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गोरखपुर : सीएम के शहर में सरकारी अस्पतालों में आईसीसीयू व्यवस्था मात्र दिखावा

गोरखपुर के जिला अस्पताल के आईसीसीयू यूनिट में डॉक्टरों की कमी है. हृदय रोग के डॉक्टर की देखभाल में आईसीसीयू यूनिट चल रही है. जिला अस्पताल में एनेस्थीसिया के एक भी डॉक्टर नहीं हैं.

आईसीसीयू यूनिट में डॉक्टरों की कमी
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Published : Feb 25, 2019, 8:36 PM IST

गोरखपुर : योगी सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के लाख दावे कर रही हो, पर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सीएम के शहर में मौजूदा समय में जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के आईसीसीयू यूनिट में मात्र 4 बेड हैं और इसकी निगरानी डॉक्टरों के अभाव में बड़ी मुश्किल से हृदय रोग के डॉक्टरों के हवाले है. ऐसे में आकस्मिक जरूरत की पूर्ति के लिए लोग प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर होने को मजबूर हैं. सीएचसी और पीएचसी की हालत और भी खराब है, यहां के मरीज सिर्फ रेफर ही किए जाते हैं.

आईसीसीयू यूनिट में डॉक्टरों की कमी

आईसीयू को 'इंटेंसिव केयर यूनिट' और आईसीसीयू को 'इंटेंसिव क्रिटिकल केयर यूनिट' कहते हैं. इसकी आवश्यकता मरीज को कृत्रिम सांस देने के लिए की जाती है, लेकिन इसको लेकर सरकारी अस्पतालों में जो व्यवस्था है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि यह मात्र दिखावा है. गोरखपुर यूनिट के संचालन के लिए डॉक्टरों की कमी है. हृदय रोग के डॉक्टर की देखभाल में यह यूनिट चलती है, जबकि करीब छह डॉक्टर 24 घंटे में इसकी जरूरत के लिए मानक बताए गए हैं. जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि अप्रैल 2019 तक इसमें सुधार कर लिया जाएगा और एक्सपर्ट की ट्रेनिंग एसजीपीजीआई लखनऊ के स्तर पर कराई जाएगी. उन्होंने बताया कि जो भी जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट हैं, उन्हें जल्द मंगा लिया जाएगा.

आईसीयू में उन लोगों की देखभाल की जाती है जिनका जीवन गंभीर बीमारी या दुर्घटना में चोट के कारण खतरे में होता है. उन्हें बेहतर निगरानी और उपकरण के साथ रखा जाता है. इन मरीजों के देखभाल के लिए उच्च प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सकों की टीम 24 घंटे देखभाल करती है.वहीं गोरखपुर की बात करें तो जिला अस्पताल में एक भी एनेस्थीसिया के डॉक्टर नहीं हैं. यहां की जीवन रक्षक प्रणाली खुद 'आईसीयू' में है.

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गोरखपुर : योगी सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के लाख दावे कर रही हो, पर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सीएम के शहर में मौजूदा समय में जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के आईसीसीयू यूनिट में मात्र 4 बेड हैं और इसकी निगरानी डॉक्टरों के अभाव में बड़ी मुश्किल से हृदय रोग के डॉक्टरों के हवाले है. ऐसे में आकस्मिक जरूरत की पूर्ति के लिए लोग प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर होने को मजबूर हैं. सीएचसी और पीएचसी की हालत और भी खराब है, यहां के मरीज सिर्फ रेफर ही किए जाते हैं.

आईसीसीयू यूनिट में डॉक्टरों की कमी

आईसीयू को 'इंटेंसिव केयर यूनिट' और आईसीसीयू को 'इंटेंसिव क्रिटिकल केयर यूनिट' कहते हैं. इसकी आवश्यकता मरीज को कृत्रिम सांस देने के लिए की जाती है, लेकिन इसको लेकर सरकारी अस्पतालों में जो व्यवस्था है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि यह मात्र दिखावा है. गोरखपुर यूनिट के संचालन के लिए डॉक्टरों की कमी है. हृदय रोग के डॉक्टर की देखभाल में यह यूनिट चलती है, जबकि करीब छह डॉक्टर 24 घंटे में इसकी जरूरत के लिए मानक बताए गए हैं. जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि अप्रैल 2019 तक इसमें सुधार कर लिया जाएगा और एक्सपर्ट की ट्रेनिंग एसजीपीजीआई लखनऊ के स्तर पर कराई जाएगी. उन्होंने बताया कि जो भी जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट हैं, उन्हें जल्द मंगा लिया जाएगा.

