनौती नहीं दे सका.


2017 में योगी सीएम बने तो गोरखपुर में उपचुनाव हुए. समाजवादी पार्टी को बहुजन समाजवादी पार्टी ने समर्थन दे दिया और प्रवीन निषाद ने बीजेपी के उपेन्द्र शुक्ल को 21 हजार 881 वोटों से हरा दिया. हार से न सिर्फ उत्तरप्रदेश में खलबली मची बल्कि महागठबंधन की नींव भी पड़ गई. निषाद वोटरों की एकजुटता के आगे बीजेपी बेबस हो गई. चर्चा यह रही कि पसंद के उम्मीदवार नहीं होने के कारण मठ ने जीत के लिए रूचि नहीं ली हालांकि खुद सीएम योगी ने इसका खंडन किया और हार की जिम्मेदारी भी ली.


विपक्ष से मिल रही चुनौती
इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट रवि किशन को सपा- बसपा गठबंधन के रामभुआल निषाद और कांग्रेस के मधुसूदन तिवारी से चुनौती मिल रही है. 19 मई 2019 को भी रविकिशन के साथ मठ की परीक्षा भी होगी. बीजेपी की तरफ से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी ने कमान संभाली है तो गठबंधन के लिए माया और अखिलेश भी प्रचार कर चुके हैं. इस बीज दीगर यह है कि रविकिशन खुद को मठ के उम्मीदवार और महाराजजी ( सीएम योगी) का उत्तराधिकारी के तौर पर खुद को पेश कर रहे हैं.

निषाद, ब्राह्मण और यादव तय करेंगे ताज
गोरखपुर संसदीय सीट पर 2011 की जनगणना के अनुसार 19.5 लाख मतदाता हैं. हालांकि जाति के हिसाब से वोटरों की सही संख्या के आंकड़े स्पष्ट नहीं है मगर निषाद समुदाय का दावा है कि इस सीट पर सबसे ज्यादा उनकी जाति के वोटर हैं. दावे के मुताबिक गोरखपुर सीट पर करीब 3.5 लाख वोट निषाद जाति के लोगों का है. उसके बाद यादव और दलित मतदाताओं की संख्या है. दो लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट के तहत सूबे की पांच विधानसभा सीट आती है. इनमें कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर नगरीय, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवां सीट है. मौजूदा समय में इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

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योगी की अग्निपरीक्षा : क्या जाति की दीवार तोड़ फिर ताकत हासिल करेगा मठ?

गोरखपुर : गोरखपुर में अब तक 16 दफे लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग हुई. दो बार यहां उपचुनाव भी हुआ. यानी कुल 18 बार के चुनाव में मठ 10 बार अपना प्रतिनिधि संसद में भेजने में सफल रहा. खुद गोरक्षनाथ पीठ के पीठासीन महंतों ने संसद में गोरखपुर की अगुवाई की. चूंकि इस बार पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इसलिए पार्टी ने भोजपुरी स्टार रविकिशन शुक्ला को पार्टी का उम्मीदवार बनाया है. उपचुनाव हारने के बाद मंदिर के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती मिली. सवाल यह है कि क्या 12 मई को मंदिर अपने वर्चस्व को दोबारा हासिल करेगा. 





कब-कब कौन गया गोरखपुर से संसद 

अभी तक 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें से पांच बार कांग्रेस को जीत मिली, जबकि सबसे ज्यादा सात बार बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. इसके अलावा दो बार निर्दलीय, एक बार हिंदू महासभा, एक बार भारतीय लोकदल और एक बार सपा को जीत मिली है. 1952 से शुरू हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंहासन सिंह ने पहली जीत दर्ज की. वह लगातार 3 बार 1967 गोरखपुर से सांसद चुने गए. उस दौर में भी माना जाता रहा कि कांग्रेस को मठ का आशीर्वाद मिल रहा था. मगर इंदिरा गांधी के दौर में मठ ने सीधे राजनीति में उतरने का फैसला किया. 1967 में महंत दिग्विजय नाथ ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर जीत दर्ज की. 1970 के उपचुनाव में उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर उम्मीदवारी की और संसद पहुंचे. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में गोरखपुर की सीट लोकदल के हरकेश बहादुर के खाते में पहुंच गई. 1980 में हरकेश बहादुर ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और सांसद बने. इंदिरा गांधी की शहीदी के बाद जब देश में कांग्रेस की लहर चली तो मदन पांडे को बड़ी जीत मिली. 





1989 के बाद यूपी में रामजन्म भूमि विवाद चुनावी मुद्दे के तौर पर हावी हो गया. मठ ने राम जन्मभूमि का समर्थन किया.  महंत अवैद्यनाथ  हिंदू महासभा की टिकट से मैदान में उतरे. इसके बाद तो यह सीट पूरी तरह से गोरखनाथ मंदिर की हो गई.  1998 तक अवैद्यनाथ इस सीट से चुने जाते रहे. इसके बाद बारी आई योगी आदित्यनाथ की, जिसे महंत अवैद्यनाथ ने अपना वारिस चुना था. 1999 से 2017 तक आदित्यनाथ को कोई भी इस सीट से चुनौती नहीं दे सका. 





2017 में योगी सीएम बने तो गोरखपुर में उपचुनाव हुए. समाजवादी पार्टी को बहुजन समाजवादी पार्टी ने समर्थन दे दिया और प्रवीन निषाद ने बीजेपी के उपेन्द्र शुक्ल को 21 हजार 881 वोटों से हरा दिया. हार से न सिर्फ उत्तरप्रदेश में खलबली मची बल्कि महागठबंधन की नींव भी पड़ गई. निषाद वोटरों की एकजुटता के आगे बीजेपी बेबस हो गई. चर्चा यह रही कि पसंद के उम्मीदवार नहीं होने के कारण मठ ने जीत के लिए रूचि नहीं ली हालांकि खुद सीएम योगी ने इसका खंडन किया और हार की जिम्मेदारी भी ली. 

इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट रवि किशन को सपा- बसपा गठबंधन के रामभुआल निषाद और कांग्रेस के मधुसूदन तिवारी से चुनौती मिल रही है. 12 मई 2019 को भी रविकिशन के साथ मठ की परीक्षा भी होगी. बीजेपी की तरफ से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और सीएम योगी ने कमान संभाली है तो गठबंधन के लिए माया और अखिलेश भी प्रचार कर चुके हैं. इस बीज दीगर यह है कि रविकिशन खुद को मठ के उम्मीदवार और महाराजजी ( सीएम योगी) का  उत्तराधिकारी  के तौर पर खुद को पेश कर रहे हैं.

 



निषाद, ब्राह्मण और यादव तय करेंगे ताज

गोरखपुर संसदीय सीट पर 2011 की जनगणना के अनुसार 19.5 लाख मतदाता हैं. हालांकि जाति के हिसाब से वोटरों की सही संख्या के आंकड़े स्पष्ट नहीं है मगर निषाद समुदाय का दावा है कि इस सीट पर सबसे ज्यादा उनकी जाति के वोटर हैं. दावे के मुताबिक गोरखपुर सीट पर करीब 3.5 लाख वोट निषाद जाति के लोगों का है. उसके बाद यादव और दलित मतदाताओं की संख्या है. दो लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट के तहत सूबे की पांच विधानसभा सीट आती है. इनमें कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर नगरीय, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवां सीट है. मौजूदा समय में इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. 

 


Conclusion:
Last Updated : May 16, 2019, 11:53 PM IST
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