गोरखपुर : योगी सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के लाख दावे कर रही हो, पर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सीएम के शहर में मौजूदा समय में जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के आईसीसीयू यूनिट में मात्र 4 बेड हैं और इसकी निगरानी डॉक्टरों के अभाव में बड़ी मुश्किल से हृदय रोग के डॉक्टरों के हवाले है. ऐसे में आकस्मिक जरूरत की पूर्ति के लिए लोग प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर होने को मजबूर हैं. सीएचसी और पीएचसी की हालत और भी खराब है, यहां के मरीज सिर्फ रेफर ही किए जाते हैं.
आईसीयू को 'इंटेंसिव केयर यूनिट' और आईसीसीयू को 'इंटेंसिव क्रिटिकल केयर यूनिट' कहते हैं. इसकी आवश्यकता मरीज को कृत्रिम सांस देने के लिए की जाती है, लेकिन इसको लेकर सरकारी अस्पतालों में जो व्यवस्था है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि यह मात्र दिखावा है. गोरखपुर यूनिट के संचालन के लिए डॉक्टरों की कमी है. हृदय रोग के डॉक्टर की देखभाल में यह यूनिट चलती है, जबकि करीब छह डॉक्टर 24 घंटे में इसकी जरूरत के लिए मानक बताए गए हैं. जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कहना है कि अप्रैल 2019 तक इसमें सुधार कर लिया जाएगा और एक्सपर्ट की ट्रेनिंग एसजीपीजीआई लखनऊ के स्तर पर कराई जाएगी. उन्होंने बताया कि जो भी जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट हैं, उन्हें जल्द मंगा लिया जाएगा.
आईसीयू में उन लोगों की देखभाल की जाती है जिनका जीवन गंभीर बीमारी या दुर्घटना में चोट के कारण खतरे में होता है. उन्हें बेहतर निगरानी और उपकरण के साथ रखा जाता है. इन मरीजों के देखभाल के लिए उच्च प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सकों की टीम 24 घंटे देखभाल करती है.वहीं गोरखपुर की बात करें तो जिला अस्पताल में एक भी एनेस्थीसिया के डॉक्टर नहीं हैं. यहां की जीवन रक्षक प्रणाली खुद 'आईसीयू' में है.