आईसीयू में उन लोगों की देखभाल की जाती है जिनका जीवन गंभीर बीमारी या दुर्घटना में चोट के कारण खतरे में होता है. उन्हें बेहतर निगरानी और उपकरण के साथ रखा जाता है. इन मरीजों के देखभाल के लिए उच्च प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सकों की टीम 24 घंटे देखभाल करती है.वहीं गोरखपुर की बात करें तो जिला अस्पताल में एक भी एनेस्थीसिया के डॉक्टर नहीं हैं. यहां की जीवन रक्षक प्रणाली खुद 'आईसीयू' में है.

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Intro:यह खबर असाइनमेंट डेस्क की तरफ से मांगी गई थी...

गोरखपुर। मुख्यमंत्री के शहर में किसी की तबीयत बुरी तरह बिगड़ जाए और उसे आईसीयू या आईसीसीयू यूनिट में भर्ती करना पड़े तो सरकारी अस्पताल शायद ही इसकी व्यवस्था दे पाए। मौजूदा समय में शहर के जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में जो आईसीसीयू यूनिट है वह मात्र 4 बेड की है और इसकी निगरानी डॉक्टरों के अभाव में बड़ी मुश्किल से हृदय रोग के डॉक्टरों के हवाले हैं। ऐसे में आकस्मिक जरूरत की पूर्ति के लिए पीड़ित लोग प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर होने को मजबूर हैं। सीएचसी और पीएचसी की हालत और भी खराब है। यहां के मरीज सिर्फ रेफर ही किए जाते हैं।


Body:आईसीयू को 'इंटेंसिव केयर यूनिट' और आईसीसीयू को 'इंटेंसिव क्रिटिकल केयर यूनिट' कहते हैं। इसकी आवश्यकता गंभीर मरीज को कृत्रिम श्वास देने के लिए की जाती है। लेकिन इसको लेकर सरकारी अस्पतालों में जो व्यवस्था है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि यह मात्र दिखावा है। इलाज तो प्राइवेट अस्पताल में ही है। गोरखपुर की यूनिट के संचालन के लिए डॉक्टरों की ही कमी है। हृदय रोग के डॉक्टर की देखभाल में यह यूनिट चलती है। जबकि करीब 6 डॉक्टर 24 घंटे में इसकी जरूरत के लिए मानक बताए गए हैं। उसमें भी एनेस्थीसिया का डॉक्टर होना बेहद जरूरी है क्योंकि इस यूनिट पर मानव जीवन के लिए भरोसा किया जाता है। अस्पताल में भर्ती मरीज संतोष तो हासिल करते हैं लेकिन, उनकी सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। यह हम नहीं कहते इसे जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी खुद बयां करते हैं। वह कहते हैं अप्रैल 2019 तक इसमें सुधार कर लिया जाएगा और एक्सपर्ट्स की ट्रेनिंग एसजीपीजीआई लखनऊ के अस्तर पर कराई जाएगी। उन्होंने बताया कि जो भी जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट्स हैं उन्हें बहुत जल्द मंगा लिया जाएगा।

बाइट--श्रीकांत तिवारी, सीएमओ, गोरखपुर


Conclusion:आईसीयू में उन लोगों की देखभाल की जाती है जिनका जीवन गंभीर बीमारी या दुर्घटना में चोट के कारण खतरे में होता है। जहां उन्हें बेहतर निगरानी और सहायता उपकरण के साथ रखा जाता है। इन मरीजों के देखभाल के लिए उच्च प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सकों की टीम 24 घंटे देखभाल करती है। यहाँ भर्ती मरीजों से बहुत कम मिलने की अनुमति होती है। एक वेंटिलेटर का उपयोग तब किया जाता है जब रोगी इतने कमजोर या बीमार होते हैं कि खुद सांस भी नहीं ले सकते। रोगी को अक्सर आराम देने के लिए बेहोश किया जाता है यही वजह है कि एनेस्थीसिया के डॉक्टर की यह बेहद जरूरत होती है। गोरखपुर की बात करें तो जिला अस्पताल में एक भी एनएसथीसिया के डॉक्टर नहीं है। और मेडिकल कॉलेज के यूनिट के भरोसे यहां का सरकारी तंत्र चल रहा है। लेकिन मरीज अपनी कमजोरी और जिला अस्पताल के भरोसे यहां आता है। पर यहां कि जीवन रक्षक प्रणाली खुद 'आईसीयू' में है।

बाइट-सुरसती देवी, तीमारदार
बाइट-अनिल कुमार, तीमारदार

पीटीसी-मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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